हाल ही में मुझे कुतुब मीनार देखने का मौका मिला। देखनी तो पहले चाहिए थी, पर संयोग ही नहीं बना। मीनार की खूबसूरती की सराहना किये बिना कौन रह सकता है? मेरा मन भी उसे निहार कर मुग्ध होता रहा। सचमुच यह मीनार हमारी वास्तुकला का गज़ब का सबूत है। पर वहॉं जाकर आपके मन में एक खीझ-सी मचती है। या हो सकता है कि मुझे ही हो रही हो। हर कोने में आपको पानी की खाली बोतलें पसरी मिलेंगी जिन्हें आम आदमी बिसलेरी के नाम से जानता है। आम आदमी तो ब्रांड को ही वस्तु बना देता है। उसके लिये पानी की हर बोतल बिसलेरी की बोतल है, भले ही ब्रांड कोई भी हो। ठीक वैसे ही जैसे स्कूल-कॉलेज के साधारण बच्चे हर गाइड को एमबीडी कहते हैं। मैंने किताबों की एक दुकान पर एक विद्यार्थी को कहते सुना कि दीपक की एमबीडी दे दो। यानी वह दीपक गाइड मांग रहा था। उन खाली बोतलों को देख कर यही लगता रहा कि हमने सिर्फ प्यास बुझाना सीखा है, पर खाली बोतल फेंकना नहीं सीखा। अब पता नहीं हमें खाली बोतल फेंकना कौन सिखायेगा? पर यह किसने सिखाया है कि बोतलों को जहॉं मर्जी वहॉं फेंक दो। फिर ख्याल आया कि बोतल भरने वाले भी कमाल के हैं। नलों में पानी नहीं आ रहा। जगह-जगह पानी के लिये त्राहि-त्राहि मची है, तो फिर ये बोतलों वाले पानी कहॉं से भरते हैं? जी करता है कि इनके कुएं या नहर को देख कर आऊं और आम आदमी को उसका पता बता दूं। कुतुब मीनार पर जाकर यदि आप कोशिश करके इन बोतलों से ध्यान हटा भी लें तो आपका ध्यान इधर-उधर बैठे प्रेमियों पर जाए बगैर नहीं रह सकता जो अपनी प्रेमिका का हाथ पकड़े बैठे रहते हैं। उनकी चुहलबाजियां आपको चैन से मीनार देखने नहीं देतीं। और अगर आप इन प्रेमी जोड़ों से बच भी जाएं तो वहॉं की दीवारों पर खुदे हुए प्रेमियों के नाम आपके आनंद को खंडित करते हैं। खुरच-खुरच कर सभी कोनों-दीवारों पर प्रेमियों ने अपने और अपनी प्रेयसियों के नाम अमर करने की दृष्टि से वहॉं अंकित कर रखे हैं। मेरे ख्याल से जिस तरह इंडिया गेट पर वर्ल्ड वार में शहीद होने वालों के नाम अंकित किया गया है, उसी तरह कोई दीवार, दरवाजा या किला बना दिया जाए जहॉं प्रेमी जोड़े बेफिा होकर अपने नाम खोद सकें ताकि हमारी ऐतिसिक इमारतों को तो कोई छलनी ना कर सके।
एक बार की बात है कि गांव में नत्थू अपने दादे की गोद में बैठा था। नत्थू क्या था, बस यूं समझो कि जैसे कोई बबुआ बैठा हो। गोरा रंग अर गुलाबी ओंठ वाला सुथरा-सा बालक। छोरा अपने दादे के चेहरे की झुर्रियां अर टूटे दांत देख कर बोल्या, “दादा! यूं बता कि तुम्हें भी रामजी ने ही बनाया था क्या?’ दादा बोल्या, “हॉं बेटा! आज से बयासी साल पहले रामजी ने ही मुझे बनाया था।’ फिर नत्थू बोल्या, “अर मैं भी रामजी ने ही बनाया हुआ हूँ क्या?’ दादा बोल्या, “हॉं बेटा, तुझे भी छः साल पहले रामजी ने ही बनाया था।’ नत्थू फिर बोल्या, “दादा, ये बात तो माननी पड़ेगी कि पहले के मुकाबले माणस तो रामजी आजकल सुथरे बनाने लग्या है।’
– शमीम शर्मा
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