आप चाहें तो उन्हें अभिनेत्री कहें या चाहे लेखिका पर उनका पहला प्रेम रंगमंच ही कहलाएगा। सो मकरंद देशपांडे और नसीरूद्दीन शाह जैसे अभिनेताओं के साथ रंगमंच पर दर्जन भर महत्वपूर्ण नाटक करने वाली और फिल्मों के साथ आजकल सोनी के शो सुजाता में शैला की भूमिका निभाने वाली चर्चित अभिनेत्री दिव्या जगदले अपने आप में एक महत्वपूर्ण और संपूर्ण नाम कहा जा सकता है। हालांकि शो में उनकी भूमिका एक ऐसी मां की है, जो अपने पति के धोखा देने के बाद अपने दो बच्चों के साथ जीवन का संघर्ष कर रही है। पर वास्तविक जिंदगी में वे मानती हैं कि यदि औरत चाहे तो अपने संघर्ष को खुद हरा सकती है।
इसमें तो मुख्य चरित्र सुजाता भी आपकी ही तरह विवशता भरा पात्र है?
– नहीं। ऐसे पात्र केवल कुछ समय के लिए होते हैं। हमारे समाज की स्त्री का सही आइना यह नहीं है। अब समय के साथ भारतीय औरत भी बदल जाएगी। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वह अपनी परंपराएं और संस्कृति छोड़कर बदलने की तैयारी में है।
जैसे आप अपने रंगमंच के पुराने तेवर के साथ बनी हुई हैं?
– शायद। जयपुर में पैदा होने वाली मेरे जैसी लड़की के लिए हालांकि यह मुश्किल काम था, लेकिन मैं भाग्यशाली हूं कि मुंबई में रहने के कारण मुझे सत्यदेव दूबे जैसे जो लोग मिले उनसे मुझे अभिनय की दुनिया में काम करने का मौका भी मिल गया।
आपने उस समय? कौन से नाटक किए
– उनके साथ ही नहीं मैंने अपनी थियेटर कंपनी जीरो समूह के साथ भी कई नाटक किए। इनमें मेरे अंग्रे़जी के लिखे बांसुरी और एंड ऑफ सीजन जैसे नाटक हैं। हाल ही में मैंने सत्यदेव दुबे के साथ एंटीगनी किया था।
रंगमच के मामले में भी आप कई भाषाओं में नाटक करती रही हैं?
– पृथ्वी थियेटर में हिन्दी में नाटक करती थी। इसके अलावा अंग्रे़जी और गुजराती रंगमंच से भी जुड़ी हूँ।
आप तो फिल्मों से भी जुड़ी हैं ना?
– हां पहली बार मैंने हम दिल दे चुके सनम जैसी फिल्म की थी और उसके बाद दिल पे मत ले यार, मिक्स्ड डब्ल्स तथा मैंने गांधी को नहीं मारा। लेकिन जब तक कोई उचित भूमिका नहीं होती मैं फिल्मों के बारे में नहीं सोचती। आजकल भी लीना यादव के साथ एक फिल्म कर रही हूं और शिव सुब्रह्मण्यम की फिल्म ईरानी कैफे की पटकथा लिख रही हूं।
और टीवी?
– सहारा वन का “मैं ऐसी क्यूं हूं’ और के एक शो “मुूंबई मेरी जान’ के अलावा “सुजाता’ कर रही हूं बस।
जब आप इतने सारे क्षेत्रों में काम कर रही हैं, तो फिर निर्देशन कब करेंगी?
– फिलहाल नहीं। निर्देशन चुनौती भरा काम है। मैं अभी उस स्तर पर नहीं पहुंची हूँ। हां कभी मौका मिलेगा तो इस बारे में भी सोचूंगी। जो संतुष्टि मुझे रंगमंच देता है वह टीवी या फिल्म नहीं देते।
लेकिन उसमें आपको पैसा तो नहीं मिलता ना?
– लेकिन पैसे के लिए आप अपने कलाकार को तो नहीं मार सकते। ऐसे में आप केवल पैसा कमाने की मशीन भर बन जाते हैं।
एक विवाहित महिला होते हुए आपको अपने काम के लिए कितना समय मिलता है?
– कम मिलता है लेकिन चूंकि मैं और मेरे पति एक ही क्षेत्र से हैं, सो हम आपस में तालमेल बिठा लेते हैं। (हंसती हैं)
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