दोस्तों, यह तो आप जानते ही हैं कि हमारे देश का नाम “भारतवर्ष’ है। यह मान्यता इसे संविधान में भी प्राप्त है। हमारे देश का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा, यह जानने के लिए आपको एक कहानी की ओर जाना होगा। साहसी बालक राजा भरत, राजा दुष्यन्त और शकुंतला के पुत्र थे। राजा दुष्यन्त ने ऋषि की पालिता पुत्री शकुन्तला से विवाह किया था और किसी कारणवश क्रोधित होकर दुर्वासा ऋषि ने शकुन्तला को श्राप दे दिया था कि उसका पति उसे भूल जाएगा। शाप सत्य हुआ।
दुष्यन्त ने शकुन्तला को अपनी विवाहिता स्त्री अर्थात् पत्नी मानने से इन्कार कर दिया। तब पति से तिरस्कृत होकर, असहाय शकुन्तला वन में जाकर रहने लगी। उस समय वह गर्भवती थीं। यहीं उन्होंने कुमार भरत को जन्म दिया। बालक भरत बचपन से ही साहसी, पुरुषार्थी, पराामी और निडर थे। नरभक्षी सिंहों की पीठ पर वे सवारी करते थे। आपने सिंहों के जबड़े खोलकर उनके दांत गिनते हुए भरत का चित्र शायद देखा होगा। यह घटना काल्पनिक नहीं, सौ प्रतिशत सत्य है। भरत सिंहों के साथ खेलते और कुश्ती लड़ते थे। वे सिंहों के साथ रहकर ही बड़े हुए और एक दिन महाप्रतापी राजा “भरत’ बने। तब उनके परााम और महान गुणों की चर्चा एवं जय-जयकार पूरे भारतवर्ष में होने लगी। उन्हीं के नाम पर हमारे देश का नाम “भारत’ पड़ा। भरत पुरुषार्थ, न्याय और कर्त्तव्य परायणता के लिये भी प्रसिद्ध थे। अपने सुंदर शासन प्रबंध से उन्होंने अपनी प्रजा का हृदय जीत लिया था। इस प्रकार भरत की कहानी साधारण नहीं है वरन् यह सिद्ध करती है कि साहसी व्यक्ति के लिये संसार में कोई भी काम असम्भव नहीं होता।
– ललित नारायण उपाध्याय
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