कहते हैं शादी के बाद एक अभिनेत्री का कॅरियर खत्म-सा हो जाता है लेकिन कनिका बाजपेयी एक ऐसी अभिनेत्री हैं, जिनका एक्ंिटग का कॅरियर शादी के बाद ही शुरू हुआ और रफ्ता-रफ्ता कनिका ने अभिनय की दुनिया में अपने 25 साल पूरे कर लिए। अपने अभिनय के इस सफर में उन्होंने थिएटर भी जमकर किया और धारावाहिक भी। साथ ही गीत-संगीत और नृत्य की दुनिया में भी वे कुछ न कुछ करती रहीं। वे अब तक चेतन आनन्द, एमएस सथ्यू, श्याम बेनेगल, लेख टंडन, विजय आनन्द, आत्मा राम और बासु भट्टाचार्य जैसे कई जाने-माने निर्देशकों के साथ काम कर चुकी हैं। इन दिनों भी दूरदर्शन के नेशनल चैनल पर उनका एक धारावाहिक “बिखरी आस निखरी प्रीत’ रविवार रात 9 बजे प्रसारित हो रहा है। इस धारावाहिक में वे मणि की एक प्रमुख भूमिका करने के साथ संगीतकार खय्याम के निर्देशन में गीत भी गा रही हैं और इसी धारावाहिक से वे निर्मात्री भी बन गई हैं।
आपने अभिनय की शुरुआत कब और कहॉं से की?
सन् 1982 में मैंने पहली बार दिनेश ठाकुर के साथ थिएटर किया। उनके “अंक’ ग्रुप के साथ जुड़ कर मैंने मुम्बई, दिल्ली और मारिशस में -“कछुआ और खरगोश’, “जाने न दूंगी’, “पगला घोड़ा’, “आपस की बात’, “भागम भाग’ जैसे कई नाटक किए। उनका सर्वाधिक चर्चित नाटक “कमला’ भी किया। प्रसिद्ध निर्देशक बंसी कौल के साथ भी मैंने “सखावत की दावत’ जैसे नाटक किए।
अभिनय का शौक क्या आपको बचपन से था?
पहले गाने का शौक था, पर एक्ंिटग का कीड़ा भी कहीं न कहीं था, गाने पर डांस करना बहुत अच्छा लगता था। इसीलिए मैंने क्लासिकल संगीत भी सीखा और कुछ समय तक कथक भी सीखा। जब मुझे देखने के लिए त्रिनेत्र बाजपेयी आए तो मैंने उन्हें- “आए बहार बनके, लुभा के चले गए’ गीत गाकर सुनाया। मेरी उनसे शादी हो गई तब वे बनारस में रहते थे। बनारस की आबो हवा में मेरा यह शौक और बढ़ गया। बाद में नौकरी के सिलसिले में बाजपेयी जी मुम्बई आए तो मेरे शौक को पंख लग गए, जिसकी शुरुआत मैंने थिएटर से की।
फिर आप धारावाहिक की दुनिया में पहुँच गइर्ं?
जी, बिल्कुल उस समय कई बड़े फिल्मकार धारावाहिक बनाना शुरू कर रहे थे। चेतन आनन्द ने “परमवीर चक्र’ बनाया तो उन्होंने मुझे नसीरूद्दीन शाह के साथ लिया। नसीर इसमें फौजी अफसर अब्दुल हमीद की भूमिका में थे और मैं उनकी पत्नी बनी थी। फिर एम एस सथ्यू के “कायर’ में और आत्मा राम के “बीसवां ऊंट’ में और श्याम बेनेगल के साथ “डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में काम किया। दूरदर्शन के ही एक और खूबसूरत धारावाहिक “कहकशा’ में मैंने जिगर मुरादाबादी की बेगम की भूमिका की थी। इसके अलावा यश चोपड़ा के देवेन वर्मा के निर्देशन में बने “जंक्शन लॉज’, नरेश मल्होत्रा के “तांक झांक’, विजय आनन्द के “हम रहे न हम’ तथा बासु भट्टाचार्य के “आस्था’ में भी काम किया।
आप “बिखरी आस निखरी प्रीत’ में कई बरस बाद दिखाई दे रही हैं, बीच में इतना गैप कैसे रह गया?
दरअसल हम 1995 में सऊदी अरब चले गए थे। विदेश में भी मैं नाटक और संगीत कार्यक्रम करती रही। मैंने “यू पी सरगम गिल्ड’ नाम से एक मंच बनाकर वहॉं कई किस्म के सांस्कृतिक कार्यक्रम किए। लंदन में तो स्टेज पर “रामायण’ करते हुए मैंने कैकई का रोल भी किया। अब 2006 से फिर मुम्बई वापस आ गई हूँ, तो फिर से यह सिलसिला शुरू हुआ।
“बिखरी आस निखरी प्रीत’ के कलाकार ज्यादातर नए चेहरे हैं ऐसा क्यों?
धारावाहिक में भरत कपूर, अरुण बाली जैसे पुराने कलाकार भी हैं। दिव्य द्विवेदी भी आजकल लोकप्रिय हैं। नए चेहरों को ज्यादा लेने का हमारा कारण यह था कि दर्शकों को पात्र रोजमर्रा की जिन्दगी के लगें जैसे “हम लोग’, “बुनियाद’ धारावाहिक में थे, पर बाद में वे सभी मशहूर हो गए। हमारे कलाकार भी जल्द मशहूर हो जाएंगें क्योंकि धारावाहिक की कहानी पटकथा सशक्त है और हमने इसे भव्य पैमाने पर बनाया है।
इस धारावाहिक के अलावा आप और क्या कर रही हैं?
मैं लेख टंडन जी के साथ ही एक और धारावाहिक “अगला मौसम’ कर रही हूँ। साथ ही हम एक फीचर फिल्म पर भी काम कर रहे हैं, जो चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य पर यानी गुप्त काल के समय पर है।
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