पहाड़ी नगरी धर्मशाला से आठ-दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित धौलपुर पहाड़ियों पर मैक्लॉडगंज स्थित है। अंग्रेजों के जमाने में यहां लॉर्ड मैक्लॉड की रियासत थी। उनके नाम पर इस क्षेत्र का नाम मैक्लॉडगंज रखा गया। यही क्षेत्र आज भारत में मिनी तिब्बत के नाम से जाना जाता है। 1947 के पश्र्चात अंग्रेजों ने इस क्षेत्र को खाली कर दिया था। कभी-कभार गड़रिए यहां पर अपनी भेड़-बकरियां लेकर आते और कुछ दिन व्यतीत करने के पश्र्चात चले जाते। तिब्बत पर चीन का कब्जा होने के पश्र्चात दलाईलामा ने भारत में शरण ली और हजारों की संख्या में तिब्बतियों ने इस सूने क्षेत्र में टेंट लगाकर अस्थायी शरण ली। तिब्बत में चीनी सैनिकों ने कारवाई जारी रखी और वहां से तिब्बतियों का बड़े पैमाने पर पलायन जारी रहा।
तिब्बतियों को आशा थी कि कभी न कभी उनका आजादी का सपना पूरा हो जाएगा, लेकिन दुःख की बात यह है कि यह सपना अधूरा ही रह गया। मैक्लॉडगंज में बड़े परिवर्तन आजकल देखने को मिल रहे हैं। तिब्बत सरकार का मुख्यालय भी यहां है और विशाल बौद्ध मंदिर भी हैं। तिब्बतियों के धर्म गुरु दलाईलामा का निवास स्थान भी यहीं स्थित है।
मैक्लॉडगंज में घूमकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम तिब्बत की राजधानी ल्हांसा में घूम रहे हों। यह स्थल विदेशी पर्यटकों को भी काफी भाता है। बौद्ध भिक्षु “ॐ- मणि मह्यो हुग’ का जाप करते रहते हैं। वैसे आजकल मैक्लॉडगंज के लोग भी पश्र्चिमी सभ्यता के रंग में रंगते जा रहे हैं। लड़के-लड़कियां पश्र्चिमी सभ्यता की नकल कर रहे हैं। अब तिब्बती लोगों ने इस धरती को ही अपनी कर्मभूमि समझकर कारोबार आरम्भ कर दिया है और नई पीढ़ी यहां की माटी से जुड़ने लगी है। तिब्बत की आजादी का अधूरा सपना उन्हें अंदर ही अंदर काफी चुभ रहा है। उनके वतन की आजादी का सपना आखिर कब पूरा होगा, यह तो भविष्य में छिपा है, लेकिन पिछले दिनों विश्र्व जनमत का जो सहयोग तिब्बती लोगों ने प्राप्त किया है, उसने चीन को हिलाकर रख दिया है। तिब्बतियों का अपने धर्मगुरु दलाईलामा पर आज भी उतना ही विश्र्वास है, जितना 50 वर्ष पहले हुआ करता था। तिब्बतियों की युवा पीढ़ी का भारत की माटी से रिश्ता जुड़ गया है, क्योंकि उनका जन्म इसी धरती पर हुआ, लेकिन पुराने लोग युवाओं को आजादी के लिए प्रेरित करते रहते हैं। चीन विश्र्व की बड़ी शक्ति बन चुका है और प्रायः यह कहते सुना जा सकता है कि चीन अब तिब्बत पर अपना कब्जा कभी नहीं छोड़ेगा।
मैक्लॉडगंज में बसे तिब्बतियों में अधिकतर संख्या भिक्षुओं की है। उनकी प्रार्थना सभा प्रातः से आरम्भ हो जाती है। यहां बौद्ध मंदिर पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र हैं। देश-विदेशों के बौद्ध भिक्षु यहां धार्मिक शिक्षा ग्रहण करते हैं। संगीत और नृत्य में भी यह बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। अपनी संस्कृति को जीवित रखने के लिए यह लोग काफी सचेत हैं।
यहां एक छात्र गांव की भी स्थापना की गई है, जो 43 एकड़ क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहां 2100 से ज्यादा छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यहां उच्च शिक्षा दी जाती है, और उनको बौद्ध धर्म से भी जोड़ा जाता है। तिब्बती लोग आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति पर बहुत विश्र्वास रखते हुए हर बीमारी का समाधान जड़ी-बूटियों से प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं। तिब्बती लोगों का कहना है कि ऐलोपैथी दवाएं गर्मी पैदा करती हैं और उल्टे असर हो जाते हैं, जबकि जड़ी-बूटियां लाभ नहीं पहुंचातीं, तो हानि भी नहीं पहुंचातीं। कई जड़ी-बूटियां कैंसर जैसी भयानक बीमारी को भी खत्म कर देती हैं। तिब्बतियों की अपनी वेशभूषा है। विवाह-शादियों में अलग ही वातावरण होता है। दहेज-प्रथा पर इनका कोई विश्र्वास नहीं है। तिब्बती समाज में स्त्री-पुरुष बराबर हैं, यहां लड़कियों को बोझ नहीं समझा जाता। घर-जवाई होना भी बुरी बात नहीं समझी जाती। तिब्बती लोग अंधविश्र्वासी कुछ ज्यादा ही होते हैं। ओझाओं पर विश्र्वास करते हैं। यंत्रों-मंत्रों से बुरी आत्माओं को दूर भगाते हैं।
तिब्बती इकट्ठे होकर त्योहार मनाते हैं। लोसर इनका मुख्य त्योहार है, जो 14 फरवरी को ही मनाया जाता है। इस अवसर पर लोग नये कपड़े पहनते हैं और घरों की खूब साफ-सफाई करते हैं। तिब्बती लोगों की नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी में बहुत अंतर दिखाई दे रहा है। नई पीढ़ी की औरतें स्वयं कारोबार चलाती हैं। तिब्बती शरणार्थी कालीन निर्माण में कुशल होते हैं। यहां बेरोजगार तिब्बतियों के लिए प्रशिक्षण केन्द्र भी हैं। प्रेम-विवाह भी तिब्बती समाज में प्रचलित है। तिब्बती युवा पॉप म्यूजिक, पैंट-जीन्स के दीवाने हैं।
लड़कियां भी जीन्स को पसंद करती हैं। तिब्बती युवा पीढ़ी दिल्ली और विदेशों के उच्च विद्यालयों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए भी किसी से पीछे नहीं हैं। यह पीढ़ी भी तिब्बतियों के धार्मिक, सामाजिक अवसरों पर बढ़-चढ़कर भाग लेती है। तिब्बती युवा पीढ़ी देशी दवाओं के व्यापार को प्राथमिकता दे रही है। तिब्बती समाज में लड़कियां पूर्ण रूप से आजाद होती हैं। शादी के पश्र्चात् लड़कियां उतनी ही आजाद होती हैं, जितनी शादी से पहले।
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