बहुत जल्द ही पारंपरिक जांच-परख के तौर-तरीके बदलने वाले हैं, खासतौर पर गंभीर बीमारियों के संबंध में। दरअसल, मौजूदा चिकित्सा पद्धति चाहे वह जिस तौर-तरीके पर आधारित हो, आमतौर पर बीमारियों का अनुमान ही लगाती है और फिर उस अनुमान के आधार पर इलाज होता है। जब अनुमान सही साबित हो जाता है तो चिकित्सा कामयाब रहती है और अगर अनुमान लगाने में कोई गलती रह गई तो दवाइयां असर नहीं करतीं। दवाइयों की कामयाबी का प्रतिशत भी दरअसल चिकित्सकों द्वारा बीमारियों के लगाए जाने वाले सटीक अनुमान पर ही निर्भर है।
लेकिन अनुमानों की यह दुनिया बहुत ही जल्द बदलने वाली है। अनुमान की जगह लेगी अब न्यूक्लियर मेडिसिन, जो न सिर्फ जांच-परख की सौ प्रतिशत शुद्धता सुनिश्र्चित करेगी अपितु इस्तेमाल होने वाली दवाइयों का कारगर होना भी तय करेगी। इसलिए अगर आपसे कोई डॉक्टर कहे कि आपको न्यूक्लियर मेडिसिन की जरूरत है तो इससे घबराएं नहीं। इसका न तो परमाणु बम से कोई रिश्ता है और न ही रेडियोधर्मी विकिरणों से। न्यूक्लियर मेडिसिन आने वाले भविष्य की हकीकत बनने जा रही है। इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल संभवतः उन खतरनाक बीमारियों का सटीक विश्लेषण करने, उनकी परख करने के लिए किया जाए जो असाध्य बीमारियों की कोटि में आती हैं। थायराइड कैंसर, न्यूरल क्रिस्ट ट्यूमर, बार-बार उभर आने वाली ऑर्थराइटिस जैसी बीमारियों का पता लगाने और उनके निदान में न्यूक्लियर मेडिसिन जबरदस्त भूमिका निभा सकती है।
लेकिन चिकित्सा की इस शाखा को सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड या एमआरआई से जोड़कर देखने की गलती नहीं करनी चाहिए। यह इससे पूरी तरह से अलग, अपने आप में स्वतंत्र और स्पष्ट चिकित्सा शाखा है। पारंपरिक शारीरिक अनुमान और उसके प्रतिविंबन के तौर-तरीके अपनी जगह पहले की तरह मौजूद रहेंगे। यह इन सबसे अलग और इनको उन्नत बनाने वाली चिकित्सा शाखा है। सच बात तो यह है कि यह अब तक की संभवतः पहली ऐसी चिकित्सा शाखा बनने जा रही है जो रोगी और डॉक्टर दोनों को ही सौ प्रतिशत संतुष्टिदायक नतीजे दे पाने में सक्षम होगी। ऐसा इस क्षेत्र के वरिष्ठ विशेषज्ञों का कहना है या ऐसा इसलिए होगा, क्योंकि इसमें किसी रोग को शुरूआती स्थिति से भी पहले पकड़ पाने की कुव्वत होगी। जबकि शारीरिक तस्वीर प्रविधि (एनाटोमिकल इमेजिंग मॉडेलिटीज) में किसी रोग को पकड़ पाना तभी संभव है, वह जब न सिर्फ पैदा हो जाए बल्कि पैदा होकर विकसित भी हो जाए। मसलन, अल्ट्रासाउंड या एमआरआई तकनीक के जरिए हम किसी टिश्यू या शरीर के अंदर किसी खतरे को तभी भाप पाते हैं, जब खतरा खतरनाक स्थिति तक पहुंच जाता है। जब ट्यूमर बढ़ चुका होता है और ज़िंदगी दॉंव पर लग चुकी होती है।
कस्तूरबा गांधी मेडिकल कॉलेज, मणिपाल के न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजेश कुमार कहते हैं, “न्यूक्लियर मेडिसिन इमेजिंग तकनीक न सिर्फ बीमारी को बहुत शुरूआती अवस्था में पकड़ पाने में सक्षम रहती है अपितु यह प्रभावशाली इलाज और दवाइयों के बारे में भी स्पष्टता से बहुत कुछ बता पाने में सक्षम है। इससे हम किसी भी बीमारी की विस्तृत जानकारी, उसके विस्तृत प्रभाव और उससे निपटने के प्रभावशाली तरीकों आदि के बारे में जान जाते हैं। यही नहीं इससे बीमारी के आगे बढ़ने के बारे में यानी भविष्य में इसके फैलने की रफ्तार, दिशा और तरीके का भी ज्ञान हो जाता है। जिस कारण यह बीमारी किस अंग को किस तरह से प्रभावित करती है, कैसे फैलती है, इससे कैसे प्रभावशाली तरीके से छुटकारा पाया जा सकता है? इस सबका पता चल जाता है।’
न्यूक्लियर मेडिसिन में चिकित्सा उन्नति का भविष्य छुपा है। जाहिर है, इसका भविष्य शानदार है। ऐसे में भला न्यूक्लियर मेडिसिन का हिस्सा कौन नहीं बनना चाहेगा। इसे एक शानदार कॅरियर के रूप में अपनाने वालों की लंबी कतार है। आप भी न्यूक्लियर मेडिसिन में विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं। मगर याद रखें, यह 9 साल या इससे भी ज्यादा समय का एक जटिल पाठ्यक्रम है। इसलिए इसमें मेहनत बहुत जरूरी है। एमबीबीएस पूरा करने के बाद आप डीआरएम यानी डिप्लोमा इन न्यूक्लियर मेडिसिन हासिल कर सकते हैं। चाहें तो न्यूक्लियर मेडिसिन में एमडी की डिग्री भी हासिल कर सकते हैं। आप में अगर पूर्ण समर्पण और कठोर श्रम करने का माद्दा है तो आप इस क्षेत्र में आंतरिक श्रेष्ठता वाले क्षेत्रों जैसे- इमरजेंसी न्यूक्लियर मेडिसिन या न्यूक्लियर कार्डियोलॉजी का चयन कर सकते हैं। चूंकि न्यूक्लियर मेडिसिन या न्यूक्लियर कार्डियोलॉजी से संबंधित मरीज कैंसर से पीड़ित होते हैं और आमतौर पर खतरनाक स्थिति में होते हैं इसलिए इनकी जांच-परख करने वालों को न सिर्फ बेहद संवेदनशील अपितु खतरों के प्रति पूरी तरह से आगाह रहने वाला स्वभाव होना चाहिए।
चूंकि रेडियोआइसोटॉप्स शरीर में पहुंचते ही रेडिएशन का खतरा पैदा कर देते हैं इसलिए इस क्षेत्र में जाने वालों को सुरक्षा मानकों के प्रति बेहद संवेदनशील होना जरूरी है। ऐसे किसी भी विशेषज्ञ को भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर या एटोमिक एनर्जी रेग्यूलेटरी बोर्ड, मुंबई से लाइसेंस लेना जरूरी होता है। इसके बाद ही न्यूक्लियर मेडिसिन में कोई विशेषज्ञ प्रैक्टिस कर सकता है। अगर आप यह विशेषज्ञता हासिल करके नौकरी करते हैं तो शुरूआत में ही आपको 35 से 40 हजार रुपये प्रतिमाह मिल जाते हैं।
हालांकि हमारे देश में अभी न्यूक्लियर मेडिसिन को लेकर लोगों की जानकारी बड़ी सीमित है। यह वह क्षेत्र है जो आने वाले दिनों में भारी मांग में होगा। इस क्षेत्र में डिग्री-डिप्लोमा हासिल करना भविष्य में विशिष्ट रोजगार हासिल होने की गारंटी है। डॉ. धनराज जांगिड़ एसोसिएट डायरेक्टर न्यूक्लियर मेडिसिन एंड कार्डिक इमेजिंग एस्कॉट्र्स कहते हैं, “न्यूक्लियर मेडिसिन की क्षमता अभी तक भारत में उपयोग में नहीं लाई गई, क्योंकि इसके उपकरण बहुत महंगे हैं। रेडिएशन के फैलने का खतरा भी बना रहता है अगर आप इस तकनीक में दक्ष नहीं हैं और आपके पास उपकरण संवेदनशील नहीं हैं। लेकिन आने वाले दिनों में इसका भविष्य बहुत उज्जवल है।’ ज्यादा से ज्यादा कैंसर और हृदय रोग का इलाज करने वाले अस्पताल न्यूक्लियर मेडिसिन की तरफ देख रहे हैं। इसलिए यह कहना पूरी तरह से सुरक्षित है कि आने वाले दिनों में भारत में न्यूक्लियर मेडिसिन में विशेषज्ञ लोगों की भारी मांग होगी। चूंकि यह एक विशिष्ट क्षेत्र है इसलिए इसमें दक्षता हासिल करने के लिए समर्पण, जुनून के साथ-साथ पैसा और पेशेंस की भी जरूरत होती है।
एमबीबीएस के बाद डीआरएम (डिप्लोमा इन न्यूक्लियर मेडिसिन), एमडी, डीएनबी हासिल करने के लिए आप देश के कई महत्वपूर्ण मेडिकल संस्थानों में पढ़ाई कर सकते हैं। सबसे अच्छे संस्थानों में हैं –
– ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, एम्स, दिल्ली
वेबसाइट – www.aiims.edu
फोन नंबर : 011-26588500/26588900
– किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ
वेबसाइट – www.kgmcindia.edu
फोन नंबर : 0522-2257540
– पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़
वेबसाइट – www.pgimer.nic.in
फोन नंबर- 0172-2746018/2756565
– कस्तूरबा गांधी मेडिकल कॉलेज, मणिपाल
वेबसाइट – www.manipal.edu
फोन नंबर-080-41474392/93
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