विवाह पूर्व यौन संबंध स्थापित करना, मानव प्रवृत्ति कहें या सामाजिक समस्या, आज की नहीं है बल्कि प्राचीन काल से चली आ रही है। पुराणों तथा महाभारत जैसे ग्रंथों में भी कई गाथाएँ ऐसे ही संबंधों पर आधारित हैं। आखिर क्यूँ होता है ऐसा? अगर सेक्स दो शरीरों का मिलन है और नैसर्गिक रूप से इसका उद्देश्य नई जिंदगी को संसार में लाना है, तो फिर शादी का बंधन क्यूँ? मात्र शादी की चार रस्में निभाकर वही कृत्य सम्मानजनक और औचित्यपूर्ण हो जाता है, अन्यथा इसे हिकारत और गुनाह की दृष्टि से देखा जाता है। लेकिन बात मात्र इतनी-सी नहीं है, बल्कि इसके और भी कई पहलू हैं, जिनके बारे में जानना नई पीढ़ी के लिए अत्यंत आवश्यक है।
सबसे पहले तो यही बात है कि ऐसे संबंध सही हैं या गलत! नैसर्गिक रूप से देखें तो इनमें कोई बुराई नहीं है क्यूंकि एक उम्र के पश्चात नर और मादा संसर्ग संतानोत्पत्ति के लिए किया जाता है, जबकि धार्मिक एवं सामाजिक नियमों और कायदों के अनुसार यौन संसर्ग के लिए विवाह बंधन में बंधना अत्यंत आवश्यक है। सामाजिक दृष्टि से विवाह पूर्व संबंध अनैतिक माने जाते हैं। वैसे विदेशों की तरह हमारे यहॉं भी स्थिति में परिवर्तन हो रहा है, किंतु अभी भी सामाजिक और धार्मिक मान्यताएँ हावी हैं। कानूनी दृष्टि से देखें तो नाबालिगता की दहलीज पार कर बालिग होने के पश्चात प्रेमी स्वतंत्र हैं। इस सिलसिले में लॉ कमीशन द्वारा प्रस्तावित प्रस्ताव की चर्चा भी बेमानी नहीं होगी जिसके तहत सेक्स सहमति की उम्र को 15 वर्ष से बढ़ाकर 16 वर्ष करने की तजवीज की गई है, जबकि कानूनन विवाह की उम्र लड़के और लड़की के लिए ामशः 18 वर्ष और 21 वर्ष तय की गई है।
इसका सीधा-सा अर्थ है कि कानूनन 16 वर्ष के बाद विवाहपूर्व सेक्स सहमति पर पाबंदी नहीं है, पाबंदी है तो सामाजिक और धार्मिक स्तर पर। सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से देखें तो ऐसे संबंध अनाचार या व्याभिचार के दायरे में आते हैं, फिर चाहे वे विवाहपूर्व यौन संबंध हों या विवाहेतर परपुरुष या परस्त्री से स्थापित यौन संबंध। किंतु तेजी से बदलते हालातों में ये बंधन ढीले पड़ते जा रहे हैं। इस बदलती मानसिकता के पीछे टीवी शोज़ और धारावाहिकों की भी भूमिका कम नहीं है। ऐसे में किशोरों की अपरिपक्व सोच सही फैसला नहीं कर पाती और ना ही वे विवेक से काम ले पाते हैं कि उनके लिए क्या सही है?
अब प्रश्न यह उठता है कि विवाहपूर्व यौन संबंध कितने सुरक्षित हैं- शारीरिक और भावनात्मक स्तर पर। शारीरिक स्तर पर देखें तो अगर कम उम्र में ऐसे संबंध स्थापित किये जाते हैं तो उस वक्त तक जिस्मानी तौर पर पूर्णरूप से विकसित ना होने की स्थिति में शारीरिक विकास पर असर पड़ता है। इसके साथ ही पढ़ाई पर भी असर पड़ता है तथा पारिवारिक और सामाजिक संबंधों पर भी। इसके अतिरिक्त, जहॉं विवाह बाद यौन संबंध मात्र अपने साथी से स्थापित किये जाते हैं वहीं विवाहपूर्व किसी प्रकार की नैतिक या सामाजिक उत्तरदायित्व के अभाव में साथी बदल भी सकते हैं तथा कई बार बदलते भी रहते हैं। ऐसे में यौन संबंधी बीमारियॉं एवं संामण, एड्स, सुजाक, सिफ़लिस इत्यादि लगने की संभावना चरम पर रहती है। अगर कंडोम का प्रयोग किया भी जाये तो भी यौन संामणों के खतरे में मात्र 85 प्रतिशत ही संभावना कम होती है, जो क्षणिक यौन सुख से कहीं अधिक कष्टकारी होती हैं। एड्स जैसी बीमारी में तो जिंदगी ही दॉंव पर लग जाती है।
विवाहपूर्व यौन संबंध बनाने पर लड़का अपने उत्तरदायित्व से मुँह मोड़ भी सकता है। इस स्थिति में लड़की पर दोहरी मार पड़ती है- एक तो बच्चे के लालन-पालन का उत्तरदायित्व, दूसरे वह भावनात्मक रूप से टूट जाती है। विवाहपूर्व सेक्स संबंधों में किसी प्रकार के नैतिक या सामाजिक बंधन ना होने से वे किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी से मुक्त रहते हैं। शायद यही कारण है कि विवाह पूर्व सेक्स संबंध स्थापित करने वाले जोड़े, जो आगे चलकर विवाह बंधन में बंध भी जाते हैं, तो उनमें तलाक की घटनाएँ भी उतनी ही अधिक देखी जाती हैं। इस स्थिति के पीछे जिम्मेवारियों से भागने की आदत के साथ-साथ विवाहपूर्व यौन संबंध बनाने की शर्म, ग्लानि, अविश्वास, तनाव तथा एक-दूसरे के प्रति सम्मान की कमी जैसे कारक मुख्य भूमिका निभाते हैं।
आजकल के माहौल में लड़कियों और लड़कों के बीच दोस्ती होना आम बात है। दोस्ती ही नहीं बल्कि अब तो डेटिंग का चलन भी जोर पकड़ रहा है। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि लड़के-लड़कियॉं किस हद तक छूट ले सकते हैं। देखा जाये तो, दोस्ती की हद तो लगभग तय है, रही डेटिंग की बात- तो डेटिंग का अर्थ विवाहपूर्व एक-दूसरे को भली-भॉंति जानना-समझना है ना कि हमबिस्तर होना। ऐसे में यौन क्रिया संबंधी किसी भी प्रकार की गतिविधियॉं वर्जित ही समझनी चाहिए। दरअसल इस संबंध में किसी प्रकार की सीमा तय करना आसान नहीं, बल्कि यह तो स्वयं ही समझने की बात है।
हम समाज में रहते हैं तो धर्म, समाज और कानून के दायरे में ही रहना होगा। यह हमारा जीवन है, हम जो चाहे करेंगे, हम समाज की परवाह नहीं करते या हम जमाने से नहीं डरते इत्यादि वाक्य फिल्मों में ही चलते हैं, वास्तविक जीवन में नहीं। हकीकत में तो विवाहपूर्व यौन संबंध वैयक्तिक तौर पर भी दुःखदायी ही रहते हैं। प्रायोगिक तौर पर भी अगर लड़का-लड़की साथ रहते हैं और यौन संबंध बनाते हैं, तो विवाहोपरान्त पत्नी को पति से वह सम्मान नहीं मिल पाता है जिसकी वह हकदार होती है। अगर वे विवाह नहीं करते हैं और परिवार, धर्म एवं समाज के विरुद्ध साथ रहते हैं और यौन संबंध स्थापित करते हैं, तो फिर उनका भगवान ही मालिक है।
प्रस्तुति-डॉ. नरेश बंसल
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