हिंसात्मक अराजकता हमारी लोकतंत्रीय व्यवस्था की पर्याय बन गई है। कानून और व्यवस्था की स्थिति चिन्तनीय है। इस तरह की हिंसात्मक गतिविधियों पर अंकुश लगाने की केन्द्र और राज्य सरकारों की इच्छाशक्ति बहुत कमजोर ऩजर आ रही है। और अगर ऐसा हो रहा है तो उसके कारण सिर्फ राजनीतिक हैं। सत्तापक्ष से विपक्ष तक एक-दूसरे […]
विश्र्वविद्यालय अनुदान आयोग की वेतन समीक्षा समिति ने सुझाव दिया है कि विश्र्वविद्यालय के छात्रों को अपने अध्यापकों के मूल्यांकन का अधिकार होना चाहिए। इस प्रस्ताव के पीछे विचार यह है कि शिक्षा व्यवस्था में आखिर कुछ तो जवाबदेही का एहसास हो। लेकिन इस प्रस्ताव के आते ही अच्छा-खासा विवाद खड़ा हो गया है। कुछ […]
पारिवारिक जीवन एवं स्वास्थ्य :- सामान्यतः इनका बचपन अच्छा होता है। इनकी पत्नी भी जिम्मेदार तथा शान्त प्रकृति की होती है। अपनी पत्नी का स्वास्थ्य खराब रहना, इनकी चिन्ता का मुख्य कारण होता है। इनकी पत्नी को एसिडिटी एवं गर्भाशय की समस्या रहती है। अपने बच्चों से भी इन्हें पूरा सुख नहीं मिल पाता। स्वास्थ्य […]
गहरे रंग के फर्नीचर से सेच मार्क्स हटाने के लिए एक टेबलस्पून इंस्टेंट कॉफी में थोड़ा-सा पानी मिलाकर पेस्ट बना लें तथा साफ कपड़े से सेच मार्क्स पर रगड़ें। चाकू, कैंची या लोहे की चीज पर जंग लग गयी हो तो सिरका लगाकर 2-3 घंटे गरम पानी में डुबोकर रख दें। कस्टर्ड बनाकर उसमें शक्कर […]
कुछ लोगों का कहना है कि पावर योग एक कड़ा, फिटनेस आधारित तरीका है विन्यास शैली का, जिसे कुछ योग गुरुओं ने शुरू किया था, ताकि अष्टांग योग को पश्र्चिम तक न सिर्फ पहुँचा सकें बल्कि उसे वहॉं स्वीकार्य भी बना सकें। और जो विकसित हुआ- वह यह था कि कुछ ऐसे आसन सामने आये, […]
वैसे तो जीवन में हर स्तर पर व्यक्ति अपने जीवनसाथी की पसंद-नापसंद का ख्याल रखता है। लेकिन यह बात अत्यंत आवश्यक हो जाती है- शयनकक्ष में। जब युगल ख्वाबगाह में परस्पर प्रेम का आदान-प्रदान करते हुए रति क्रिया में संलिप्त होता है, तो एक-दूसरे की पसंद-नापसंद के बारे में जानना और उसी के अनुसार क्रिया […]
पुस्तक – मैं हिन्दू क्यों बना लेखक – डॉ. आनन्द सिंह सुमन मूल्य – सजिल्द 150 रुपये मात्र पेपर बैक 100 रुपये मात्र प्रकाशक – सरस्वती प्रकाशन, देहरादून-248 001 उत्तराखंड “डॉ. कुँअर रफ़त अ़खलाक राव़जादा, कैसे और क्यों डॉ. कुंअर आनन्द सुमन सिंह’ हो गए- इसी प्रश्न का खुलासा करने के लिए उन्होंने “मैं हिन्दू […]
हिन्दी के द्वारा सारा भारतवर्ष एक सूत्र में पिरोया जा सकता है। – स्वामी दयानंद अंग्रेजी का स्थान हिन्दी ही ले सकती है। – अनंत शयनम् आयंगर (तमिल भाषी) राष्ट-प्रेमी को राष्टभाषा-प्रेमी होना ही चाहिए। – रंगराव दिवाकर (सुप्रसिद्घ कन्नड़ लेखक) हिन्दी ही एकमात्र भारत की राष्टभाषा रह सकती है। – कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिन्दी […]
ऱाष्टभाषा का प्रश्र्न्न राष्ट-जीवन का प्रश्र्न्न है, उसके स्वाभिमान का, जीवन-शैली का, अभिव्यक्ति की तेजस्विता का और सबसे बढ़कर उसकी मुक्ति का। किसी भी देश की स्मृति, संस्कृति तथा राष्टीयता को भाषा ही संरक्षित करके रखती है। जिस तरह से स्मृति, संस्कृति तथा राष्टीयता के प्रश्र्न्न किसी जाति अथवा देश की अस्मिता से जुड़े होते […]