(19वीं शताब्दी के प्रसिद्घ क्रोंच कहानीकार मोपासां की कहानी “द चेयरमेंडर’ का स्वच्छंद अनुवाद) प्रेम की परिभाषा कई लोगों ने कई प्रकार से की है और अपनी-अपनी परिभाषा के समर्थन में विद्वानों के उद्घरण देकर प्रमाणित करने का प्रयास किया है। मार्क्स के घर पर प्रीतिभोज के बाद प्रेम पर चर्चा शुरू हुई। इस चर्चा […]
उसे मेरे आने की सूचना पहले ही मिल चुकी थी। मैंने आते ही नंदू को फोन कर दिया था। नंदू के भाई ने बताया कि नरैण का को टेंटवाले के वहॉं से बर्तन ले जाने हैं। वह बर्तनों को गिनकर पैक कर आया था। उसने बताया कि नंदू ने मुझसे जल्दी आने के लिए कहा […]
आज फिर सुबह से घर में महाभारत छिड़ गया था। दादी ने ऑफिस जाते हुए टोक जो दिया था, मम्मी-पापा को। कई दिनों से दादी के चश्मे की डंडी टूट गयी थी तथा घुटनों के दर्द की दवाई भी खत्म हो रही थी। बस इतनी-सी बात थी, लेकिन मम्मी को तो बहाना चाहिए दादी से […]
न जाने क्यों, आज उसके पिताजी ने उससे कहा कि निशा को नौकरी से निकाल दें। उसने कारण जानने का प्रयास भी किया, लेकिन वे कुछ जवाब दिये बिना ही कंपनी चले गये और वह भी अपने कोचिंग संस्थान में आकर अपने कक्ष में बैठ गया। उसने इंटरकॉम पर निशा के नंबर डायल किये और […]
“”महाराणा प्रताप डिग्री कॉलेज में । सर! पूरे तीन घंटे इंतजार किया, पर वह बूढ़ा खडूस डायरेक्टर ही नहीं आया, जो पैनल का खुदा था। काहे का खुदा, सर! मेरे लिए तो जल्लाद बन गया वह। अथॉरिटी ने मोबाइल पर बार-बार नंबर मिलाए तो हर बार स्विच ऑफ। लैंड-लाइन पर किया तो घंटियां बजती रहीं […]
मिथिला नगरी में महाराज जनक राज्य करते थे। एक बार जब वे यज्ञ के लिए पृथ्वी जोत रहे थे तब चौड़े मुँहवाली सीता (फाल के धॅंसने से बनी हुई गहरी रेखा) के द्वारा एक कुमारी कन्या का प्रादुर्भाव हुआ, जो रति से भी बढ़कर सुन्दर थी। इससे राजा को बड़ी प्रसन्नता हुई और उन्होंने उस […]
मास्टर जी को सामने की कुर्सी पर बैठाकर स्वयं भी उनके निकट ही बैठ गया। कलेक्टर की कुर्सी खाली रही। मास्टर जी की तरफ देखकर बोला, “”आज आपने बड़ी कृपा की, जो यहां तक आने का कष्ट किया।” मास्टर जी किसी तरह अपने भावावेश को नियंत्रित करते हुए बोले, “”कल ही मैं सर्विस से रिटायर […]
मेरे घर में सारी बात सुनकर मेरी श्रीमती का मूड भी बिगड़ गया। सारी उम्र यह फांस उसके गले में अटकी रही। इसके चलते श्रीमती और हमारे बच्चों ने कभी गॉंव का रुख नहीं किया। हॉं, लोकलाज के डर से और अम्मां व रिश्ते-नाते निबाहने की गर्ज से मुझे ही साल में गॉंव का एकाध […]
उदासी किसी अपरिचित मेहमान की तरह अचानक मन के द्वार पर आ गयी। उदासी के घेरे जब भी मनुष्य को घेरते हैं तो न जाने कहॉं-कहॉं से स्मृतियों से निकल कर उपेक्षा-अपमान के दंश उसे चुभने लगते हैं। उदासी के एक घेरे से निकल भी नहीं पाते कि उसी से जुड़े कई संघर्ष याद आ […]
अम्मा से वह मेरी अंतिम मुलाकात थी। उसे अंतिम मुलाकात कहना सही नहीं होगा, क्योंकि मेरे गॉंव पहुँचने से पहले ही अम्मा जा चुकी थी। मृत्युलोक से दूर, हर दुःख-तकलीफ से परे। पिछली बार जब मैं उससे मिलने आया था तो वह बोली थी, “”बेटे, बहुत हो चुकी उम्र। पोते-पड़पोते देख लिये, अब ईश्र्वर का […]