क्या बुलबुल सिर्फ रात में ही गाती है?

क्या बुलबुल सिर्फ रात में ही गाती है?

दोस्तों, बुलबुल से सुंदर गीत शायद ही कोई और पक्षी गाता हो। प्राचीन समय से ही शायर उसके गीत की सुंदरता को बयान करने का प्रयास करते आ रहे हैं। लेकिन कोई भी अभी तक सही से बुलबुल के गीत का वर्णन नहीं कर पाया है। कई कविताओं में वर्णन है कि बुलबुल साल के […]

किताबें संग्रहित भी करिये

किताबें संग्रहित भी करिये

सफलता प्राप्त करने के लिए पुस्तकों से मित्रता अति आवश्यक है, क्योंकि पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती हैं। इसलिए हमें पुस्तकों की अहमियत को समझना होगा। हमें विद्यार्थी-काल से ही पुस्तकों के संग्रह की आदत डालनी होगी। ज्यादातर विद्यार्थी अपनी पूर्वकक्षा की पुस्तकों को लापरवाही से फेंक देते हैं, रद्दी के भाव बेच देते हैं […]

ग्लैडियेटर क्या है?

ग्लैडियेटर क्या है?

दोस्तों, रसल क्रोवे की ऑस्कर विजेता फिल्म “ग्लैडियेटर’ देखने के  इच्छुक तो आप भी होंगे। लेकिन उससे पहले यह जानना ज़रूरी है कि आखिर यह ग्लैडियेटर है क्या? संसार के इतिहास में जो सबसे ाूर खेल रहा है, वह प्राचीन रोम में ग्लैडियेटर्स के बीच लड़ाई है। इस स्पोर्ट की जड़ें इटरूस्कन लोगों की प्राचीन […]

रिमझिम – सुमन पाटिल

रिमझिम आयी बरखा नभ में कड़ाकड़-कड़ बिजली चमकी काले-काले बादल छाये रे रिमझिम-रिमझिम आयी बरखा ठंडी चली पुरवाई रे बीत गये अब दिन गर्मी के नहीं रहे गर्म लू के झोंके ताप मिटा धरती का जन-जीवन में खुशहाली रे कब से आंगन में रिमझिम बरखा बरस रही कानों में रस घोल रही झरझर-झरझर जैसे लयतालबद्ध […]

दो मुक्तक – अनूप भार्गव

गुनगुनी-सी हवा है बहूँ ना बहूँ अजनबी वेदन है सहूँ ना सहूँ मुस्कुराते हुए गीत और छन्द में अनमनी सी व्यथा है कहूँ ना कहूँ?   जिन्दगी गुनगुनाई, कहो क्या करें? चॉंदनी मुस्कुराई, कहो क्या करें? मुद्दतों की तपस्या है पूरी हुई आप बॉंहों में आईं, कहो क्या करें?

ग़ज़ल शीन काफ निज़ाम

आज का दिन कितना अच्छा है तेरी याद का फूल खिला है   मेरी सोच से बाहर आकर तू कितना अच्छा लगता है   झगड़ा तो दुनिया से होगा तेरा मेरा क्या झगड़ा है   सूख रहा है पेड़ वो, जिस पर तेरा मेरा नाम लिखा है   काश! कि तू भी सुनता होता मेरी […]

कुछ नये ब्रांड

हीरो-छाप खिलौना नाचता है, गाता है, हॅंसता है और रोता है, आग और पानी का इस पर कोई असर नहीं होता है।   टीचर-छाप पेन मजबूरी का नाम महात्मा गांधी इस सिद्धांत पर बनता है, छः-छः महीने बिना स्याही के भी बिना रुके चलता है –     घनश्याम अग्रवाल

ग़ज़ल – मधुर नज्मी

धो के हाथों की हिना पानी में इक नशा घोल दिया पानी में दुश्मने-जां हैं ये तीनों लेकिन फ़़र्क है, आग, हवा, पानी में तेरी रहमत का हो साया जिस पर डूब सकता है भला पानी में। किसी गौहर की हो जो तुमको तलाश झांक कर देखो ज़रा पानी में एक बादल का सहारा लेकर […]

बहू के कई रूप

एक बहू हूबहू बेटी जैसी बहू एक बहू बहुरूपिया बहू एक होती है घर संसार जोड़ने वाली एक होती है घर संसार तोड़ने वाली एक होती है होनहार बहू तो एक होती है खूंखार बहू होती है एक परिवार का नाम करने वाली और कोई परिवार को बदनाम करने वाली सभी के घर तो आती […]

अलबेले बादल

आसमान में शोर मचाते छाये बादल अलबेले पूरब पच्छम दक्कन उत्तर रूप बदलते फिरते अक्सर कभी हैं भूरे कभी ये काले करते हैं ये जादू मंतर रहते मिल जुलकर आपस में कभी नहीं रहते ये अकेले। ऐसा बरसाते हैं पानी हो जाती है धरती धानी बूँदाबांदी कहीं पे बरसे कहीं पे जनता सारी तरसे जैसे […]