साठ के ऊपर के हो चुके बेहद संजीदा अभिनेता अंजन श्रीवास्तव के अभिनय की उम्र पैंतालिस साल की हो चुकी है। स्टेज, टीवी, फिल्म आदि अभिनय के किसी माध्यम को उन्होंने अछूता नहीं छोड़ा है। छोटे परदे पर मिस्टर वागले की सशक्त पहचान छोड़ चुके अंजन पिछले साल शाहरुख के साथ ही फिल्म चक दे इंडिया के बाद बिल्कुल अलग तेवर में दिखे हैं। सौ के लगभग विभिन्न भाषाओं की फिल्मों में काम कर चुके अंजन इसे अपने कॅरियर की एक नयी पारी मानते हैं।
बीच में सुनने को मिला था कि आपको लेकर फिर वागले की दुनिया की योजना बन रही है?
मैं वागले को छोटे परदे का बहुत उम्दा काम मानता हूँ। मेरे लिए तो यह किरदार एक मील का पत्थर बन चुका है। दोबारा यदि यह बनता है तो मुझे इस किरदार को करने में कोई आपत्ति नहीं है। मगर जहॉं तक मेरा सवाल है, मैंने वागले को बहुत पीछे छोड़ दिया है। अब इस उम्र में बहुत कुछ करने की इच्छा हो रही है। वागले तो एक पुरानी दास्तां बन चुकी है, उसे तो जब लोग चाहेंगे दोहरा दूंगा।
पिछले साल चक दे इंडिया के बाद आपके कॅरियर में एक बड़ा बदलाव आया है?
मैं इसे एक रुटीन टाइप का रोल मानता हूँ, मगर इसके बाद एक चमत्कार हुआ। मुझे उन निर्देशकों ने बुलाकर काम दिया, जिनके साथ मैंने पहले काम नहीं किया था। मैं उनके पास काम मांगने नहीं गया था, पर सभी ने बुलाकर बड़े सम्मान के साथ मुझे काम दिया।
सुभाष घई की फिल्म युवराज में आप क्या कर रहे हैं?
घई ने भी मुझे चक दे इंडिया देखने के बाद यह रोल दिया था। चूंकि उन्होंने मना कर रखा है, इसलिए इस रोल के बारे में ज्यादा विस्तार से नहीं बता सकता। सिर्फ इतना कह सकता हूँ कि यह एक जोरदार करेक्टर है। मैं इसमें कैटरीना के मामा का रोल कर रहा हूँ। यह एक म्यूजिकल फिल्म है और पहली बार दर्शक इसमें बहुत कुछ नया देखेंगे।
इसके अलावा फिल्मों में और क्या हो रहा है?
आठ-नौ नयी फिल्में हैं। अहमद खान की पाठशाला, करण चौधरी की तारा सितारा, सतीश कौशिक की मित्तल वर्सेज मित्तल आदि में मेरे काफी अच्छे करेक्टर हैं। इनमें गंभीर, नकारात्मक, सकारात्मक आदि हर तरह का किरदार करने का मौका मिला है।
अच्छा वागले की छवि से आपको कैसे मुक्ति मिली?
आपने फिर कुछ पुरने तार छेड़ दिए। मैंने छोटे परदे पर अल्पविराम, भंवर जैसे कई धारावाहिकों में काफी दमदार रोल किया है, पर बावजूद इसके वागले हमेशा पीछा करता रहा है। मैं इसके लिए धारावाहिक नहीं, बल्कि फिल्मों का शुागुजार हूँ जिसके चलते मुझे वागले की इमेज से मुक्ति मिली। खासतौर से राजकुमार संतोषी की फिल्मों में निभाये गये मेरे पात्रों ने मेरी प्रतिभा ही नहीं मेरे रेंज को भी साबित कर दिया। सच कहूँ तो इसके बाद ही मैं वागले नहीं रहा।
नाटकों को लेकर कितना व्यस्त हैं?
पिछले दिनों दुबई में खेला गया हमारा प्ले ताजमहल का टेंडर काफी पसंद किया गया है। 25 से ज्यादा साल इप्टा में हो गए। नये पुराने कई नाटक हैं, जो समय निकालकर करता रहता हूँ। नाटकों ने मुझे आर्थिक न सही पर मानसिक शांति बहुत दी है।
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