दोस्तों, बुलबुल से सुंदर गीत शायद ही कोई और पक्षी गाता हो। प्राचीन समय से ही शायर उसके गीत की सुंदरता को बयान करने का प्रयास करते आ रहे हैं। लेकिन कोई भी अभी तक सही से बुलबुल के गीत का वर्णन नहीं कर पाया है। कई कविताओं में वर्णन है कि बुलबुल साल के किसी भी मौसम में गा सकती है लेकिन वह गाती सिर्फ रात ही में है। क्या ये सही है?
जी नहीं, बुलबुल एक जगह से दूसरी जगह जाने वाली चिड़िया है। यानी एक मौसम में वह एक जगह रहती है और दूसरे में दूसरी जगह। मसलन, बुलबुल को इंग्लैंड में अप्रैल के मध्य और जून के मध्य में ही सुना जा सकता है और दिलचस्प बात यह है कि सिर्फ बुलबुल का नर ही गाता है। वह मादा को रिझाने के लिए गाता है जो कि पास की झाड़ी या पेड़ में खामोश छिपी रहती है। बुलबुल रात में भी गाता है और दिन में भी, लेकिन दिन में दूसरे पक्षियों की आवाज़ की वजह से उसकी आवाज़ सुनाई नहीं देती।
बुलबुल तब तक गाता है, जब तक मादा अपने अंडे न सेने लगे, उसके बाद वह खामोश हो जाता है ताकि दुश्मन घोंसले की तरफ आकर्षित न हो। वह घोंसले की देखभाल करता है और उसका गीत छोटा व स्पष्ट होता है ताकि मादा तक सुरक्षा या खतरे की सूचना पहुँचा सके।
स्वाभाविक है कि जो पक्षी इतना शानदार गवैया हो, तो वह खूबसूरत भी बहुत होगा।
लेकिन ऐसा है नहीं। नर व मादा बुलबुल एक से ही नज़र आते हैं – ऊपर से लाल-कत्थई और नीचे की तरफ से ग्रे-व्हाइट।
बुलबुल का घोंसला भी अजीबोगरीब होता है। वह जमीन पर या जमीन के पास ही होता है। घोंसला ज्यादातर सूखी पत्तियों का बना होता है और बीच में कटोरीनुमा गड्ढा होता है जिसमें जड़ व फाइबर तरतीब से लगे होते हैं। घोंसला बड़ा ढीला-ढाला बुना हुआ होता है और हल्के से छूने से ही बिखर जाता है। एक घोंसले में चार से छः अंडे होते हैं जो गहरे ऑलिव रंग के होते हैं।
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