विश्व व्यापार संगठन की जिनेवा में आयोजित विकसित और विकासशील देशों की दोहा ाम की वार्ता एक बार फिर विफल हो गई है। चीन, भारत और ब्राजील जैसे देशों ने अपने पक्ष पर अडिग रहते हुए और अमेरिका सहित विकसित पश्चिमी देशों के हर तर्क और दबावों को ब़खूबी दरकिनार करते हुए, उनके कृषि-उत्पाद के आयात नियमों में संशोधन के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। जहाँ तक भारत का सवाल है, समझा यह जा रहा था कि डब्ल्यू.टी.ओ. की वर्तमान वार्ता में अमेरिकी दबाव के आगे वह ज़रूर झुक जाएगा और अपना समर्थन प्रस्ताव के पक्ष में दे देगा। लेकिन भारत ने जिस दृढ़ता के साथ अपने किसानों के पक्ष में इस प्रस्ताव का विरोध किया, उससे यह साबित हो गया कि भारत की विदेश नीति हर दबाव को झेलते हुए भी अपनी आजादी का सौदा करने के पक्ष में नहीं है। निश्चित रूप से 9 दिन तक चलने वाली बेनतीजा वार्ता से अमेरिका और अन्य विकासशील देशों को भारी निराशा हुई होगी, लेकिन वहीं विश्व मंच पर भारत ने यह संकेत भी प्रसारित किया कि भारत अपने हितों के प्रति सचेत है तथा उसकी विदेश नीति को किसी दबाव में नहीं लाया जा सकता।
ऐसा नहीं है कि इस संबंध में भारत को दबाव में लेने की कोशिश कोरी कल्पना थी। राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह की आशंका विपक्षी भाजपा भी प्रकट कर रही थी और वामपंथी दल भी। न्यूक डील के मुद्दे पर यह प्रचारित भी किया गया था कि इस समझौते के जरिये भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को अमेरिका अपना ग़ुलाम बनाना चाहता है। इस परिप्रेक्ष्य में दोहा ाम की इस वार्ता में यह आशंका भी प्रकट की जा रही थी कि भारत अपनी पुरानी प्रतिबद्धता से बाहर आकर प्रस्ताव को समर्थन दे देगा। इसके लिए अमेरिका और उसके राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने भारत पर भारी दबाव डाला भी था। वार्ता के इसी ाम में बुश ने एक टेलीफोनिक वार्ता के जरिये प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इसे समर्थन देने का निर्देश भी दिया था। दरअसल बुश न्यूक डील की ही तरह दोहा वार्ता की सफलता को भी अपने शासनकाल की एक महत्वूपर्ण उपलब्धि के रूप में दर्ज कराना चाहते थे। लेकिन भारत ने सारी शंकाओं-आशंकाओं को झुठलाते हुए अपनी पुरानी प्रतिबद्धता से पाँव पीछे खींचना उचित नहीं समझा। वार्ता में भारत के वाणिज्य मंत्री कमलनाथ ने स्पष्ट तौर पर घोषणा कर दी कि भारत अपने किसानों के हितों के मूल्य पर किसी प्रस्ताव को समर्थन नहीं दे सकता। खुशी की बात यह है कि उसके इस स्टैंड की चीन और ब्राजील जैसे देशों ने खुल कर हिमायत की।
कमलनाथ ने बिना किसी हिचक के विकासशील देशों की इस संबंध में अपनायी जा रही दोहरी नीति को उजागर किया, जो अपने किसानों को तो कृषि-उत्पादों पर भारी सब्सिडी दे रहे हैं और भारत सहित अन्य विकासशील देशों पर डब्ल्यू.टी.ओ. के जरिये दबाव डाल कर इसमें कटौती चाहते हैं। कमलनाथ ने कृषि के संबंध में पश्चिमी अवधारणा को भारतीय संदर्भ में यह कहते हुए ख़ारिज किया कि भारतीय किसान के लिए कृषि सिर्फ व्यापार नहीं है, वह आजीविका का साधन भी है। उनके अनुसार भारत उस किसी भी प्रस्ताव को अपना समर्थन नहीं दे सकता जो उसके किसानों की आजीविका पर कुठाराघात करता हो। ऐसा नहीं है कि दोहा वार्ता में पहली बार भारत ने अपना यह पक्ष रखा हो। वह तत्संबंधी वार्ता में यही कहता आया है, जो अबकी बार कहा है। अंतर यह है कि इस वार्ता में न्यूक डील पर हुए कुप्रचार की वजह से यह धारणा बनने लगी थी कि भारत अमेरिकी दबावों के चलते अपनी नीतियों में परिवर्तन लाएगा, लेकिन उसने बहुत मजबूती के साथ हर दबाव को ‘डी-फ्यूज’ कर दिया।
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