एक दिन की बात है, जब जमदग्निनन्दन परशुराम ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार पृथ्वी को क्षत्रियों से रहित कर दिया, तब वे अपने गुरु भूतनाथ के चरणों में प्रणाम करने और गुरुपत्नी अम्बा शिवा तथा उनके नारायण-तुल्य दोनों गुरुपुत्रों कार्तिकेय और गणनायक को देखने की लालसा से कैलाश पहुँचे। वहॉं उन्होंने अत्यन्त अद्भुत कैलाशपुरी का […]
उदासी किसी अपरिचित मेहमान की तरह अचानक मन के द्वार पर आ गयी। उदासी के घेरे जब भी मनुष्य को घेरते हैं तो न जाने कहॉं-कहॉं से स्मृतियों से निकल कर उपेक्षा-अपमान के दंश उसे चुभने लगते हैं। उदासी के एक घेरे से निकल भी नहीं पाते कि उसी से जुड़े कई संघर्ष याद आ […]
शिक्षक समाज व राष्ट का ज्योतिपुंज है, जो स्वयं जलकर सबको प्रकाशित करता है। बालकों को सुशिक्षित संस्कारित कर शिक्षक अच्छे समाज व महान राष्ट की आधारशिला रखता है। कोई भी समाज शिक्षा के बलबूते पर ही आगे बढ़ सकता है। समाज व राष्ट के विकास के लिए शिक्षा को अपनाना होगा। शिक्षा के बिना […]
हर सुबह आकाशवाणी का तिरुअनन्तपुरम् केन्द्र अपने दैनिक कार्याम “सुभाषितम्’ से आरंभ करता है। इसके अंतर्गत कई बुजुर्ग विद्वान किसी घटना, सूक्ति या काव्यांश के सहारे कोई विचारोत्तेजक मुद्दा प्रस्तुत करते हैं। यद्यपि यह चंद मिनट का ही कार्याम होता है, किंतु बहुत ही ज्ञानवर्द्घक एवं प्रेरणाप्रद होता है। मैं प्रायः यह प्रसारण सुना करता […]
भारत में जहां गुरु को ईश्र्वर से अधिक श्रद्घा, सम्मान और आदर किए जाने की गौरवशाली परंपरा रही है, वहां आज गुरु या शिक्षक की स्थिति क्या है? गुरु जिसे सम्राट ही नहीं ईश्र्वर का अवतार माने जाने वाले महापुरुष तक सम्मान देते थे, आज उसे सम्मानित करने के लिए “शिक्षक-दिवस’ मनाया जाता है और […]
विवाह, गर्भाधान, पुंसवन, जातकर्म, नामकरण आदि 16 कृत्य जो जन्म से मरण पर्यन्त शास्त्र में बतलाए गए हैं, “संस्कार’ कहलाते हैं। इनके लिए विधि-विधान निश्र्चित है। वैसे संस्कार का अर्थ “सुधार’ भी है। मनोवृत्ति या स्वभाव का शोधन, त्रुटि का दूर होना, शुद्घि पवित्र करना, धारणा, विश्र्वास, इंद्रियों पर बाह्य विषयों से पड़ने वाला प्रभाव […]
महाराष्ट के एक प्रखर साधक, विद्याव्यसनी, शास्त्रों के पारंगत विद्वान के रूप में सदाशिव ब्रह्मेंद्र माने जाते हैं। उनके गुरु बड़े करुणावत्सल एवं परमज्ञानी थे। उनकी दृष्टि सदैव शिष्यों को गढ़ने की ओर होती थी। सदाशिव ब्रह्मेंद्र ने एक बार एक प्रकांड विद्वान् को शास्त्रार्थ में पराजित किया। उस व्यक्ति ने गुरु से सदाशिव की […]
अम्मा से वह मेरी अंतिम मुलाकात थी। उसे अंतिम मुलाकात कहना सही नहीं होगा, क्योंकि मेरे गॉंव पहुँचने से पहले ही अम्मा जा चुकी थी। मृत्युलोक से दूर, हर दुःख-तकलीफ से परे। पिछली बार जब मैं उससे मिलने आया था तो वह बोली थी, “”बेटे, बहुत हो चुकी उम्र। पोते-पड़पोते देख लिये, अब ईश्र्वर का […]
बोल बम… बोल बम… बोल बम का ब्रह्मनाद करते देश के विभिन्न भागों से श्रद्घालु बैद्यनाथ शिव की पूजा करने आते हैं। कोई सुल्तानगंज के रास्ते से, तो कोई भागलपुर के रास्ते से। कोई सुखी है तो कोई दुःखी। कोई सबल है तो कोई निर्बल। कोई लुल्हा है तो कोई लंगड़ा। कोई पैदल तो कोई […]
जीवंतता से जीना एक कला है किसी शायर ने कहा है- जिंदगी जिंदादिली का नाम है, मुर्दे क्या खाक जिया करते हैं। वास्तव में न सिर्फ जीवंतता से जीना ही जीना है, बल्कि जीवंतता जीने की एक कला है। जिसे कोई भी अपने आचरण का हिस्सा बना सकता है, लेकिन होता इसके उल्टा है। लोग […]