कन्यादान

राम प्रसाद अपनी लड़की की शादी की तैयारियों में लगा हुआ था। एक अकेली जान, हजारों काम। कल लग्न लेकर जाना था। दहेज की वस्तुएं आज ही लानी थीं। लिस्ट बना रहा था, तभी उसकी पत्नी बोली, ‘‘अब बस भी करो। क्या सारा घर इसी पर लुटा दोगे?’’ इस पर रामप्रसाद बोला, ‘‘भगवान, आगे वालों की मांग तो पूरी ही करनी पड़ेगी, नहीं तो अपनी लाडो को हमेशा के लिए ससुराल में ताने सुनने पड़ेंगे। हमारी लाडो अगले घर में राज करे, तभी तो मैं इतना सब कुछ कर रहा हूँ।’’ यह सुनकर उनकी बड़ी बहू बोली, ‘‘पापा जी, इस एक के सुखी जीवन की कामना के लिए आप घर और जमीन को गिरवी रखकर हम सबका जीवन बर्बाद कर रहे हैं। अपने बूते से अधिक दहेज देकर हम इसकी तकदीर नहीं बदल सकते। हमें बबली को उतना ही देना चाहिए, जितनी हमारी हैसियत हो और बबली का वैवाहिक नवजीवन आराम से आरंभ हो सके। सही मायने में यही कन्यादान होता है। अपनी हैसियत से ज्यादा देना तो दहेज होता है और दहेज दोनों पक्षों को बर्बाद कर देता है, जबकि कन्यादान हमारी प्राचीन संस्कृति की एक सभ्य एवं स्वस्थ्य परंपरा है, जो दोनों पक्षों को जोड़ती है।’’

You must be logged in to post a comment Login