दूरदर्शन की शुरुआत, उसके विस्तार और तकनीकी प्रोन्नति में कृषकों के लिए दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों की बड़ी भूमिका रही है। भारत में दूरदर्शन के रंगीन कार्यक्रम एशियाड के दिनों में शुरू हुआ। तब भी यह अवधारणा थी कि किसानों को व्यावहारिक प्रदर्शन दिखा कृषि-पंडित बनाया जाए, जो खेती-किसानी को देख, अपनी कृषि भूमि पर प्रयोग कर अंततः कृषि वैज्ञानिक की तरह पारंगत हो सकें।
दूरदर्शन में मेरा सफर लंबा नहीं है। इसके करीब आधे सफर में कृषि कार्यक्रम के एन्कर और टीवी कार्यक्रमों के समीक्षक के रूप में रहा। 28 वर्षों से एन्कर हूँ, तो इसमें से करीब एक दशक से अधिक कार्यक्रमों और विशेषज्ञों के चयन में राजस्थान सरकार का प्रतिनिधित्व किया। 6 जुलाई, 1987 को जब जयपुर दूरदर्शन के प्रथम कार्यक्रम “चौपाल’ की एन्करिंग कर रहा था, तब आने वाले कुछ वर्षों तक, निजी टीवी चैनल नहीं होने के कारण, दूरदर्शन के इकलौते होने से कोई चुनौती नहीं थी। जैसे-जैसे टीवी चैनल आते गए और मनोरंजन का खजाना छलकने लगा तो दूरदर्शन और उसके विकासात्मक कार्यक्रमों की दर्शक संख्या घटी। फिर भी आधे से अधिक दूरदराज के गॉंवों में केबल नेटवर्क न होने से दर्शक वहॉं दूरदर्शन ही देख सकता है।
टीवी चैनलों की होड़ से प्रादेशिक दूरदर्शन केन्द्रों का प्रसारण दिन और समय घटा। शहरी कार्यक्रमों की तुलना में कृषि कार्यक्रमों को समय आवंटन में दोयम दर्जा दिया जाने लगा। यूं जयपुर दूरदर्शन ने स्थानीय केन्द्रों को आवंटित समय के “प्राइम टाइम’ में “चौपाल’ को स्थान दिया। हर बुधवार शाम सवा सात बजे कृषि विभाग के कृषि कार्यक्रम “नवांकुर’ को भी सप्ताह में एक दिन शाम 7.30 बजे का समय दिया गया। नीतिगत निर्णयों के कारण हाल-फिलहाल शाम 6.30 बजे के बाद कृषि कार्यक्रम अब नहीं दिखाए जाते। हां, केन्द्रीय कृषि मंत्रालय और प्रसार भारती ने दूसरी हरित क्रांति के लिए सूचना औजार के रूप में जयपुर दूरदर्शन सहित विभिन्न केन्द्रों से 2005 की पहली छमाही में “कृषि-दर्शन’ की शुरुआत की। मंत्रालय ने प्रसार भारती को स्पष्ट कर दिया कि यह नियमित रूप से दिखाए जा रहे कृषि कार्यक्रमों के अलावा है। जयपुर दूरदर्शन के 2 मई, 2005 के पहले “कृषि-दर्शन’ कार्यक्रम का उद्घोषक लेखक ही था। पहले यह सप्ताह में पॉंच दिन दिखाया जाता था। फिर सप्ताह में तीन दिन नया और दो दिन दुबारा “कृषि-दर्शन’ दिखाया जा रहा है। पहले कार्यक्रम से अब तक ओमप्रकाश इसके प्रभारी कार्यक्रम अधिकारी हैं। वे टीवी कार्यक्रमों के निर्माण और कृषि-लेखन में जाने-माने हैं। मधु पारीक, कविता सिंह और वीरेंद्र परिहार “कृषि-दर्शन’ में सृजन-रंग भरते हैं। कई प्रयोग दर्शक को बांधने के लिए हुए। गॉंव से ही फसल सेमिनार का सजीव प्रसारण, दूरदर्शन स्टूडियो में प्रत्येक सोमवार को फोन-इन कार्यक्रम, गॉंवों के विद्यालयों में जाकर बच्चों के बीच रिकॉर्डिंग, क्विज आदि। पूरे प्रदेश की धड़कन को “कृषि-दर्शन’ में समेटने के लिए टीवी स्ंिट्रंगरों को सम्बद्ध किया गया। कृषि विभाग में टीवी के कृषि कार्यक्रमों की स्क्रिप्ट लिखने के लिए कार्यशाला जनवरी में हुई। इसमें भाग लेने वाले करीब 50 कृषि अधिकारियों ने विभिन्न विषयों पर टीवी के लिए स्क्रिप्ट लिखी। चालीस से ज्यादा स्क्रिप्ट के आधार पर बने कार्यक्रमों का टेलीकास्ट हो चुका है। अब कृषि विभाग के विशेषज्ञों से सीधे संपर्क कर, “कृषि-दर्शन’ के लिए स्क्रिप्ट लिखवाई जा रही है। यह सब नेतृत्व के सहयोग के बिना संभव नहीं था। जयपुर दूरदर्शन के निदेशक नन्द भारद्वाज, उप निदेशक सुधा गुप्ता और सहायक केन्द्र निदेशक हरीश कर्मचन्दानी ने “कृषि-दर्शन’ की परिकल्पना को फलीभूत करना अपना मुख्य सामाजिक सरोकार समझा। परिणाम सामने है। दूरदर्शन के विभिन्न केन्द्रों के “कृषि-दर्शन’ कार्यक्रमों में, जयपुर दूरदर्शन उत्कृष्टता और दर्शक संख्या की दृष्टि से अऩेक बार अवव्ल रहा। दूरदर्शन दर्शक अनुसंधान यूनिट के सर्वेक्षणों में यह तथ्य बार-बार उभरा कि इनहाउस कार्यक्रमों में “कृषि-दर्शन’ दर्शकों में लोकप्रिय है। इसकी दर्शक संख्या इसे जयपुर दूरदर्शन के सर्वाधिक देखे जाने वाले कार्यक्रमों की श्रेणी में लाती है। राजस्थान सरकार के कृषि विभाग ने, हाल ही में विभिन्न जिलों के गॉंवों में अपने कार्यक्रम “नवांकुर’ और जयपुर दूरदर्शन के कार्यक्रम “कृषि-दर्शन’ के बारे में सर्वेक्षण किया। यह तथ्य उभरकर आया कि “कृषि-दर्शन’ 40 प्रतिशत और “नवांकुर’ 18 प्रतिशत लोग पसंद करते हैं। इस उपलब्धि पर जयपुर दूरदर्शन के निदेशक नन्द भारद्वाज का कहना है कि ग्रामीणों के लिए यथासंभव करने की ख्वाहिश हमेशा से रही है। सर्वेक्षणों के आंकड़े मेरे और साथियों की इन्हीं कोशिशों की परिणति हैं। फिर भी मेरा मानना है कि किसानों की ज़रूरतों की कसौटी पर खरा उतरने के लिए यह दूरदर्शन की शुरुआत है। अभी सोच और गुणवत्ता के स्तर पर बहुत कुछ करना बाकी है। इन सबके बीच कई सवाल हैं। कर्नाटक के चुनाव परिणामों में देवगौड़ा की याद हो आई। वे जब प्रधानमंत्री थे, तब उन्होंने 24 घंटे का “कृषि चैनल’ तुरंत शुरू करने की घोषणा की थी। ऐसी ही सिफारिश उन दिनों शंकरलाल गुरु की अध्यक्षता में कृषि विपणन पर उच्चाधिकार समिति ने की। देवगौड़ा की घोषणा मैंने समिति की बैठक में भाग लेकर लौटते समट फ्लाइट में पढ़ी। कई वर्ष हो गए। घोषणा ने आज तक अंडा नहीं दिया। घोषणा-चिड़िया फुर्र हो गई। लेकिन उम्मीद पर दुनिया कायम है। वो सुबह कभी तो आएगी जब दूरदर्शन का कृषि चैनल शुरू होगा। वह सुबह ज़रूर आएगी, जब किसानों की मांग के अनुसार क्षेत्रीय दूरदर्शन केन्द्र कृषि कार्यक्रम शाम सात बजे के बाद दिखाएंगे। शहरी कार्यक्रमों के लिए क्षेत्रीय केन्द्रों द्वारा आवंटित श्रेष्ठ समय का मोह त्यागिए। समझिए, दूरदर्शन आज भी उन ग्रामीण क्षेत्रों के कारण ही सशक्त है, जहॉं केबल की पहुँच नहीं। अन्यत्र ग्रामीण क्षेत्रों में भी किसान ही उसका झण्डा थामे हैं।
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