होली के सात दिन बात शीतला सप्तमी आती है। इसकी पूजा दिन व वार देखकर करते हैं वार अच्छा हो तो ठंडा बनाकर सप्तमी को बनाकर अष्टमी को खाते हैं मंगलवार व शनिवार को पूजा नहीं होती है।
इस दिन रसोई में एक पानी के चावल, बाजरी का दलिया, गुलगुले बाजरी की रोटी मीसी रोटी डोए की राबडी, दही, मक्खन, जरुरी है बाकी व्यंजन इच्छानुसार बनाते हैं। जिस दिन रसोई बनाते हैं उस दिन सुबह मोठ, बाजरी भिंगोते हैं थोडे-थोडे पूजा के लिए। मोठ बाजरी भीगोने के बाद सुई हाथ में नहीं लेते है। रात में मेंहदी लगाते है।
माताजी की पूजा की सामग्री में कुंकु चावल, मोली, मेंहदी काजल, भीगे हुए मोठ, बाजरी, सभी भोजन सामग्री, पानी, फूल पैसे, मक्खन लेते हैं। विधि पूर्वक माताजी की पूजा करते हैं पूजा के पश्चात खेत बोते हैंं मिट्टी को चोकोर करके उसमें पंथवारी रखकर मोठ बाजरी डालते हैं,पानी से सीच देते हैं, उसी मिट्टी से एक लडु बनाकर घर ले आते हैं फिर कहानी कहते हैं। उस दिन दोनों समय ठण्डा भोजन करते है यदि नहीं रह सकते हो तको चाय-दूध गरम पी लेते हैं।
जिस दिन ठण्डा खाते हैं उस दिन दोपहर को जंवारा बोते हैं मिट्टी को अच्छी तरह सेछान लेते है गोबर की सुक्की कण्डी को तोडकर कूट छान लेतेहैं, गेहूँ जो से दो कुन्डो (मीट्टी के कुन्दे) में जंवारा बोते है एक तह मिट्टी एक तह जो एक तह मिट्टी एक तह गेहूँ इस प्रकार बोते हैं। जब जंवारा बोते हैं तो घर की औरते बैठती हैं टीका लगाकर मोली बांधती हैं चार गीत जंवारो के गाती हैं चार-पाँच गीत गणगौर के गाती हैं बोये हुवे जंवारो के कुन्डो को दो-तीन दिन ढक्कन लगा कर रख देते हैं हलका-हलका पानी डालते हुैैं फिर बाहार रख देते है रोज सींचते हैं।
दूसरे दिन बोदरी की पूजा करते है एक खडी इंट रख देते है उस पर दहीं राबडी व पहले दिन की सारी सामग्री से पूजा करते है बच्चों को धोक दिलवाते है।
शीतला सातम की कहानी
एक बुढिया माई थी जि की बासेडा न ठण्डी रोटी खाती और सीतला माता की पूजा करती। गाँव में कोई भी कोनी करतो। एक दिन सारे गाँव में आग लागगी, सारो गांव जलगो पन बुढिया माई की झोपडी कोनी जली। सब कोई आकर पूछ न लाग्या कि आ कांई बात हुई बुढियां माई तेरी झोपडी किया कोनी जली बुढिया माई बोली कि म वासेडा न ठंडी रोटी खांऊ और शीतला माई की पूजा करुं जिके से कोनी जली, थे सब कोनी करो, पिछे सब कोई सारा गाँव में हेलो फिरा दियो कि बासेडा न सब कोई ठण्डो खाइयो, और शीतला माई की पूजा करियो, जिके दिन स सब कोई शीतला माई न धोक लगावण लागगा हे शीतला माई बुढिया माई की रक्षा करी, बैयां ही सबकी करियो, बाल बच्चा की म्हारी सबकी करियो।
विनायक जी की कहानी
एक छोटो सो छोरो आपका घरा स लडकर निकलगो बोल्यो कि आज तो म्हे विनायक जी सुं मिलकर ही घरां पाछो जाँउगा, छोरो जातो-जातो बावनी उजाड में चलो गयो विनायक जी सोच्यो कि यो मेरे नाम से घर से निकल्यो है सो इन धंरा पाछो नहीं भेजांगा तो बाघ बकरी खा जासी। विनायक जी बुढा ब्राह्मण को भेष घर कर आया और पुछयो कि छोरा तुं कठे जावे है वो बोल्यो कि म विनायक जी सुं मिलने जाउं हुं विनायक जी बोल्या कि म्हे ही विनायक जी हूँ तने के चाहिए सो मांग से एक ही बार में मांगिये- छोरो बोल्यो कि – काई मांगू बापूजी ढोलो हिंग राज को पूंछो गजराज को, दाल भात,गंवा काफलका, उपर ढबसो खांड को परोसन वाली इसी मांगू जाणे फूल गुलाब को विनायक जी बोल्या की छोरा तूं तो सब कुछ मांग लियो जा अईयाँ ही हो जासी। छोरो धरा गयो देख एक छोटी सी बीनणी पीडा पर बैठी है, और घर में भोत धन सम्पति हो गई है। छोरो आपकी माँ नबोल्यो कि माँ देख म बिन्दायक जी सु मांग कर कितो धन ल्यायो हूँ। माँ भोत राजी होगी है विनायक जी महाराज जीसो बी छोरा न दियो उसो सब न दियो कहतां न सुनता न आपना सारा परिवार न देईयो।
शीतला माता का गीत
आई माता से जल माता देश में एक माय,
परदेश में ए माय
अट सट गधिया पिलाण मोरी माय
आई माता सेडल माता शहर में एयांय
थर हर काँपी म्हारा बालकियाँ री मांय
थे मत डरपो म्हारी बालकियांरी माय
कुशल करेगी म्हारी सेडल माय।
धोक गोरा दशरथ जी री नार,
थाने ए निवाजे म्हारी सेडलमाय।
ठण्डी रोटी राबडी ए माँय,
यो माता रो भोग मोरी माय।
ठण्डे ठण्डे धोक्स्यां ए माय,
पिछे ए पडेगी धूप मेरी माय
माता रो मड सांकडो ए माय
जातीजा रो बडो परिवार मोरी माय
माता ए दररथ जी री पाग
सलामत राखो ए म्हारी सेडल माय
बहुत कोशल्या थार चुडला
माता… राखी बा-धो मोरी माय
माता उदोए, बीदो कर नीसरी,
माता उदोए हुवो परभात म्हे सेडल थारा जातीडा
माता उभी दशरथ जी री कोटडया,
जांक रामचन्द्र सरीसा पूत म्हे…
म्हार लव कुश न दूंढी पंचफूली,
म्हारे रामचन्द्र जीरा जतन कराया म्हे…
दशरथ जी ओ दरवाजो खोल थां,
पर महर करे छ माता शीतला
म्हाने कांई फरमावो माता शीतला थां,
से लेसी गढ जोडेरी जात
थाने देसी जी बेटा पोता री जोड था पर…
राम चद्रजी…
थांस लेसी जी रावडी रोटियाँ री जेट
था पर…
था ने देसी जी गोद जरुला पूत
था पर…
व्यंजन बनाने की विधि :-
राब:- दो भाग बाजरी एक भाग मोठ या मोठ की दाल मिलाकर आटा पिसवा ले 200 ग्राम जितना आटा 250 ग्राम जितना दही या छाछ लेकर आटे में मिला देवे 1.5 किला जितना गुनगुना पानी उससे डाल कर 4-5 घण्टे तक धूप में रख देवे। पानी उपर-उपर आ जायेगा उसपानी कोएक बर्तन में डालकर गैस पर चढा देवे नमकाल करलगातार हिलाते रहे जब पानी उबलने लग जाए तोगाढा वाला भाग धीरे-धीरे हिलाते हुए पानी में डालते जाए, पुरा होने पर अच्छा सा बडका दिला कर गेस बन्द कर दे। दूसरे दिन सुबह राब को चलनी से छान लेवे, दही व सैके हुए जीरे के साथ खाये।
दलिया :- 150 ग्राम बाजरी दरदरी पीस लेवे, उसमें घी डालकर हाथ से मिक्स कर लेवे एक मोटे तपेले में पानी डालकर गेस पर चढा देवे जब पानी उबलने लगे तो दलिया धीरे-धीरे डालते जाए ध्यान रहे कि गुठले नहीं पडे लगातार हिलाते रहे, जब सीजने लायक हो जावे तो उसमें गुड डालकर हिलाये, जब अच्छे से सीज जाव तो गेस बन्द कर देवे।
एक पानी के चांवल :- एक कटोरी चावल में 2 कटोरी पानी व थोडा सा घी डालकर सीजा लेवे।
गुलगुले :- शक्कर का पानी बना लेवे, उसमें थोडा मोटा आटा या खा डाले, बाकी गेहूँ का आटा डालकर घोल बना लेवे घोल में थोडी सी सोंफ मोटी इलायची डालकर धीमी आंच में तल लेवे। मोठ बाजरी मिलाकर आटा पिसवाते है उससे बाजरी की रोटी बनाते हैैं दो भाग चन्ने की दाल- एक भाग चावल पिसवा कर आटा लेते है उससे मीसी रोटी बनाते हैं।
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