वैगे नदी के किनारे स्थित मदुरै नगर काफी सुन्दर है। यह पहले दक्षिण पांड्य देश की राजधानी रहा है। इसकी ख्याति विश्र्वविख्यात मीनाक्षी देवी के मंदिर के कारण है। यह मंदिर नगर के बहुत ही निकट है। यह काफी प्राचीन है। कहते हैं कि यहां शिवलिंग की पूजा सातवीं शताब्दी से ही होती थी। देवी […]
हिन्दुओं के चार धामों में से एक गुजरात की द्वारिकापुरी मोक्ष तीर्थ के रूप में जानी जाती है। पूर्णावतार श्रीकृष्ण के आदेश पर विश्र्वकर्मा ने इस नगरी का निर्माण किया था। यहॉं का द्वारिकाधीश मंदिर, रणछोड़ जी मंदिर व त्रैलोक्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से […]
माना जाता है कि रामकथा के अमर गायक गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म राजापुर गॉंव में हुआ था, जो अब उत्तर-प्रदेश के बांदा जिले में है। जहां गोस्वामी जी का जन्म हुआ, अब वहां एक मंदिर बना दिया गया है। वहॉं भगवान राम और लक्ष्मण के साथ-साथ जगतजननी सीता जी की भी मूर्ति प्रतिष्ठित है। […]
मर कर दिखा गये, तेगबहादुर एक राह। रही हृदय में धधकती, बादशाह की दाह।। सिखों के नौवें गुरु का नाम था तेगबहादुर, जिनका स्मारक दिल्ली के चांदनी चौक में आज भी अवस्थित है। तेगबहादुर के बलिदान की गाथा सिखों में आज भी बहुत गौरव से गायी जाती है। बात उस समय की है, जब यहॉं […]
पद्म पुराण के मतानुसार शनिदेव सूर्य के पुत्र हैं, जो उनकी छाया नामक पत्नी से उत्पन्न हुए हैं। पिता की आज्ञा से शनिदेव ग्रह बने तथा अपनी पत्नी के श्राप की वजह से उन्हें ाूर रूप प्राप्त हुआ। कहा जाता है कि शनि की पत्नी चित्ररथ गंधर्व की कन्या थी, जो उग्र स्वभाव की थी। […]
मानव इतिहास में यह पहली बार घटित हुआ है कि बिना किसी प्रयत्न के, पूर्ण हृदय से की गयी प्रार्थना मात्र से ही आप अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करते हैं व आपका चित्त पूर्ण रूप से शांत हो जाता है। आप निर्विचारिता के साथ-साथ हाथों में शीतल चैतन्य लहरियों का अनुभव करते हैं जो कि पहले […]
कुरुक्षेत्र की पवित्र एवं कर्म प्रधान-भूमि में धर्मरथ रथी पांडवों एवं अधर्म रूपी रथ में आरूढ़ कौरवों के मध्य छिड़े युद्ध में अभूतपूर्व अतिरथी पितामह ने बाणों की शय्या पर लेटे हुए अपने अंतिम समय में भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए अश्रुपूरित नेत्रों से कहा कि “”हे प्रभु! मुझे उस समय आपके मुख-मण्डल की […]
इक्कीसवीं सदी के इन प्रारंभिक वर्षों में मजहबी उन्माद ने विश्व के अनेक देशों, समुदायों और वर्णों को युद्ध की विभीषिका में भस्मसात होने के लिए उत्प्रेरित किया है। यह समय मजहब अथवा धर्म की आँखों से देखने का न होकर, मानवतावादी दृष्टि रखने की ख्वाहिश रखता है। प्रत्येक देश व समाज एक-दूसरे से आगे […]
महाराजा दशरथ न्यायप्रिय व प्रजापालक शासक थे। वह हर क्षण यह ध्यान रखते थे कि राज्य के किसी भी व्यक्ति को किसी तरह का कष्ट न होने पाए। सभी लोग धर्म का पालन करते हुए सुखी व समृद्ध बने रहें। एक दिन उन्हें प्रजा के हित के काम में व्यस्त देख कर गुरु वशिष्ठ जी […]
हर कोई चाहता है कि ज्ञानवान बने। इसके लिए अधिक से अधिक पढ़ाई करते हैं। लेकिन क्या कोई पढ़ने मात्र से ज्ञानी बन सकता है? वैदिक परम्परा से भारत को जो ज्ञान मिला है, वह विश्र्व का सर्वोत्कृष्ट ज्ञान है। इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए बड़ी-बड़ी किताबें नहीं पढ़नी पड़तीं। यह ज्ञान आत्मचेतना […]