आलोचना से आज तक कोई नहीं बचा है, चाहे वह खामोशी से की जाए या चिल्लाकर। आप चाहे जितनी तोप चीज क्यों न हों, आलोचना हर किसी के साथ चस्पां हो जाती है। अब यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप उसे कितना ग्रेसफुली हैंडल करके अपने को शांत बनाए रखते हैं।
भूल स्वीकारें
कैसी भी स्थिति क्यों न हो, चाहे व्यक्तिगत हो या प्रोफेशनल, अगर आपको लगता है इसमें किसी की व्यक्तिगत खुंदक, ईर्ष्या या निहित स्वार्थ नहीं है, बल्कि सावधान करने के लिए, आपको आईना दिखाकर आप ही की भलाई के लिए है, तो उसे स्वीकारें और जीवन में आगे बढ़ें। खोखली सफाई देने से कोई फायदा नहीं है। स्वीकारने से न तो आपके आत्म-सम्मान को ठेस लगती है और न ही आपकी शान को।
ध्यान न दें
कुछ लोग जो स्वभाव से ही ईष्यालु और क्रूर होते हैं, उन्हें दूसरों का दिल दुःखाने में भी मजा आता है। हमेशा ताना मारते हुए बात करना, हर समय दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश में रहना उनका शगल होता है। वह कुछ तो ऐसा असुरक्षा की भावना के कारण करते हैं और कुछ ईर्ष्यावश। ऐसे लोगों की बातों पर ध्यान देकर अपना मन खराब न करें, न ही अपने आत्मविश्र्वास को किसी तरह भी कम होने दें। ऐसे लोगों की बातों से निपटने का सबसे बढ़िया तरीका है, उन बातों पर ध्यान न देना। एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देना।
अनुभव में शामिल करें
आलोचना से दुःखी होने के बजाय सबक लेना सीखें। अगर आलोचना सही है तो उससे सबक लेते हुए अपने को सुधारने का प्रयत्न करें। अगर अकारण ही कोई भड़कते हुए आप पर तोहमत लगा रहा है तो उसके शांत होने की प्रतीक्षा करें। गुस्से में व्यक्ति कुछ सुनने-समझने की स्थिति में नहीं रहता है। इससे आपके धैर्य की परीक्षा होगी। आलोचना को हर तरह से आप अपने फायदे की ओर मोड़ सकते हैं।
मिलानकर देखें
इस बात को गंभीरता से सोचकर देखें कि क्या आप एक ही बात को लेकर एक बार से ज्यादा आलोचना के पात्र बने हैं। अगर एक ही कमेंट को कई लोग दोहराते हैं तो समझ लें, कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है। एक चीनी कहावत है “अगर एक व्यक्ति आपको गधा कहता है तो इग्नोर करें, दो कहते हैं तो सावधान हो जाएं, लेकिन कई लोग अगर कहें तो बोझा ढोने को तैयार हो जाएं।’ बहुतों के एक ही बात अलग-अलग कहने से बात में दम है, यह सिद्ध होता है।
बात कुछ भी हो सकती है। आपके बार-बार जल्दी-जल्दी पलक झपकने की आदत या आपके बोलने, न बोलने की या कुछ भी हो सकती है। जिन बातों पर आपका वश नहीं है, उसके बारे में ना सोचें। जिन पर वश है, उसकी तह तक जाकर निदान सोचें और बदलाव लायें।
उस पर काम करें
एक बार जब आपको पता लग जाए कि कहां और क्या प्रॉब्लम है तो उसे हल करने के लिए जुट जाएँ। आलोचना की बात को लेकर अवसाद में न डूब जायें, न बार-बार उसके बारे में सोचकर कुढ़ें। ऐसा तो बहुत से लोग करते हैं, उनकी जीवन-शैली का यह एक अंग होता है यानी कि हर समय दूसरों के कार्यकलापों को देखते हुए, उनमें मीन-मेख निकालना। आप उनसे नाराजगी पालेंगे तो आपका कोई अपना नहीं रह जाएगा। अगर आपको आलोचना का कारण समझ में नहीं आ रहा है तो आप अपने परिवार और हितैषी दोस्तों की मदद ले सकते हैं। यह आपकी इच्छाशक्ति और आत्मशक्ति पर निर्भर करता है कि चुनौती का मुकाबला आप एक योद्धा की तरह डट कर करते हैं या मैदान छोड़कर भाग जाते हैं।
किसी भी कंपनी का विकास तभी संभव है, जब उसमें ऊंचे ओहदे पर बैठे जिम्मेदार लोग क्रिटिसिज्म इन्वाइट करें और उस पर निष्पक्षता से गौर करें। ऐसा हर फील्ड में होता है। अक्सर पेपर-मैगजीन वाले भी पाठकों से आलोचनाओं की मांग करते हैं ताकि वे अपने पेपर-मैगजीन को और बेहतर तथा लोकप्रिय बना सकें।
इस तरह के लोग, जो सोचते हैं कि जो वे सोचते हैं, करते हैं, बस वही ठीक है, तो वे लोग एक खांचे में कैद होकर रह जाते हैं। एक अकेले व्यक्ति की सीमाएं होती हैं, उनकी उन्नति की राह अवरुद्ध हो जाती है। इसलिये हमेशा ओपन माइंडेड होकर चलना चाहिए ताकि मंजिल तक पहुंचा जा सके।
आजकल रिएलिटी शोज की टी.वी. पर बड़ी धूम है। इसमें प्रतियोगियों को जजों की कटु-आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है।
मगर आगे चलकर यह उनके इंप्रूवमेंट में बहुत काम आता है। इसलिए आलोचनाओं से न तो डरें और न ही घबरायें बल्कि उनका खुले दिल से स्वागत करें। बस स्वयं पर विश्र्वास पक्का रखें।
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