संसार में कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो चरित्र का महत्व तो मानते हैं, परन्तु चरित्र के नियमों का पालन नहीं करते। वे कहते हैं कि, “”अकेले हमारे चरित्रवान बनने से क्या होगा? मैं तो चरित्रवान बनने को तैयार हूँ परन्तु दूसरे लोग भी चरित्र की मर्यादा को अपनायें, तभी तो कुछ बात बनेगी। एक अकेले के चरित्रवान बनने या न बनने से तो संसार में कोई अन्तर पड़ेगा नहीं।” इस प्रकार के निर्बल तर्क प्रस्तुत करते हुए, वे स्वयं तो चरित्र-धन से अथवा पवित्रता के आनन्द से वंचित रहते ही हैं और दूसरों को भी हतोत्साहित करते हैं।
यदि कोई देखना चाहे तो एक का महत्व संसार में स्पष्ट दिखाई देता है। आज एक व्यक्ति साधारण है, कल वह अपने परिश्रम से तथा जन-सहयोग से नेता बन जाता है। तब वह जैसा बोलता है, जो कुछ कहता है और करता है, उसका प्रभाव हजारों मनुष्यों पर पड़ता है। आज किसी पाठशाला में जो छोटा-सा बालक अथवा विद्यार्थी है, कल वह युवा हो कर एक बड़े दफ्तर में अधीक्षक बन जाता है और अनेकानेक व्यक्ति उसके अधीन, उसकी बनायी रूप-रेखा के अनुसार काम करते हैं। उसकी गतिविधियों का, रीति-नीतियों का, विचार-विमर्श का दूसरों पर भी कुछ तो प्रभाव पड़ता ही है। आज जो कन्या है, कल वही बड़ी होकर माता बन जाती है और जैसा उसका स्वयं का चरित्र होता है, वैसी ही लोरी और वैसा ही प्रशिक्षण वह अपने नन्हें-मुन्नों को देती है, गोया वही कल के परिवार की विधात्री का काम करती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि एक का प्रभाव अनेकानेक पर पड़ता है। कहावत भी है कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पकड़ता है।
इस विषय में अकबर और बीरबल से संबंधित एक किस्सा भी मशहूर है। किस्सा इस प्रकार है – अकबर ने एक बार बीरबल से पूछा, “”बीरबल इस नगर में ईमानदार लोग ज्यादा हैं या बेईमान?” बीरबल ने कहा, “”जनाब! एक हफ्ते की मोहलत दीजिए ताकि इस बात की जॉंच की जा सके।” अकबर ने कहा, “”बीरबल, एक हफ्ते में सभी मनुष्यों की जांच कैसे कर सकोगे?” बीरबल हाजिर-जवाब तो था ही, बोला, “”महाराज, सरकार की ओर से एक खाली तालाब बनवा दिया जाए और इस नगर में ढिंढोरा पिटवा कर यह राज-आज्ञा सुनवा दी जाय कि अमुक तिथि की रात्रि के अन्धेरे में, प्रातः होने से पहले, हर व्यक्ति एक लोटा दूध का डाल कर जाय।”
हुआ यह कि हर व्यक्ति ने यह सोच लिया कि सब लोग तो दूध डालेंगे ही, तब मैं अकेला दूध की बजाय पानी का लोटा डाल दूँ तो इससे कोई अन्तर नहीं पड़ेगा। जैसा विचार, वैसा आचार की उक्ति के अनुसार हरेक ने निश्र्चित रात के अन्धेरे में पानी का लोटा तालाब में डाल दिया। प्रातः अकबर ने जब निरीक्षण किया तो यह देखकर हैरान रह गया कि किसी ने भी दूध का लोटा नहीं डाला था।
कहने का भाव यह है कि हमें दूसरे मनुष्यों को नहीं, बल्कि आदर्श को अपने सामने रखना चाहिए और यह समझना चाहिए कि हर व्यक्ति समाज की एक महत्वपूर्ण इकाई है।
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