ट्रैफिक की बत्ती अचानक लाल हो गयी। ड्राइवर ने जोर से ब्रेक लगाया, तो गाड़ी की मालकिन कमला साहनी ने जोर की डॉंट लगाते हुए कहा, अरे संभल कर चलाओ। मेरा सिर टॉप से टकरा गया है। ड्राइवर इस तरह की डांट खाने का आदी हो चुका था। लाल बत्ती पर रुकी इस होंडा कार […]
अमन सुनो तो, क्या तुम्हें पता है, मेरी स्प्रे कहां रखी है? मैं नहीं जानता दीदी और वैसे भी आप मुझे अपनी स्प्रे डालने भी देती हैं कभी? छूने तक तो देती नहीं हैं। मैं क्या जानूं आपकी स्प्रे के बारे में। अच्छा-अच्छा रहने दे। तुझे नहीं पता है तो मैं अपने कमरे में ही […]
आज फिर वही हुआ, थाली में भोजन परोसा ही था कि आंखें नम हो गईं। मिहिर के साथ अक्सर ऐसा ही होता है, थका-मांदा रात्रि को जब लौटता है, तो ऐसा लगता है, जैसे उसे घर काटने को दौड़ रहा हो। बरामदे में चमगादड़ों का निरंतर घूमना जारी रहता है। वह पूरब से पश्र्चिम की […]
आप शॉपिंग करने बाज़ार गए और अचानक पैसे खत्म हो गए। ठीक उसी समय आपकी नज़र किसी ऐसी चीज़ पर पड़ती है, जिसे आप बहुत दिनों से तलाश रहे थे। अब आप क्या करेंगे? आप अपने मन को समझा लेंगे कि कोई बात नहीं, फिर कभी जब पास में पैसा होगा, तो खरीदारी की जाएगी…। […]
चैनसिंह यादव। हॉं, यही नाम तो बताया था उसने। लंबा कद, नजर का चश्मा, आगे के कुछ दॉंत नकली, नीली शर्ट, काली पतलून और कंधे पर मैली-सी तहमद बिछाए रेलवे स्टेशन के करीब एक दफ्तर के बरामदे में वह लेटा हुआ था। मैं उसकी ऊटपटांग बातों पर कभी विश्र्वास नहीं करता था। जाने क्यों मुझे […]
अभी वो दिन ज्यादा पुराने नहीं हुए जब नेपाल में राजा को देवी-देवताओं की तरह पूजा जाता था। राजा को विष्णु का अवतार समझा जाता था और उनके दर्शन के लिए आम लोगों की वैसे ही लंबी-लंबी कतारें लगती थीं, जैसे किसी बड़ी मान्यता वाले देवी-देवताओं के मंदिर में लगती हैं। लेकिन अब नेपाल में […]
एक दिन सच और झूठ के बीच बहस छिड़ गयी। दोनों अपने आपको सही ठहराने का प्रयास करने लगे। आखिर निर्णय हुआ कि चुनाव करवाया जाये। सच, लोगों को सद्गुणों, नैतिक मूल्यों व ईमानदारी की दुहाई देते हुए अपने पक्ष में वोट डालने की अपील करने लगा, जबकि झूठ ने दोनों हाथों से शराब व […]
दो अभिन्न मित्र बरसों बाद मिले। एक विदेशी छात्रवृत्ति के सहारे विदेश चला गया था और वहीं का होकर रह गया था, जबकि दूसरा अपने देश की मिट्टी का मोह न छोड़ सका। उसने एक सरकारी संस्थान में टेक्नीकल इंस्ट्रक्टर की नौकरी कर ली। विदेशी मित्र अपने देसी मित्र के घर पहुंचा। चाय पीते हुए […]
रमेशचन्द्र ने बी.एस.सी में प्रथम श्रेणी पायी थी। इसके बावजूद वे पशोपेश में थे। वे एक मामूली हैसियत के किसान के लड़के थे। उनका रुझान बचपन से ही विज्ञान की ओर था। उनमें प्रतिभा, लगन और महत्वाकांक्षा थी। उन्हें अपने समाज और देश की मिट्टी से प्यार था और वे अपने देश के लिए अपना […]
बलदेव ने दसवीं तो पास कर ली, परंतु उसमें अब आगे की पढ़ाई करने का सामर्थ्य नहीं था। नौकरी मिलने की संभावना भी नहीं थी। नौकरी के लिए काफी दौड़-धूप भी की, कई साक्षात्कार दिये, परंतु हर बार निराशा का ही मुंह देखना पड़ा। बलदेव को नौकरी मिलती भी तो कैसे? न तो उसका कोई […]