रिश्र्वत, लूट, चोरबाज़ारी, लांघ गई सारी सीमाएँ
काले धन के कारण, लुप्त हो गई हैं सब मर्यादाएँ
खण्ड-खण्ड करने भारत को, जंगल राज हुआ स्थापित
भूल रही है नारी सीता, सावित्री की धर्म कथाएँ
पुरुष हुए स्वच्छंद, एड्स जैसी बीमारी बॉंट रहे हैं
घर का मन्दिर छोड़, पात्र मदिरा का झूठा चाट रहे हैं
परस्त्री, परपुरुष, आज हो रहे प्रिय सारे समाज में
धूर्त-मूर्ख जिस शाखा पर, बैठे हैं उसको काट रहे हैं
रिश्र्वत अगर बन्द हो जाये, सब कुरीतियॉं मिट जायेंगी
दुर्व्यसनों की, रोग, शोक की काल बदरियॉं छंट जायेंगी
मन्दिर में आरती, कीर्तन, गंगाजल आचमन बढ़ेगा
मदिरालय, वेश्यालय जाने वाली, संख्या घट जायेगी
वरना एड्स महामारी से विश्र्व समुचा पट जायेगा
आने वाली संततियों का अधविकसित कद घट जायेगा
पशुओं-सा व्यवहार करेगा, मानव हो निर्लज्ज घिनौना
भूमण्डल से नक्षत्रों से सभी नियंत्रण हट जायेगा
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