रिमझिम – सुमन पाटिल

रिमझिम आयी बरखा नभ में कड़ाकड़-कड़ बिजली चमकी काले-काले बादल छाये रे रिमझिम-रिमझिम आयी बरखा ठंडी चली पुरवाई रे बीत गये अब दिन गर्मी के नहीं रहे गर्म लू के झोंके ताप मिटा धरती का जन-जीवन में खुशहाली रे कब से आंगन में रिमझिम बरखा बरस रही कानों में रस घोल रही झरझर-झरझर जैसे लयतालबद्ध […]

दो मुक्तक – अनूप भार्गव

गुनगुनी-सी हवा है बहूँ ना बहूँ अजनबी वेदन है सहूँ ना सहूँ मुस्कुराते हुए गीत और छन्द में अनमनी सी व्यथा है कहूँ ना कहूँ?   जिन्दगी गुनगुनाई, कहो क्या करें? चॉंदनी मुस्कुराई, कहो क्या करें? मुद्दतों की तपस्या है पूरी हुई आप बॉंहों में आईं, कहो क्या करें?

ग़ज़ल शीन काफ निज़ाम

आज का दिन कितना अच्छा है तेरी याद का फूल खिला है   मेरी सोच से बाहर आकर तू कितना अच्छा लगता है   झगड़ा तो दुनिया से होगा तेरा मेरा क्या झगड़ा है   सूख रहा है पेड़ वो, जिस पर तेरा मेरा नाम लिखा है   काश! कि तू भी सुनता होता मेरी […]

कुछ नये ब्रांड

हीरो-छाप खिलौना नाचता है, गाता है, हॅंसता है और रोता है, आग और पानी का इस पर कोई असर नहीं होता है।   टीचर-छाप पेन मजबूरी का नाम महात्मा गांधी इस सिद्धांत पर बनता है, छः-छः महीने बिना स्याही के भी बिना रुके चलता है –     घनश्याम अग्रवाल

ग़ज़ल – मधुर नज्मी

धो के हाथों की हिना पानी में इक नशा घोल दिया पानी में दुश्मने-जां हैं ये तीनों लेकिन फ़़र्क है, आग, हवा, पानी में तेरी रहमत का हो साया जिस पर डूब सकता है भला पानी में। किसी गौहर की हो जो तुमको तलाश झांक कर देखो ज़रा पानी में एक बादल का सहारा लेकर […]

बहू के कई रूप

एक बहू हूबहू बेटी जैसी बहू एक बहू बहुरूपिया बहू एक होती है घर संसार जोड़ने वाली एक होती है घर संसार तोड़ने वाली एक होती है होनहार बहू तो एक होती है खूंखार बहू होती है एक परिवार का नाम करने वाली और कोई परिवार को बदनाम करने वाली सभी के घर तो आती […]

अलबेले बादल

आसमान में शोर मचाते छाये बादल अलबेले पूरब पच्छम दक्कन उत्तर रूप बदलते फिरते अक्सर कभी हैं भूरे कभी ये काले करते हैं ये जादू मंतर रहते मिल जुलकर आपस में कभी नहीं रहते ये अकेले। ऐसा बरसाते हैं पानी हो जाती है धरती धानी बूँदाबांदी कहीं पे बरसे कहीं पे जनता सारी तरसे जैसे […]

अनवर शऊर की एक ग़ज़ल

कुछ लकीरें रोज़ नक्शे से मिटा देती है आग कैसे-कैसे शहर मिट्टी में मिला देती है आग दिल जो अब इस दर्जा वीरॉं है कभी आबाद था इश्क है इक आग, क्या से क्या बना देती है आग जो कली खिलती है क्यारी में जला देती है धूप जो दीया जलता है धरती पर बुझा […]

आदर्श बनो खुद आसमॉं झुक जायेगा

आदर्श तुम जग के बनो खुद आसमॉं झुक जायेगा देश में गद्दार कितने ही सही उनका काफिला रुक जायेगा आतंक जो फैला रहे हैं सब देखते रह जायेंगे तुमने ग़र हिम्मत दिखाई तो वो राह पर आ जायेंगे कब से हम समझा रहे हैं एक भी मानी नहीं अब तुमने ली करवट अगर तो फैसला […]

महंगाई – संतोष कुमार मिश्र

महंगाई, महंगाई हाय! कहॉं से आई खुशियॉं छीनी ग़रीबों की जान लेने आई….। दाल, चावल, तेल, शक्कर सब्जी बड़ी महंगी खाऊँ भला तो क्या खाऊँ हर चीज़ महंगी भूखे पेट होत भजन न ये आफत कहॉं से आई….। रोटी, कपड़ा और मकान दे दे ग़रीबों को भगवान नेता बड़े बेईमान हाथ जोड़ते, विनती करते घर-घर […]

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