क – कर के सुहाग का प्रण।
र – रच मेंहदी रंग नव।
वा – बालाएँ व्रत रखकर।
चौ – चौकी पर अर्चाधर
थ – थहराती हैं सूरज यह है सौभाग्य सहज॥
ये हिन्दू संस्कृति ही है, जहाँ कि स्त्रियों का पतिव्रत धर्म पालन विश्व के सामने एक मिशाल है, करवा चोथ के दिन हर औरत अपने सुहाग की रक्षा के लिए व्रत रखती है, दिन भर भूख प्यास प्यार से सहते हुए अपने प्रियतम के लिए मंगल कामनाकरतीहै। कि इस जन्म में मुझे मेरे प्रियतम काजो प्यार मिला सातों सातों जन्मो में यही प्यार व यही प्रियतम मुझे मिले मैं सदा सुहागन रहूँ मेरे सुहाग का दीपक हमेंशा जगमगता रहे।
दिपक मेरे सुहाग का जलता रहे
एक जन्म तो क्या,
सातों जन्मों में आपका प्यार युही मिलता रहे।
हर मुश्किल होगी आसान,
जब आपका हाथ मेरे हाथ मेंरहे।
करवा चोथ के पहले दिन हम सिर धोते हैं, रात को मेहन्दी लगाते हैं। सुबह न्हा धोकर कच्ची साडी पहन लेते हैं। दोपहर के बाद अच्छी रसोई बनाते है। शाम को न्हा धोकर पूजा की तैयारी करते हैं, करवा बनातेहै।
करवा बनाने का तरीका :- चांदी या तांबे के लोटे में थोडा सा पानी, बोर, चवंलाफली, पैसे डालकरलाल कपडे से उसका मुँह बाँधते हैं। बाकी पूजा वेशाख की चौथ जैसे ही करते हैं, करवा चोथ में करवे की पूजा करतेहैं, करवा चोथकी कहानी कहते हैं, चन्द्रमाजी को अरग देते हैं वही मंत्र बोलते हैं।
सोने को सांकलो, गल मोतियां को हार।
करवा चोथ के चन्द्रमा ने अरग देता जीयो म्हारा बीर भरतार, अरग देने केबाद करवा पिलाते है, अपना करवा अपने आप नहीं पिते है, देरानी-जेठानी, सास, बहु, ननद-भाभी कोई भी आपस में करवा पिलाते है, जिस करवे की अपन ने पूजा की उसी करवे से अपन करवा पीते है।
करवा पिने का मंत्र :- करवो पीए करवो पी, भायां री बेनड करवो पी, धणी भुखाली करवो पी, चालनी में चांद देखणी करवो पी, मिनख मारणी करवो पी, करवा पी कर, खाना खाते है, सासुजी को पगेलागनी देते है।
करवा चोथ की कहानी
एक साहूकार क सात बेटा एक बेटी। सातूँ भाई, बैण न साथ लेकर, जीमता। कार्तिक लागत की चौथ आई, भाई आपकी भैण न बोल्या कि आव बाई जीम। बहन बोली आज तो मेर करवा चौथ को बरत है, सो चाँद उगन स जीमुंगी। भाई सोच्या कि भैंण भूखी रवगी, सो एक भाई दीवो लिये, एक भाी चालनी लेकर टीबाक ओल होकर, दीयो चास कर चालनी ढक दी और कयो कि भैंण चाँद ग्यायो, अरग दे ले। भैंण भाभियाँ बोली कि बाई जी थारो चाँध उग्यो है, म्हारो तो रात न उग्सी। भैंण अकेली ही अरग देकर भांया का साथ जीमंण बैठगी। पहल गासिया म बाल आयो दूसरा म सिवाल आयो और तीसरा म बाई न सासर लोग लेण आगा कि बाई को पावनो भोत बीमार है, सोजल्दी भेजो। माँ बाई न पैरन खातर तीन बार बुगच्यो खोल्यो, तीनू बार धोलो भातो निकल्यो। बाई न जद धोलो ही पहना कर सासर भेज दियो। माँ एकसोना को टक्को पल्ला क बाँध दियो और बोली किरास्ता म काई भो मिलऊँ क पगा लागती जाये और जिकी तन सुहाग की आशीष देव, ऊँ न सोना को टक्को देकर पल्ला क गाँठ लगा लियो। रास्ता म सब जणी भांया का सुग देख की आशीष देती गई, कोई भी सुहाग की आशीषकोनी देई।सासरा का दरवाजा परछोटी सी नणद खडी थी, बाऊँ क पगा लागी तो बोल कि सील, सपूती हो, सात पूत की माँ हो, मेरा भाई का सुख देख। सोना को टक्को ननद न देकर पल्ला कागांठ बांधली। भीतरगई तो सासु पीडो कोनी घाली, बोली कि ऊपर मरेडो पड्यो है, बठ जाकर बैठजा। ऊपर गई देख तो धणी मर्यो पड्यो है, ऊँ क कन बैठगी और ऊँन सेवण लागगी। बिकी सासु रोजिना बची-खुची रोटी दासी न देकर भेज देती, कहती- मर्यो सेवडी न रोटी दिया। थोडा दिन बाद मंगसिर कीचौथ आई और बिन बोली- करवो ले करवो वे करवो ले। जद बा बोली कि हे चौथ माता! या उजडी तो थे ही सुधारेगा, म न तो सुहाग देणो पडसी। चौथ माता बोली कि पोह कीचौथ आवगी, बा मेरस बडी है, बात न सुहाग देसी। इस तरियां सारी महीने की चौथ आती गई, सब अयांही कहती गई कि मेरस बडी चौथ आवगी, बात न सुहाग देसी। पिछ आस्योज कीचौथ आई और उन बोली कि कार्तिक की चौथ तेर पर नाराज है, तूँ ऊँ का पग पकड लिये,वा ही त न सुहाग देसी। पिछ कातिक की चौथ आई और गुस्सा मबोली कि- भायां कीप्यारी करवो ले- दिन म चाँद उघानी करवो ले- धणी भुखाणी करवो ले- व्रत भांडणी करवोले। जद साहूकार की बेटी बिका पग पकड लिया, रोन लागी और बाली कि हे चौथ माता! मेरो सुहाग तो थार हाथ म है, था न देनो पडसी। चौथ माता बोली कि पापिनी- हत्यारी मेरापग क्यूँ पकड कर बैठी है। बा बोली कि मेरी बिगडी अब थ ान ही सुधारनो पडसी, म न तो सुहाग देनो पडसी। चौथमाता राजी होगी और आँख म स काजल काड्यो, नुवम स मैहन्दी काडी, टिका म स रोली काड का चीटली आंगली को छाँटो दियो। देता ही ऊ को धणी उठ कर बैठगो और बोल्यो कि भोत सुत्यो। बा बोली कि क्यां का सुत्या, म न तो बारा महीना होगा सेवतां, चौथ माता सुहाग दियो है। धणी बोल्यो कि चौथ माता कोछवाव करां। जद बा चौथ माता की कहाणी सुणी, करवो मिनस्यों, चूरमो बनायो। दोनू जणा जीम कर चोपड-पासा खेल न लाग्या। नीच स ऊँ की सासु दासी क हाथ रोठी भेजी। दासी चोपड-पासा खेलता देख सासु न आकर बोली कि ब तो दोनू जणा चोपड-पासा खेल है। सासु ऊपर आई, देख कर भोंत खुशहुई औरपूछी कि यो सब कैंया होगो।बहू बोली कि म न तो चौथ माता सुहाग टूठी है और सासु कगला लागली। सासु सुहाग की भोत आशीष देई, सारी नगरी म हेलो फिरा दियो कि पुरुष की लुगाई, बेटा की माँ सब कोई चौथ का व्रत करियो। तेरह चौथ करियो। हे चौथ माता, जिसो साहुकार की बेटी न सुहाग दियो जिसो सब न दियो, कहतां न, सुनतां न, हुंकारा बरतां न, अपना सारा परिवार न दियो।
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