तुझे सूरज कहूँ या पलीता

समय बड़ी तेज़ी से बदल रहा है। बदलना भी चाहिये। ठहराव प्रकृति को बर्दाश्त नहीं। विचार बदल रहे हैं। मान्यतायें बदल रही हैं। रिश्ते-नाते भी बदल रहे हैं। बाप बदल रहे हैं तो बेटे भी बदल रहे हैं। मतलब यह कि दुनिया का नक्शा बड़ी तेज़ी से बदलता जा रहा है। समृद्धि आ रही है […]

आओ कमेटी बनाएँ

आपको खुशी है या नहीं, यह तो मैं नहीं जानता, लेकिन मुझे इस बात की अपार खुशी है कि मुझे एक समिति का सदस्य बनाया गया है। लोग अपने व्यक्तित्व निर्माण के लिए समिति का सदस्य बनने के लिए बड़ी-बड़ी तिकड़में लड़ाते हैं। मैं बिना तिकड़म के ही कमेटी में आ गया हूँ। हमारे यहॉं […]

तरबूज

आ गई गर्मी, देखो भैया, सूख गये सब ताल-तलैया। लू चल रही है तेज, सूख गये हरे-भरे खेत, पर एक खुशी खूब आई, गर्मी अब तरबूज लाई। मोटे, गोल, हरे-हरे लाल-लाल रस भरे। मुन्ना राजा खा रहा है, मुन्नी को भी भा रहा है। नहीं दांतों की दादी को फिा, करती तरबूज खाने का जिा। […]

उफ! ये गर्मी

उफ! ये गर्मी सब पर भारी, दहक उठी है धरती सारी। गर्म हवा ने तीर चलाए, हरे-भरे पेड़ मुरझाए। अकड़ रहे हैं सूरज राजा, ठंडी हवा का बज गया बाजा। बड़ी तेज आती है धूप, गुस्साया सा उसका रूप। नदियों में कम हो गया पानी, तालों पर दिखती वीरानी। नलों से पानी न आता, पानी […]

समय की कीमत

टन-टन, टन-टन बजी घंटी। बस्ता लेकर भागा बंटी।। मम्मी चिल्लाई कर लो नाश्ता। उसने नापा स्कूल का रास्ता।। भूला गणित की कापी-किताब। गुस्सा हो गए मास्टर साहब।। माफी मांग कर जब जान छुड़ाई। समय की कीमत तब समझ आईर्।। – डॉ. अनिल सवेरा

अन्नदाता

रोज सवेरे ही उठ जाता, कंधे पर हल है उठाता। दो बैलों की जोड़ी लेकर, दूर कहीं खेतों में जाता। जाड़ा-गर्मी बारिश सहकर, खुद प्यासा और भूखा रहकर, धूल-आंधी से कभी ना डरता, दिन-रात वह मेहनत करता। खेतों में अपना पसीना बहाकर, बंजरधरा में फसल लहराकर, जब तक पक ना जाये फसल की बाली, दिन-रात […]

सुन्दर बत्तख

कितनी सुन्दर है यह बतख, रंग-बिरंगी है यह बतख। उजली-उजली धूप में देखो, चांदी-सी चमचम चमके बतख। पानी में ये बर्फ की जैसे, बाहर बिल्कुल रूई बतख। हीरक-सी आँखें मतवाली, झीलों, नदियों की शोभा बतख। नदी किनारे लगी रेत में, हॅंस-हॅंस नाच दिखाती बतख। भिन्न रंग हैं, भिन्न बोलियॉं, गीत सुरीला गाती बतख। हैं अनेक […]

कपटी बिल्ली

मौसी बिल्ली बड़ी निठल्ली, देखा चूहा झट से उछली। बिल्ली तो है बड़ी कपटी, देखके चूहे पे यूँ झपटी। लूँगा खबर कहता है टामी, क्यों करती मौसी मनमानी। लपका-झपका झबरा टामी, मारा पंजा मौसी सहमी। लेकर डंडा आया ओमी, खाकर डंडा भागा टामी। – मीरा हिंगोरानी

ऋण का मेला

ऋण के मेले में सजाई जाती हैं आकांक्षाएँ पतंग की तरह उड़ाये जाते हैं सपने मोहक मुस्कुराहट का जाल फैलाया जाता है और मध्यवर्ग का आदमी हॅंसते-हॅंसते शिकार बन जाता है   ऋण के मेले में हर चीज के लिए आसानी से मिल जाता है पैसा गृहिणी की जरूरत हो या बच्चों की हसरत हो […]

आ पिया पाषाण

पीर लेकर प्रीत अब हर दिल में है जाने लगी करे है घायल मधुरता भर, ये तड़पाने लगी। आह के बादल घुमरते नैन बरसें उर जला तन बदन में चाह के दीपक हैं सुलगाने लगी। भावना का है धुआँ तुमसे लगा है – दिल मेरा सोच यह पगली, तुम्हारी और आजमाने लगी। नींद बैरन-अन्न विष […]

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