समय की कीमत
टन-टन, टन-टन बजी घंटी। बस्ता लेकर भागा बंटी।। मम्मी चिल्लाई कर लो नाश्ता। उसने नापा स्कूल का रास्ता।। भूला गणित की कापी-किताब। गुस्सा हो गए मास्टर साहब।। माफी मांग कर जब जान छुड़ाई। समय की कीमत तब समझ आईर्।। – डॉ. अनिल सवेरा
टन-टन, टन-टन बजी घंटी। बस्ता लेकर भागा बंटी।। मम्मी चिल्लाई कर लो नाश्ता। उसने नापा स्कूल का रास्ता।। भूला गणित की कापी-किताब। गुस्सा हो गए मास्टर साहब।। माफी मांग कर जब जान छुड़ाई। समय की कीमत तब समझ आईर्।। – डॉ. अनिल सवेरा
रोज सवेरे ही उठ जाता, कंधे पर हल है उठाता। दो बैलों की जोड़ी लेकर, दूर कहीं खेतों में जाता। जाड़ा-गर्मी बारिश सहकर, खुद प्यासा और भूखा रहकर, धूल-आंधी से कभी ना डरता, दिन-रात वह मेहनत करता। खेतों में अपना पसीना बहाकर, बंजरधरा में फसल लहराकर, जब तक पक ना जाये फसल की बाली, दिन-रात […]
कितनी सुन्दर है यह बतख, रंग-बिरंगी है यह बतख। उजली-उजली धूप में देखो, चांदी-सी चमचम चमके बतख। पानी में ये बर्फ की जैसे, बाहर बिल्कुल रूई बतख। हीरक-सी आँखें मतवाली, झीलों, नदियों की शोभा बतख। नदी किनारे लगी रेत में, हॅंस-हॅंस नाच दिखाती बतख। भिन्न रंग हैं, भिन्न बोलियॉं, गीत सुरीला गाती बतख। हैं अनेक […]
मौसी बिल्ली बड़ी निठल्ली, देखा चूहा झट से उछली। बिल्ली तो है बड़ी कपटी, देखके चूहे पे यूँ झपटी। लूँगा खबर कहता है टामी, क्यों करती मौसी मनमानी। लपका-झपका झबरा टामी, मारा पंजा मौसी सहमी। लेकर डंडा आया ओमी, खाकर डंडा भागा टामी। – मीरा हिंगोरानी
ऋण के मेले में सजाई जाती हैं आकांक्षाएँ पतंग की तरह उड़ाये जाते हैं सपने मोहक मुस्कुराहट का जाल फैलाया जाता है और मध्यवर्ग का आदमी हॅंसते-हॅंसते शिकार बन जाता है ऋण के मेले में हर चीज के लिए आसानी से मिल जाता है पैसा गृहिणी की जरूरत हो या बच्चों की हसरत हो […]
पीर लेकर प्रीत अब हर दिल में है जाने लगी करे है घायल मधुरता भर, ये तड़पाने लगी। आह के बादल घुमरते नैन बरसें उर जला तन बदन में चाह के दीपक हैं सुलगाने लगी। भावना का है धुआँ तुमसे लगा है – दिल मेरा सोच यह पगली, तुम्हारी और आजमाने लगी। नींद बैरन-अन्न विष […]
ख़बर कुछ ऐसी उड़ाई किसी ने गॉंव में उदास फिरते हैं हम बेरियों की छॉंव में नज़र-नज़र से निकलती हैं दर्द की टीसें कदम-कदम पे वो कॉंटे चुभे हैं पॉंव में हर एक सम्त से उड़-उड़ रेत आती है अभी है जोर वही दश्त की हवाओं में चले तो हैं किसी आहट […]
पंछियों की ज़ुबान में बोले हम हमेशा उड़ान में बोले जो तराशे गए वो बतियाए कितने हीरे खदान में बोले भूल कर नदियों की कुर्बानी लोग सागर की शान में बोले दंभ दौलत का छिप नहीं पाता जब वो मंदिर के दान में बोले बात सुन ले न दूसरा कोई इसलिए लोग कान में बोले […]
बस, अब और न बहे लहू मासूमों का और न लुटे घर बेगुनाहों का सब्र का भी सब्र टूट चुका है देख खूनी खेल आतंकियों का शांति, संयम, सौहार्द की भाषा न समझने वाले दहशतगर्दों का अंत करने गौतम, गांधी नहीं अब “परशु’ राम को ही आना होगा। – आत्माराम
आरक्षण की लपटों को जात-पात की भावनाओं को हवा न दो थोड़े से सियासी फ़ायदे के लिए जलाकर राख़ कर देंगीं। जहान को सदियों से धधकती सामाजिक वैमनस्य की आग – आत्माराम