त्रेता युग की यह है कहानी। राणव का राज हुआ, बढा पाप, पृथ्वी के ऊपर, सत्य धर्म का नाश हुआ भुमि भार के तारणहार लिया रामचन्द्रजी ने अवतार।
जी हां चैत्र सुदी नवमी को श्री रामचंद्र जी ने अयोध्या में अवतार लिया माता-पिता की आज्ञा शिरोधार्य करके 14 वर्ष वनगामन किया रावण जैसे दुष्टोें का संहार किया, किस परिस्थित में अपना कैसा व्यवहार होना चाहिए, राजा को प्रजा का पालन कैसे करना चाहिए ये आदर्श हमें भगवान राम से मिला, राज धर्म, गृहस्थ धर्म से अधिक महत्व रखता है एक राजा के लिए, यह हमें रामचंद्रजी के आदर्श से सीखने को मिलता है, आज एक नेता भी अगर रामचंद्रजी के आदर्शों पर चले तो वो दिन दूर नहीं कि भारत वर्ष में फिर से सत्ययुग का आगमन हो जायेगा।
राम नवमी के दिन दोपहर सवा बाराह बजे रामजी मंदिर में आरती होती है, वहाँ पर हम पंजेरी व मख्खन का प्रसाद चढाते हैं दर्शन करते हैं मंदिर से घर आकर घर में भगवान की आरती करते हैं, सुबह भगवान को नहला कर नवीन वस्त्र पहनाते हैं। आरती के बाद खाना खाते हैं। खाने में उस दिन नमकीन-मीठे चावल बनाते हैं।
पंजीरी बनाने की विधि :- साबुत धनिये को सेक कर पीस लेते है, साथ में थोडी सी सूंठ अजवाइन डाल देते है, घी गरम करके गौंद के फूले पाड लेते है घी में धनिया सेक कर गोंद के फुले व गिरीकिस कर डाल देते है। ठण्डा होने पर शक्कर मिला लेते है।
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