कुछ लकीरें रोज़ नक्शे से मिटा देती है आग कैसे-कैसे शहर मिट्टी में मिला देती है आग दिल जो अब इस दर्जा वीरॉं है कभी आबाद था इश्क है इक आग, क्या से क्या बना देती है आग जो कली खिलती है क्यारी में जला देती है धूप जो दीया जलता है धरती पर बुझा […]
आदर्श तुम जग के बनो खुद आसमॉं झुक जायेगा देश में गद्दार कितने ही सही उनका काफिला रुक जायेगा आतंक जो फैला रहे हैं सब देखते रह जायेंगे तुमने ग़र हिम्मत दिखाई तो वो राह पर आ जायेंगे कब से हम समझा रहे हैं एक भी मानी नहीं अब तुमने ली करवट अगर तो फैसला […]
महंगाई, महंगाई हाय! कहॉं से आई खुशियॉं छीनी ग़रीबों की जान लेने आई….। दाल, चावल, तेल, शक्कर सब्जी बड़ी महंगी खाऊँ भला तो क्या खाऊँ हर चीज़ महंगी भूखे पेट होत भजन न ये आफत कहॉं से आई….। रोटी, कपड़ा और मकान दे दे ग़रीबों को भगवान नेता बड़े बेईमान हाथ जोड़ते, विनती करते घर-घर […]
तेरापंथ के दिव्य क्षितिज पर है देदीप्यमान तेरी पहचान गणाधिपति गुरुदेव के बाद तुम्हीं हो जन-जन के भगवान। अति आभारी हूँ मॉं बल्लू की जिसने इक ऐसा लाल दिया वसुंधरा हॅंसकर यश गाती हे महाप्रज्ञ! तुमने निहाल किया। तेरापंथ के दसमासन पर महा विज्ञ तुम महा मनस्वी, गण-उपवन में सुमन खिला यह ध्यानी, योगी और […]
आकाश में शुभ्र बादलों का विचरण कभी उमड़-घुमड़ काले मेघों का गर्जन जैसे भीमसेन जोशी का गायन। सुर मल्हार, गौड़ मल्हार पिरो दे बरखा के तार-तार आसावरी ललित भटियार वृन्दावनी सारंग मुल्तानी दोपहर का एकाकीपन। मारवा संजोता सतरंगी सांझ पुरीया धनाश्री से छाता रात में पीलू का आवरण। मिश्र पीलू मांझ-खमांज दरबार सजाता दरबारी कानड़ा […]
संसार में मनुष्य के लिए सब से कीमती क्या है? निश्चित ही वह दृष्टि है, जो उसे संसार को देखने के लिए दी गयी है। इसी से वह सौंदर्य को देख और परख सकता है। इसी दृष्टि से पूर्वी गोदावरी के एक छोटे-से गॉंव से संबंध रखने वाला चित्रकार क्या देखता है? कोंडा श्रीनिवास राव […]
विचित्र इतिहास, रोचक परंपराओं, जनश्रुतिओं और मिथकीय घटनाओं से भरपूर कल्लू जनपद का लोक-जीवन अपने आपमें अध्ययन व शोध का विषय है। यहॉं मनाये जाने वाले मेलों के पीछे देवी-देवता का ही कोई न कोई प्रसंग जुड़ा रहता है। कुल्लू के एक गांव शिरढ़ में प्रतिवर्ष एक मेला लगता है, जिसे काहिका के नाम से […]
पौ फट चुकी थी। सड़क पर झाड़ू, बुहार के साथ धूल उड़ा रही थी। वह लगभग दौड़ती हुई-सी धूल के परदे को चीरती हुई सड़क पार कर दाहिनी गली में मुड़ गई। कुछ दूर जाने के बाद उसने एक बंगले की डोरबेल बजाई। बड़ी-बड़ी आँखों वाली सेठानी ने दरवाजा खोला, क्या आज फुर्सत मिल गई […]
सुबह अखबारों पर उड़ती निगाह डाली। पहले रिश्तेदारी में एक अखंड-पाठ के भोज में जाना था और दो-तीन जगह प्रेस कांग्रेस थी। उनकी खबरें भेज कर सातेक बजे खाली हो गया था। यों सत्ता तो हर समय खबर में रहती है। क्या पता कब, कहॉं, क्या घट जाये? कोई दुर्घटना, पुलिस-रेड, धरना-प्रदर्शन, पचास तरह की […]
कविता करने का नशा किसी भी मादक द्रव्य के नशे से कम नहीं होता है। यह जिस पर छा जाये, उसकी घर-गृहस्थी भी रामभरोसे रहती है। जीवनलाल भी अक्सर कवि-सम्मेलनों में जाते। उनकी कविताएँ भी खूब जमतीं। जब वे श्रृंगार-रस के मधुर गीत सुर में सुनाते, तो सैकड़ों की भीड़ में सन्नाटा पसर जाता और […]