नीहारिका ने पीछे मुड़कर देखा तो उसे पता नहीं क्यों ऐसा लगा कि दो आंखें उसेे लगातार घूर रही हैं। उसे ऐसा ही आभास बस-स्टॉप पर भी हुआ था। लेकिन उसने इसे एक भ्रम समझा था। बस में चढ़ने के बाद जब वह इत्मीनान से अपनी सीट पर बैठ गई और मुड़कर पीछे देखा तो उसे महसूस हुआ कि भ्रम नहीं वाकई में उसे एक जोड़ी आंखें घूर रही हैं। पीछे खड़ा एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति उसे वाकई गहरी निगाहों से घूर रहा था। उसके घूरने का अंदाज इतना बेधक था कि नीहारिका सिहर गयी। वह सोचने लगी, आखिर यह व्यक्ति कौन है और उसे इस तरह क्यों घूर रहा है?
स्टॉप आने पर जब वह बस से उतरी, तब तक सब कुछ भूल गई थी। शायद इसलिए, क्योंकि उसे देर हो गई थी। लेकिन यह क्या उसने दफ्तर के दरवाजे की सीढ़ियों पर अभी कदम रखा ही था कि फिर दिमाग में कौंधन हुई कि जैसे वही व्यक्ति उसे घूर रहा है। उसने मुड़कर देखा तो धव् से हुआ। यह महज भ्रम नहीं था। लगभग 100 मीटर दूर सड़क पर खड़ा वही व्यक्ति अब भी उसे घूर रहा था। अब नीहारिका डर गई। वह तेज-तेज कदमों से बिना एक क्षण गंवाए दफ्तर के अंदर घुस गई और उतनी ही तेजी से जाकर अपनी सीट पर धम्म से पसर गई और मन ही मन कहने लगी, आखिर वह कौन है? मुझे इस तरह क्यों घूर रहा है? इन सवालों ने उसके अंदर डर की झुरझुरी पैदा कर दी और रही-सही कसर तब दूर हो गई, जब 1 घंटे बाद लगातार दो बार उसकी टेबल पर रखे लैंडलाइन टेलीफोन में ब्लैंक कॉल्स आईं।
नीहारिका के साथ जो कुछ घटा, वह हर दिन हिंदुस्तान की 30 हजार से ज्यादा नीहारिकाओं के साथ अलग-अलग शहरों, कस्बों और महानगरों में घटता है। अगर दुनिया के आंकड़ों पर नजर डालें तो हर दिन 5 लाख से ज्यादा महिलाएं इस तरह घूरती निगाहों का शिकार होती हैं। दफ्तर जाते समय, कॉलेज जाते समय, बाजार जाते समय या घर से कहीं भी बाहर जाते समय अक्सर इस तरह की शिकायत महिलाओं को होती है कि दो निगाहें भेदती नजरों से उनका पीछा करती रहती हैं। बाजार, दफ्तर, पार्टी, पिकनिक स्पॉट कहीं पर भी ये निगाहें पीछा करते हुए मिल सकती हैं।
घूरती निगाहों से शुरू हुआ यह सिलसिला ब्लैंक कॉल्स, गुमनाम खतों और इसी तरह के कई दूसरे हैर्रास करने के तरीकों तक पहुंचता है। ये तमाम तरीके स्टॉकिंग के हैं। स्टॉकिंग यानी किसी पुरूष द्वारा किसी महिला का आपराधिक तरीके से लगातार पीछा करना, उसे घूरते रहना, उसे किसी न किसी माध्यम से परेशान करना, डराना और कई बार उसे अपनी आपराधिक प्रवृत्ति का शिकार बनाना। यह सब स्टॉकिंग का हिस्सा है। स्टॉकिंग एक अपराध है, जो आमतौर पर युवतियों से लेकर अधेड़ उम्र की औरतों के विरूद्ध किया जाता है। पश्र्चिम में स्टॉकिंग खतरनाक अपराध की श्रेणी में आता है और खूंखार स्टॉकर वहां 30 फीसदी से ज्यादा बलात्कार की घटनाओं को स्टॉकिंग के परिणामस्वरूम अंजाम देते हैं।
दुर्भाग्य से स्टॉकिंग अब हिंदुस्तान में भी तेजी से फल-फूल रहा अपराध बन चुका है। जब से महिलाओं ने घरों से ज्यादा से ज्यादा निकलना शुरू किया है, तब से स्टॉकिंग की यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। आज ऑफिस जाने वाली महानगरों में हर तीसरी और छोटे शहरों में हर पांचवीं महिला स्टॉकिंग का शिकार है। हालांकि हमारे यहां अभी स्टॉकर इतने आपराधिक प्रवत्ति के नहीं हैं, फिर भी स्टॉकिंग के जरिए होने वाले अपराधों में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। स्टॉकिंग दरअसल एक साथ कई तरह के अपराधों का सांझा रूप है। इसके जरिए अपराधी महिलाओं को मानसिक रूप से परेशान करते हैं, अगर महिलाएं उनके सामने हथियार डाल देती हैं तो फिर उनका शारीरिक शोषण भी करने से ये अपराधी नहीं चूकते। लेकिन दुर्भाग्य से हमारे यहां स्टॉकिंग किसी तरह का अपराध नहीं माना जाता है। अगर ऐसा न होता तो इसके विरूद्ध भारतीय दंड संहिता में कोई सजा का प्रावधान जरूर किया जाता। लेकिन भारत में स्टॉकिंग के विरूद्ध किसी तरह का कानून नहीं है। अगर स्टॉकिंग का कोई मामला आता है, तो उसकी सुनवाई सिविल कोर्ट में होती है।
किसी स्पष्ट कानून के न होने के कारण भारत में स्टॉकरों के हौसले बुलंद रहते हैं। हालांकि कंप्यूटर और इंटरनेट के जरिए स्टॉकिंग करने वालों को साइबर कानूनों के दायरे में लाने की कोशिश की गई है, लेकिन इन कानूनों में भी न तो कोई स्पष्ट विवरण है और न ही सजा की कड़ी व्यवस्था। इस कारण ज्यादातर स्टॉकर छूट जाते हैं। आमतौर पर महानगरों में उच्च और उच्च मध्यवर्ग की महिलाएं जब स्टॉकिंग का शिकार होती हैं तो वह प्राइवेट जासूसों की मदद लेती हैं। लेकिन आमतौर पर स्टॉकर बड़े होशियार होते हैं और उन्हें सहजता से कानूनी फंदे में फांस पाना मुश्किल होता है। नतीजतन वह बच निकलते हैं। अगर किसी डिटेक्टिव एजेंसी के तेज-तर्रार जासूस ने किसी स्टॉकर के विरूद्ध ठोस सबूत इकट्ठे कर भी लिए तो भी उन सबूतों के आधार पर ज्यादातर मौकों पर उन्हें सजा दिलवा पाना मुश्किल होता है।
जबकि कनाडा, अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप के तमाम दूसरे देशों में स्टॉकिंग को लेकर स्पष्ट कानून और सजा की कड़ी व्यवस्था है। कनाडा में तो यह 10 साल तक की सजा दिलाने वाला अपराध है। जबकि इंग्लैंड में इस अपराध के तहत 5 साल तक की सजा दी जा सकती है। यूरोप के विभिन्न देशों में भी इसी तरह की सजाओं का प्रावधान है। लेकिन हमारे यहां अभी तक ऐसा कोई कानून नहीं बना। देश में इस समय तकरीबन 5 करोड़ इंटरनेट कनेक्शन हैं और इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों की तादाद इस संख्या के दो गुने से भी ज्यादा है। हमारे यहां इन दिनों ज्यादातर साइबर स्टॉकिंग ही होती है, क्योंकि साइबर माध्यम से किसी को परेशान करना ज्यादा आसान है। आमतौर पर इंटरनेट के जरिए साइबर स्टॉकिंग करने वालों की उम्र 15 से 40 साल के बीच होती है और इसके इतने तरीके हैं कि उन्हें पकड़ पाना मुश्किल होता है, पकड़ भी लें तो उनको सजा दिलाना और भी मुश्किल हो जाता है।
सवाल है, फिर स्टॉकिंग से निपटा कैसे जाए? पहले तो तथ्यात्मक रूप से यह जान लें कि स्टॉकिंग आखिर क्या चीज है? स्टॉकिंग इस सबको कहते हैं-
- कोई व्यक्ति लगातार पीछा करे और घूरे, भले ही कुछ न कहे और दूर रहे।
- लगातार आपको गुमनाम फोन कॉल करे। आप फोन उठाएं तो कुछ न बोले। कुछ दिनों के बाद बोलना शुरू करे और फोन में डराने-धमकाने की कोशिश करे।
- लगातार आपके मोबाइल में किसी अंजान व्यक्ति के एसएमएस आएं, प्यार निवेदन आएं और आप प्रतिक्रिया न करें तो धमकियां आएं।
- आपकी एक-एक बात पर कोई नजर रखे। आपके संबंधियों, दोस्तों और यहां तक की खुद आपसे जबरदस्ती संपर्क बनाने की कोशिश करे, आपके न चाहने के बावजूद।
ये तमाम बातें स्टॉकिंग का हिस्सा हैं और इनसे बचने का एकमात्र उपाय यही है कि पहली बार जब आपको एहसास हो कि आपका कोई पीछा कर रहा है या किसी तरह से परेशान करने की कोशिश कर रहा है तो तुरंत पुलिस में, घर-परिवार में, दफ्तर में बॉस को इसके बारे में बताएं। अगर सड़क पर चलते समय या बस में लगे कि कोई आपको घूर रहा है तो सार्वजनिक रूप से भीड़ के बीच इस बात को कहें। तभी स्टॉकर हतोत्साहित होगा और वह आपका पीछा छोड़ेगा। ध्यान रखें, कभी भी किसी स्टॉकर की चिकनी-चुपड़ी व प्यार भरी बातों में न आएं और उससे बातें न करें।
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