कार्तिक वदी चवदस को रूप चौदस होतीहै। सुबह जल्दी उठकरपीठी बनाते हैं, आटे में घी, हलदी डालकर पानी सेगीला करके शरीर पर लगाते हैं फिर न्हाते हैं। अच्छे कपडे पहन कर मन्दिर जाते हैं। शाम को पितल की थाली में ग्यारह दिये करते हैं। बीच के दिये के नीचे चावल रखते है, एक दिया पितरजी के नाम का रखते हैं,एक भगवान के आगे 1 तुलसी माता केबाकी घर में सभी जगह रखते हैं।
रूप चौदस की कथा
एक योगी ने खुद को भगवान के ध्यान में लीन करते हुए समाधी लगाई। समाधी लगाने के कुछ दिन बाद ही उनके शरीर में कीड़े पड़ गए। बालों में भी कीड़े पड़ गए। आँखों की पलकों और भोहों में भी जुएँ पैदा हो गई। इससे परेशान योगी की समाधी जल्द ही टूट गई। अपने शरीर की दुर्दशा देखकर योगी को बड़ा दुःख हुआ। नारद जी वीणा और खरताल बजाते हुए वहाँ से गुजर रहे थे। योगी ने नारद जी को रोककर पूछा की प्रभु चिंतन में लीन होने की चाह होने पर भी यह दुर्दशा क्यों हुई ।
नारद जी बोले। हे योगिराज आपने प्रभु चिंतन तो किया लेकिन देह आचार नहीं किया। क्योंकि यह कैसे करते है आपको पता ही नहीं है। समाधी में लीन होने से पहले देह आचार कर लेते तो आपकी यह दशा नहीं होती। योगिराज ने पूछा अब क्या करना चाहिए। तब नारद जी ने कहा की आपको रूप चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर शरीर पर तेल की मालिश करें। इसके बाद अपामार्ग ( चिचड़ी ) का पौधा जल में डालकर उस जल से स्नान करें। इस दिन व्रत रखते हुए विधि विधान से भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करें तो आपका शरीर स्वस्थ और रूपवान हो जायेगा। योगिराज के ऐसे करने पर वे स्वस्थ और रूपवान हो गए।
रूप चौदस का दिन बहुत शुभ दिन है। अतः प्रसन्न रहकर भक्तिभाव से अपने इष्ट की पूजा करने से अभिष्ट फल की प्राप्ति होती है।
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