करोड़ों वर्ष पहले इस धरती पर डायनासोरों का राज्य था। भूकम्प एवं उल्कापातों द्वारा धरती पर प्रलय के कारण पुराने पौधे, जानवर जमीन में दब गए। कुछ कोयला बन गए, कुछ पेट्रोलियम में परिवर्तित हो गए। इनको बनने में 386 मिलियन वर्ष लगे। कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैसें जलकर उष्मा ऊर्जा प्रदान करते हैं जो वाहन, कारखानों एवं ऊर्जा क्षेत्रों में प्रयोग होती हैं। पेट्रोलियम चट्टान का तेल कहलाता है। पेट्रोलियम से पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल, पेट्रोलियम गैस मिलती है। प्राकृतिक गैस सी.एन.जी. के रूप में बसों एवं थ्री व्हीलर चलाने में प्रयोग की जा रही है।
जीवन के हर क्षेत्र में ऊर्जा का प्रयोग होता है। सूर्य सब प्रकार की ऊर्जा का स्रोत है। पौधे इस ऊर्जा को प्रकाश संश्लेषण द्वारा अवशोषित करते हैं। गौरतलब है कि भारत के पेट्रोलियम भण्डार 2020 तक ही चलेंगे। तब हमें ऊर्जा के विकल्प खोजने पड़ेंगे। सौर ऊर्जा, जल ऊर्जा, पवन ऊर्जा, भू-गर्भीय ऊर्जा अन्य स्रोत हैं। सूर्य में से 47 प्रतिशत ऊर्जा ही धरती पर पहुँच पाती है, बाकी परावर्तित हो जाती है। इसका तिहाई भाग इन्फ्रा रेड किरणें हैं जो हरित प्रभाव के कारण धरती पर गर्मी पैदा करती हैं।
सूर्य के कारण आज सूर्य सैल बिजली बनाने के लिए प्रयोग हो रहे हैं। जरमेनियम और सिलीकॉन धातु द्वारा प्रकाश अवशोषित हो जाता है। सिलीनियम के सैल 25 प्रतिशत सूर्य ऊर्जा, बिजली ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं। सौर कुकर, सौर वाटर हीटर भी सूर्य ऊर्जा पर आधारित है। कुकर एवं वाटर हीटर पर काला पेंट किया जाता है ताकि वह ज्यादा सूर्य किरणें अवशोषित कर सकें। इसके लिए कई प्रयोग किए गए। फ्रांस के माउंट लुइस शहर में 3500 छोटे-छोटे दर्पणों का प्रयोग करके 3000 सेन्टीग्रेट तापमान प्राप्त किया गया। सूर्य किरणें परावर्तन द्वारा उष्मा में बदल जाती हैं। वैसे भी सूर्य-ऊर्जा भारत में 1962 से प्रयोग की जा रही है। यह ऊर्जा का विकल्प है, जिससे कोयला-पेट्रोलियम बचाया जा सकता है। सूर्य ऊर्जा का प्रयोग भू-उपग्रहों में सोलर सैल लगाकर ब्रह्माण्ड में किया जाता है। ट्रैफिक लाइटें, रेडियो वायरलेस, संचार माध्यम में भी सौर ऊर्जा का प्रयोग हो रहा है।
पवन-ऊर्जा उन क्षेत्रों में प्रयोग हो रही है जहॉं लगातार दस घण्टे, 15 किलोमीटर प्रतिघण्टा की चाल से हवा बहती है। बड़ी-बड़ी टरबाइन लगाकर जेनरेटर को घुमाकर पवन ऊर्जा, बिजली ऊर्जा में परिवर्तित की जाती है। पवन चक्कियां पवन ऊर्जा द्वारा चल रही हैं। अनेक नदियों पर बांध बनाकर, जल ऊँचाई से गिराकर, टरबाइनें चलाकर बिजली बनाई जा रही है। परन्तु भारत में अब भी बिजली की कमी है। समुद्र के ज्वार-भाटा की लहरों द्वारा भी टरबाइनें चलाकर बिजली बनाई जा रही है। यह बिजली 3 मिलियन मेगावाट बिजली के बराबर होती है, जितनी 3000 पॉवर प्लांटों द्वारा पैदा की जाती है।
भू-गर्भीय ऊर्जा जमीन में पिघले उबलते हुए लावे के कारण है, जिसे मैग्मा कहते हैं। इससे भाप स्टीम बनती है, जिससे टरबाइनें चलाकर बिजली बनाई जा सकती है। भारत में 400 ताप चश्मे हैं। इनका तापमान 47 डिग्री से 98 डिग्री तक रहता है। कई जल-कुण्डों का तापमान 150 डिग्री तक है। इनसे 10,000 मेगावाट बिजली पैदा की जा सकती है।
अल्कोहल को भी ईंधन के रूप में वाहनों में प्रयोग किया जा रहा है। ब्राजील में अल्कोहल को वाहन ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। पेट्रोल में 15 प्रतिशत अल्कोहल मिलाकर गैसोल बनाया जाता है। ज्वार, आलू, चुकन्दर में से ईंधन के रूप में अल्कोहल निकाली जा सकती है। ऐसे पौधों की खोज की जा चुकी है जिन्हें पेट्रोलियम प्लांट कहते हैं। इनमें लांग चेन हाइड्रोकार्बन होते हैं जो दूसरे लेटेक्स में पाए जाते हैं। ब्रिकेलिया जाति और यूफोर्विया जाति के पौधों की लेटेक्स में से पेट्रोलियम निकाला जाता है जो भू-गर्भीय पेट्रोलियम का विकल्प बनकर ऊर्जा-संकट का समाधान कर सकता है।
आम नागरिक भी इस संकट को दूर करने के लिए अपना योगदान दे सकते हैं। नागरिक ऊर्जा के अनुचित प्रयोग पर अंकुश लगाएं। बिजली चोरी पर नियंत्रण करें। नजदीक जाने के लिए पेट्रो वाहन की जगह साइकिल का प्रयोग करें। जहॉं जरूरत न हो पंखे, बिजली बन्द रखें। सरकारी दफ्तरों में फिजूल बिजली की खपत रोकें। कोयले की जगह गैस चूल्हे, पेट्रोल की जगह सी.एन.जी., बिजली की जगह सोलर सैल, ईंधन की जगह सोलर कुकर एवं सोलर हीटर का प्रयोग करें। जनमानस में ऊर्जा संकट की हानियों का प्रचार करें। ऊर्जा संरक्षण के कठोर नियम बनाए जायें, उल्लंघन करने वालों को सज़ा दी जाए। ऊर्जा संकट का समाधान जनजागरण में है। जब तक हम-आप, सब ऊर्जा संरक्षण का संकल्प नहीं लेंगे तब तक ऊर्जा संकट का समाधान नहीं होगा। जैव-ऊर्जा, बायो-ऊर्जा आदि का ज्यादा प्रयोग करें। भू-गर्भीय फासिल फ्यूल बनने में करोड़ों साल लगेंगे। आने वाली पीढ़ियों के लिए ऊर्जा संरक्षण का एकमात्र साधन है, जन-जागरण एवं ऊर्जा की सुरक्षा का संकल्प।
– विजेन्द्र कोहली गुरदासपुरी
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