शीतल छाया का सुख पाओ, सुन्दर फूल और फल खाओ अमल-विमल परिवेश बनाओ, भूमि प्रदूषण मुक्त कराओ सुत से बढ़कर सेवा करते, सदा जीवनी शक्ति संजोते सबसे बढ़कर प्रत्युपकारी, खुशबू से इनकी सुख पाओ तरु कम से कम पांच लगाओ। इनका अंग-अंग उपयोगी, करते हमको यही निरोगी सीख सदा ये सिखलाते हैं, जीवन में विनम्र […]
मैं कुछ बेहतर ढ़ूँढ़ रहा हूँ घर में हूँ घर ढ़ूँढ़ रहा हूँ घर की दीवारों के नीचे नींव का पत्थर ढ़ूँढ़ रहा हूँ जाने किसकी गर्दन पर है मैं अपना सिर ढ़ूँढ़ रहा हूँ हाथों में पैराहन थामे अपना पैकर ढ़ूँढ़ रहा हूँ मेरे कद के साथ बढ़े जो ऐसी चादर ढ़ूँढ़ रहा हूँ
अन्याय को सहना नहीं उभरें एक शक्ति बनकर देश की रक्षा के लिए विघटित होते मानव मूल्यों को फिर स्थापित कर ताकि दूर हो सामाजिक भेदभाव कार्य हो निःस्वार्थ धर्म कभी खोना नहीं सच्चाई के लिए, अच्छाई के लिए प्रण लें, विदेशी संस्कृति को त्याग कर देश में आदर्श संस्कृति का हो संचार न्याय, नीति, […]
कर्मभूमि पर जिंदा रहने तक तन मन से प्रेम का दीप जलाना है चलो जवानों जागो, कैसी गहरी नींद में सोते हो पर्वत को तुम राई बनाओ, अपने अच्छे विचार से शत्रु को भी मित्र बनाओ, प्रेम से दुलार से वो प्यारी धरती जिस पे हम जीते हैं खुशी प्रेम के कितने प्याले […]
कुछ ऐसा था जो अब भी हम लोगों को एक-दूसरे से जोड़ता था अब भी हम एक-दूसरे की जरूरत थे अब भी खत्म नहीं हुई थी संवाद की गुंजाइश अब भी कुछ ऐसा था हम लोगों के बीच जो हत्यारे की पकड़ से बाहर था जिस पर हत्यारे का हाथ चलना नामुमकिन था और इसलिए […]
जो कुछ तेरे नाम लिखा है, दाने-दाने में वह तुझे ही मिले चाहे रखा हो तहखाने में तूने इक फरियाद लगायी उसने हफ्ता भर मांगा कितने हफ्ते और लगेंगे उस हफ्ते के आने में एक दिए की िजद है आँधी में भी जलते रहने की हमदर्दी हो तो फिर हिस्सेदारी करो बचाने में […]
चिंतामणि बहुत झल्लाए हुए थे। किसी परिचित का हॉस्पिटल बिल अपने समाजवादी झोले में अन्यान्य अल्लम गल्लम लिटरेचर के साथ कुछ उसी तरह जमा करके रखा हुआ था, जैसे ग़रीबी की रेखा से नीचे वाले परिवारों के सदस्य, सरकारी फ़ाइलों में पड़े रहा करते हैं। बड़े दिनों बाद मिले थे। सो छूटते ही बोले, गुरू, […]