बडी तीज का त्यौहार सुहाग का प्रतीक है। दूज के दिन तीज का सीन्जारा करते है, सुबह माथा धोते है, अच्छी रसोई बनाते, एक ही शहर में बहन बेटियां होती है तो खाना खाने बुलाते है। अन्यथा मीठाई भेजते है। आधी रात को अधरातिया करते है। अधरातिये का मतलब है आधी रात को कुछ खाने का मेहन्दी लगाते है।
सुबह कच्ची साडी पहन कर निमडी माता माडते है। मांड के सुखने के लिए रख देते है। दोपहर के बाढ अच्छी रसोई बनाते है। इस दिन वशिेष तोर से सतु का पुजन व प्रसाद होता है तीज के पांच या सात दिन पहले अच्छा दिन देखकर यानि (रवि, सोम, गुरु, शुक्रवार) सत्तु बनातेहै। सत्तु हमारेयहाँ तीन प्रकार के बनते है, गेंहु के, चावल के, चन्ना के।
सन्तु बनाने की विधि (गेहुं के) :- एक किलो गेहुं का आटा लेकर उसकी मोगरी पाड लेते है। मोगरी पाडने का तरीका – गेहुं के आटे में घी, दुध व थोडा पानी डालकर कुछ देर रख देते है, फिर बडी चालनी से छान लेते है। घी में धीमी आंच में सेक लेते है। अच्छी सिकने के बाद ठण्डा करलेते है। किलो आटे में 700 ग्राम चीनी डालते हैं, चीनी अच्छी तरह मिक्स कर लेते है, फिर उसे सत्तु का आकार देकर पीन्डे बान्ध लेते है। इसी प्रकार चन्ना (बेसन का आटा) के सातु बनते है चावल के सातु की मोगरी नही पाडते है चावल धोके पिसवा करमेदा कीचालनी सेचाल कर सेकते है। फिर कुमकुम को घी में घोलकर सातुओं पर टिकियां लगाते है, सुके मेवे से सजाते है, पीन्डो पर रुपिया दो रुपियो के सिक्के लगाते है। पति-पत्नी जोडे से पीन्डा पासते है। उसे आधसेरी कहते है, एक डिब्बे में सत्तु जमाकर उसमें नारियल लगाकर सजाते है। आदमियो के एक-एक पिन्डे चावल के भी बनातेहै। आधसेरी जिनके पीहर से आती है तो ठीक हे अन्यथा घर पर बना लेते है। चन्द्रमा जी को अरग देने के बाद पति-पत्नि जोडे से बैठते है दोनो के तिलक लगाते है पति चाकु से नारियल सहित पीन्डा पसवाता है, सात बार पत्नि को देताहै। सबसे पहले नीम्बडी का पत्ता खाते है। शाम कोकच्चा दुध व दही मिलाकर रखते है। उसे फैदड कहते है खाना खाते वक्त पहले फैदड को तुरई के पत्ते का दोना बनाकर उसमें लेकर पीते है फिर सत्तुलेते है फिर खाना खातेहै।
शाम को नीबडी माता का पूजन करते है न्हा धो कर अच्छी साडी पहन कर निम्बडी माता की पूजा करते है, कहानियाँ कहते है, सब चीजे निम्बडी माता में देखते है दीया सारे फल, चांदी, निम्बरी, कुसमल (लाल कपडा) मोती, नथ, वगेरह हर चीज देखकर यहकहते है निम्बडी मे मोती दिख्यो दिख्यो जिसो ही ठुठयो, जो चीजे देखते है उसका ही नाम लेते है।
चद्रोदय होने पर वो ही पानी जो पूजा मेंलेते है उससे रग देते है। अरग देकर कुंकु, चावल चढाते है। चार परिक्रमा करते है। यह मंत्र बोलते है।
सोना को सांकलो गल मोतियां रो हार
काजली तीज ने अरग देता
जीयो म्हारा बीर भरतार
यह मंत्र चार बार बोलते है। चन्द्रमा जी को हाथ जोडकर सभी बडों को प्रमाण करते है। सासुजी को पगे लागनी देते है।
पूजा की सामग्री :- कच्चा दुध, कुंकु, चावल, मोली, सेव, नासपती निबुं, निमडी को ओढाने का कपडा गोटा लगाया हुआ, फूल, पैसे, केला, दिपक, काजल की डिब्बी निम्बडी का लड्डु (सत्तु का लडु जो सन्तु अपना बनता है जिस चीज का उसी चुर्ण का लड्डु निम्बडी पूजन का बनता है।)
सत्तु का एक पिण्डा पितरजी के नाम का भेजते है, पितर जी के टिफिन के साथ, एक पिन्डा व ब्लाउज पीस ब्राह्मणी को पगे लागकर देते है जिसे सुहाग पिन्डा कहते है। दुसरे दिन सुबह निम्बडी को प्रणाम करके पता मुंह में लेकर बडी करते है फिर पधरा देते है।
बडी तीज का उद्यापन
बडी तीज के उद्यापन में सतरह डिब्बो में सातु जमाकर 16 औरते+1 ब्राह्मणी को देते है। साखिये से साख भरवाते है।
बडी तीज की कहानियाँ
बडी तीज के दिन सबसे पहले सिन्जारा की कहानी कहते है।
एक ब्राह्मण हो बीरे चार बेटियाँ थी, सिन्जारा रो दिन आयो, घर में कुछ कोनी थो ब्राह्मणी ब्राह्मण ने कियो, घर में कुछ कोनी छोरियां न कांई सिन्जारा करवाउं, ब्राह्मण कियो आज तो मैं चोरी करने वासते जाउं चोरी हीकरनी है तो राज दरबार में हीकरुं, शाम री टेम में जणाराजा रो भण्डार घर बन्द हुणेरी टे हुई ब्राह्मण लुक र बेठगो जीतो समान सिन्जारा वास्ते चहि जतो बितो ले लियो पछ सोच्यो घर कणा जाऊ कणा ब्राह्मणी पीस सी सो अठे ही पीस लुं, बो पिसण वास्ते बेठगो घटी री आवाज सुणर चोकीदार जाग गया जाकर राजा ने फरियाद करी राजा भण्डार खुलवायो देखे तो एक ब्राह्मण देवता आटो पीस रिया हुँ। राजा कियो तुं कुण है तो केवे म्हे ब्राह्मण हूँ म्हारे घर में कुछ कोनी छोरिया रो सिन्धारो करावण वास्ते चोरी करणे आयो हुँ। राजा कियो इरे घर जाकर पतो करो, बात किती कांई साची है, दो सिपाही ब्राह्मण रे घरे गया, ब्राह्मणी घर में घुम रही थी, और केय रही थी। कन्थलो तो आयो पर पन्थलो नहीं आयो सिपाही बोल्या कांई बात है तो केवे म्हारो पति राज दरबार में चोरी करण वास्ते गयो है। सिपाही आकर कियो बात तो साची है राजा सो चण लाग्यो, म्हारे राज में इसा गरीब ब्राह्मण थेला भर-भर सामाना ब्राह्मण रे घर पहुचाया है, झट ब्राह्मणी, लाडु बनाया है, छोरियां ने सिन्जारा करवाया है, हे तीज माता जिसा ब्राह्मणी री छोरियां रा सिन्जारा करवाया बिसा सबरा करवाइज्यो।
एक सेठ हो पगा सुं पांगलो पर बिने रोज वैश्या क अठ जाणो री आदत रोज शाम पड तैयार हो जावे, बिरी लुगाई बहुत पतिव्रता रोज कान्धे पर लेकर जावे बो उपर जाकर हेलो मारे कि तुं घरां चली जा जद बा घरां जावो ओ बीके रोज को नियम थो। सारा गेणा रुपया लता बो वैश्याके अठरख रख्या था, घणा-घणा दिन हुवा काजलीतीज आई, शाम का बोतो तैयार होकर बोल्यो मन छोडकर आ, बा छोडन वास्ते गी,रोज तो वो हेलो कर देवतों वि दिन तोवो भूल गयो, लुगाई किया बिना घर गई नहीं, लुगाई मन में वीचार करे, कि चांद उगण री टेम हो गई, पूजाकण करसुं पर हरि इच्छा मानकरबठेहीउभी रही,जोरदार बिजली कडकण लागी, देखता मेह बरसन लागगो, तीज माता मन में वीचार करियो कि इरो सत तो मने राखणो ही पडसी जोरदार पानी रा नाला चाल रया था, नाला में दो दोनो तैरता-तैरता आया जिका में पूजा रोसारो सामान-सातु दुध,दही, निम्बडी रीडाली उपर सुं आकाशवाणी हुई, सावित्री दोनो घोल-घोल पी, सावित्री दोनो घोल-घोल पी झट बा तो दोना हाथ में लिया है विधि सर पूजा करी है चन्द्रमा जी उगगया है,अरग दियो है इते म्हे हीबीरी बुद्धि सुधरी एरे एरे बा बिचारी नीचे खडी हुसी नीचे देखे तो लुगाई भीज योडी खडी है झट वेश्या ने छोडी है बिसुं रुपया गहना सब लिया है नीचे आयो हे लुगाई ने भेर घर आयो आज रे बाद कदई वैश्या र अढ नहीं जाउ काम में मन लगायो खूब व्यापार बढायो है। है तीज माता जिसो सावित्री रो सत राखियो बीसो सबरे राखिजो।
एकसेठ रे सात बेटा था, बेटे रा विवाह हुयो,तीजरो त्यौहार आयो निम्बडी री पूजा करके आया बेटो संसार सुं चल्यो गयो, छ बेटा परणाया,छको छ ही चल्या गया है, सातवे बेटे रा संबंध आवे, पर सेठसेठाणी के वे म्हारे तो ब्याव करणो हीनहीं है, सगला समझायाटाबर ने परनाणो तोपडसी छोरो रो ब्याव करियो, बहु घर में आई, थोडा दिनबाद तीज रो त्यौहार आयो है, सासुजी केवे बिनणी तैयार होजावो, निम्बडी पूजन ने चाला, विनणी बोली सासुजी निम्बडी पूजण न सिद्ध चाला तो केवे पैड के नीचे बिनणी बोली सासुजी कदई उभी निम्बडी री पूजा नहीं करनी आपां तो घर डाली मगां र निम्बडी मांडा, घर डाली लायाहै आकडे रा पता लाया माटी लाया, निम्बडी मांडी पछ शाम का निम्बडी पूजन करियो निम्बडीरी विधिवत पूजा करने सुं तीज माता प्रसन्न हुया है अखण्ड सोभाग्य दिया है सेठरा छ बेटा लिया जिका पाछा दिया है घर में आनन्द उत्सव हुया है, हे तीज माता निम्बडी माता सगला रो अखण्ड सुहाग राखजो।
बिनायक जी की कहानी
एक अन्धी बुढिया माई थी बिके एक बेटो व बहु थी। ब लोग मोत गरीब था, बुढिया माई रोज गणेश जी की पूजा करती थी, एक दिन गणेशजीबोल्या बुढिया माई कुछ मांगले, बुढिया माई बोली मने कुछ मांगणो ही कोनी आवे कांई मांगू गणेश जी कियो थारे बेटा बहु ने पुछले, जद बा आपके बेटा न पुछी बेटो कियो माँ धन मांगले, बहु ने पुछयो तो बोली सासुजी पोते मांगलो बुढिया माई बड बडावन लागी सबका सब मतलबी है म्हे तोसोची आंख्या मागुं पडोसन सुन ली, बोली बुढिया माई केबात है बुढिया माई सारी बात बतादी पडोसन बोली रामारी क्यूं धन मांगे, क्युं पोतो मांगे थोडा दिन जिवेगी दीदो घोडा मांग ले। घर आकर बुढिया माई सोची कि बेटा-बहु राजी हुवे जिसो भी मांगनो चहिए, आपां र मतलब री भी मांगनी चाहिए दूसरे दिन गणेश जी आया कियो कि कुछ मांग ले बुढिया माई बोली दीदा घोडा दे सोनेके कटोरे में पोते ने दुध पिता देखुं अमर सुहाग दे। निरोगी काया दे, भाई भतिजा न सारा परिवार न सुख दे। मोक्ष देगणेशजी बोल्या बुढिया माई तुं तो मने ठग लिया पण तेरे सब कुछ हो जासी इतो कहकर गणेश जी अर्न्तधान हुं गया, बुढिया मात्र रे सब कुछ बयांई हो गयो, हे गणेशजी महाराज जिसो बुढि
या माई न दियो बेयां सबने दिज्यो।
आडी बाडी कन्या वाडी….
(वैशाख मास में लिखी हुई है।)
निम्बडी का गीत
जाइज्यो पन्ना मारु बीकाणे ओ सेर, कोई बीकाणे ओ
सेर आंता तो लाज्यो प्यारी धण री निम्बडी जी म्हारा राजा….
लाया पन्ना मारु तोरगे ओ टांग, कोई तोरगें ओ टाग
लाय उतारी चन्दन चोक में ओ म्हारा राज….
उगी निमडली पान दुपान, कोई पान दुपान, उगन्ती
जुग न मोइयोजी म्हारा राज….
घी-गुड री पाल बन्धाय, कोई पाल बन्धाय, निम्बडली
ली सिचांदी काचा दूध सुं जी म्हारा राज….
ए कुण तोडे निम्बडली रा पान कोई निम्बडली रा पान
आ कुळ तोडे रंग री साट की जी म्हारा…
ननदल बाई तोडे इकापान, कोई तोडे इका पान, देवरियो
नखरालो तोडे रगं री साट की जी म्हारा….
ननदल बाई ने सासरिये खिनाय कोई सासरिये खिनाय
देवरियो खिनादो रंग री चाकरी जी म्हारा….
ननदल बाई ने चुन्दडली रो बेस, कोई चुन्दडली रो बेस
देवर न परनादयु म्हासे छोटी बेनडी जी म्हारा राज….
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