ऐसा कहा जाता है कि भगवान हर जगह मौजूद नहीं हैं, इसीलिए भगवान ने मां को बनाया। वेदों, पुराणों, आध्यात्मिक पुस्तकों में मां की भूमिका के विषय में बहुत कुछ कहा गया है। मां, जो बच्चे को जन्म देती है, उसे पाल-पोसकर बड़ा करती है, उसके लिए एक भावनात्मक सहारा होती है। मां की भूमिका को लेकर फिल्म जगत में न जाने कितनी फिल्में बनीं तो साहित्य जगत में मां की भूमिका पर बहुत कुछ लिखा गया। दूसरी तरफ मां है, जो एक साथ अपने कई तरह की भूमिकाओं का निर्वाहन अकेले दम पर करती है यानी वह एक ऐसे मदारी की भूमिका में होती है, जिसके हाथ में एक साथ 5-6 गेंदें होती हैं, जिन्हें वह अपनी कुशलता से कुछ को अपने हाथों में रखती है तो कुछ को आसमान में उछालती है। कितने अजब ढंग से वह इनके बीच एक संतुलन कायम किए रहती है।
बच्चे, परिवार, कॅरियर, अपना स्वास्थ्य और इससे भी बढ़कर न जाने कितनी जिम्मेदारियों का बोझ मां को उठाना पड़ता है। आज यह गुजरे जमाने की बात हो गई है, जब महिला घर-परिवार के सीमित दायरे में रहकर काम करती थी। घर में रहकर बच्चों की देखभाल करना और शाम को काम से थके-मांदे पति का इंतजार करना, पति की सेवा करना ही उसकी दिनचर्या में शामिल था। महानगरों में ही नहीं, बल्कि छोटे शहरों में भी कामकाजी महिलाओं की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। यह कामकाजी मांएं एक साथ कई मोर्चों पर डटी रहती हैं। एक ओर वह ऑफिस में रहकर अपने पुरुष सहकर्मियों की प्रतिद्वंदिता में खड़ी अपने काम को बेहतर ढंग से करने का प्रयास करती हैं। प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करना, डेडलाइंस से जूझना और शाम की कॉकटेल में क्या पहनना है, के बीच उनका जीवन गुजरता है। यही मां शाम को काम से लौटकर घर में आकर अपने बच्चों की देखरेख करती है, उनकी जरूरतों का ख्याल रखती है, घर के बजट के बीच संतुलन कायम करती है। बच्चों के होमवर्क की जिम्मेदारी उसी की होती है तो अपने बच्चे को स्कूल में फैंसी डेस के लिए कॉस्ट्यूम तैयार करना और सास-ससुर को वीक-एंड पर डिनर में साथ ले जाना। न जाने कितनी जिम्मेदारियों के बीच उसे संतुलन कायम करना होता है। नतीजा यह होता है कि एक उम्र के बाद स्टेस में लगातार रहने के कारण उसे स्वास्थ्य संबंधी कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है। यह तो तय है कि कामकाजी महिला को गैर-कामकाजी महिला की तुलना में ज्यादा जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं। यदि आप भी ऐसी कामकाजी मॉम हैं तो अपने जीवन को किस तरह अच्छे ढंग से चलाएं, जिससे आगे चलकर स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से न जूझना पड़े। यह जानना आपके लिए बहुत जरूरी है।
क्या आप भी उन महिलाओं में शामिल हैं, जो अपने काम को बेहतर ढंग से अंजाम देने के लिए अपना एक तयशुदा शिड्यूल बनाती हैं और उन पर किसी भी स्थिति में डंटे रहने की कोशिश करती हैं। काम के समय पर पूरा न हो पाने की चिंता में ऐसी महिलाएँ तनाव से ग्रसित हो जाती हैं। लेकिन इसके भी काफी फायदे हैं। अपने रूटीन के कामों को बेहतर ढंग से करने के लिए ऐसा करना जरूरी होता है। अधिकतर वर्किंग मॉम मैनेजर्स अपने रूटीन का एक बिजनेस कैलेंडर बना लेती हैं, जिसमें मीटिंग्स और डेडलाइंस को पहली प्राथमिकता देती हैं। वह यह भूल जाती हैं कि कॅरियर वूमेन के साथ वह एक हाउस वाइफ भी हैं। वह इस कैलेंडर में अपने निजी जीवन के लिए कम समय निकाल पाती हैं। रिश्तेदारों के जन्मदिन, बच्चों के वैक्सीनेशन को कम प्राथमिकता दी जाती है। ऐसा करने की बजाय अपने फैमिली कैलेंडर और ऑफिस प्लानर को एक-दूसरे से अलग रखना चाहिए। टेक्नोसेवी मॉम भी अपने प्लानर को तैयार करने में अपने कॅरियर को ज्यादा प्राथमिकता देती हैं। उन्हें लगता है कि वह अपने निजी जीवन के शिड्यूल में आने वाली चीजों को सेलफोन द्वारा चला सकती हैं जिससे उनका काफी वक्त बच सकता है। जिसका इस्तेमाल वह अपने कॅरियर को आगे बढ़ाने की दिशा में कर सकती हैं। ऐसी मॉम की यह सोच गलत होती है। इसका उनके पारिवारिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
कॅरियर वूमेन को अलग-अलग तरह की भूमिकाओं को निभाने में लंबी जद्दोजहद करनी पड़ती है। कई तरह के कामों को करने के बाद अक्सर उसकी याद्दाश्त एक उम्र के बाद कम होती जाती है। यह भी देखा गया है कि बेहद अनुशासित रहने वाली मॉम भी याद्दाश्त के मामले में धोखा खा जाती है, जिसकी वजह से उसके काम गड़बड़ा जाते हैं। काम तयशुदा समय पर नहीं हो पाते, जिसकी वजह से उसे स्टेस हो जाता है। इस स्थिति से बचने के लिए जहां-जहां आपकी नजर ज्यादा रहती है, वहां उन कामों को याद रखने के लिए स्लिप चिपकाएं। इसके लिए डैशबोर्ड, कार या बाथरूम के शीशे भी बेहतर जगह हो सकते हैं, जहां आप किए जाने वाले कामों को चिह्नित करके रखें। यदि कोई महत्वपूर्ण डॉक्यूमेंट कहीं लेकर जाना है तो उसे अपने ब्रीफकेस में पहले से रखें। किसी को मैसेज भेजने के लिए ई-मेल और रिमाइंडर भेजें। यदि आपको अपनी याद्दाश्त पर बहुत कम भरोसा है तो अपने बच्चों से कहें कि वह किसी विशेष काम को या किसी विशेष चीज को विशेष समय पर याद दिलाएं।
कुछ मॉम को अपने आप को सुपर मॉम कहलाना अच्छा लगता है। इस चक्कर में यदि आप अपने कामों की लिस्ट बहुत ज्यादा लंबी कर लेती हैं और उन्हें न कर पाने के कारण आपकी दिनचर्या में बाधा आ जाती है, घर के कामों को बेहतर ढंग से करने के फेर में ऑफिस की मीटिंग्स अटैंड नहीं कर पाते, हर समय कामों के बीच संतुलन कायम करने के प्रयास में लगी रहती हैं। यदि आपको लगता है कि आप किसी काम को हर हाल में एक तयशुदा समय के बीच कर लेंगी, तभी अचानक आपकी टीन-एजर बेटी अपने स्कूल में होने वाली आर्ट एग्जीबीशन में आपको आने के लिए बाध्य करती है। ऐसे में परेशानी पैदा हो जाती है कि बच्चे को खुश रखा जाए या अपने कॅरियर को ध्यान में रखा जाए। ऐसी स्थिति में किसी भी मॉम के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह अपने काम का शिड्यूल दोहराते समय वास्तविकता को नजरअंदाज न करें। सुपर मॉम की यह अवधारणा अपने आप में एक भुलावा बन जाती है। हर चीज को बेहतर ढंग से करना, चीजों को बढ़िया अंजाम तक लाना, यह सचमुच संभव नहीं है। बच्चों की अवहेलना करने की बजाय उन्हें क्वालिटी टाइम देना जरूरी है। अपने पार्टनर की इच्छाओं, आकांक्षाओं का भी ध्यान रखना जरूरी होता है। इन सबसे हटकर अपने आप पर भी ध्यान देना बेहद जरूरी है। इसके लिए यह जरूरी है कि गैर जरूरी चीजों को अपने शिड्यूल से बाहर किया जाए। किसी से मिलकर किसी बात को करने की बजाय ई-मेल से काम चलाएं। इससे आपका काफी समय बचता है। इस कीमती समय को बेहद जरूरी काम में लगाएं।
आपके बच्चे की डांस क्लास, पति की वार्षिक कांफ्रेंस और भी न जाने क्या-क्या, इन सबके बीच यदि आपको स्टेस होता है, अत्यधिक व्यस्तता आपको परेशान कर रही है, इन सबसे हटकर अपने लिए समय निकालें। अपने किए जाने वाले कामों में मी-टाइम को भी पूरा महत्व दें। दूसरों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को बेहतर ढंग से निभाने के साथ-साथ अपना पूरा ध्यान रखें। इस बात को कभी न भूलें कि आप जरा-सी लड़खड़ाईं नहीं कि आपके कंधों पर जिनका बोझ है, उन पर भी आपके लड़खड़ाने का असर होगा। काम की व्यस्तताओं के बीच अपना पूरा ध्यान रखें। इस बात को कभी न भूलें कि आप जितनी ज्यादा व्यस्त रहेंगी, आपको उतना ज्यादा अपने आपको रीचार्ज करना होगा।
– नीलम अरोड़ा
You must be logged in to post a comment Login