विपिन आठ साल का लड़का था। वह चौथी कक्षा में पढ़ता था। वह एक सुलझा हुआ, समझदार एवं प्यारा बच्चा था। उसका प्रकृति के प्रति विशेष लगाव था। पर्यावरण में निरंतर बढ़ता प्रदूषण उसे बहुत चिंतित करता था। वह इसके बारे में अपनी किताबों और कई पत्रिकाओं में पढ़ता, टीवी में भी इस विषय पर चर्चाएँ सुनता रहता। एक दिन उसके माता-पिता ने उसे बताया कि उनके बगीचे में जो विशाल, छायादार बरगद का पेड़ था, उसे नगरपालिका के कर्मचारी काटना चाहते थे ताकि वे सड़क चौड़ा कर सकें। यह जानकर उसे बहुत दुःख हुआ। वह ठीक से रात का खाना भी नहीं खा पाया और सो गया। कहते हैं कि जिस बात पर विचार करते हुए सोते हैं, उसी के सपने आते हैं। यही हुआ विपिन के साथ। उसने सपने में देखा कि सुबह हो चुकी है और वह उसी बरगद के पेड़ के नीचे सोया हुआ है। कितना सुकून था उस पेड़ के नीचे। इसी पेड़ के नीचे उसने अपना बचपन बिताया था। उस पेड़ को उसके दादाजी ने अपने बचपन में लगाया था। विपिन को अपने दादाजी से बहुत लगाव था। इस कारण भी वह पेड़ विपिन के लिए ज्यादा मायने रखता था।
सपना इतना अजीब नहीं था। लेकिन यह क्या! उसके पास तो एक जिराफ भी सोया हुआ था और थोड़ी देर में एक भालू भी वहॉं आया और पेड़ के पीछे से झांकने लगा। सपने में ही, जब वह उठा तो उसने पाया कि उसके सामने उसका घर नहीं बल्कि एक बड़ा घना जंगल था और वह दोनों जानवर उसी जंगल के निवासी थे। वह उन दोनों को देखकर चौंका और थोड़ा भयभीत भी हुआ। लेकिन वे जब उससे खुलकर, दोस्त की तरह बातें करने लगे तो उसका भय कुछ कम हुआ। उन्होंने पाया कि विपिन बातें तो कर रहा था, किन्तु वह सहज नहीं था। कुछ बात थी जो उसे परेशान कर रही थी। बहुत जिद करने पर विपिन को पेड़ के बारे में उन जीवों को बताना पड़ा। यह सुनकर उन्होंने दुःख तो प्रकट किया पर आश्चर्य नहीं। उन्होंने उसे सहजभाव से बताया कि इंसान तो इसी तरह अपनी ज़रूरतों के लिए मूल्यवान पेड़-पौधों एवं जंगलों को अंधाधुंध काटने में लगा हुआ है।
यह जानते हुए भी कि इससे सबसे ज्यादा नुकसान उसे ही झेलना पड़ेगा, वह बिना सोच-विचार किये अपने कृत्यों से अपने पर्यावरण को हानि पहुँचाने में लगा हुआ है। लेकिन इसका समाधान भी इंसान के ही पास है। सब लोगों को एकजुट होकर इसका सामना करना होगा और प्रदूषण को कम करना होगा। शुरूआत में हो सकता है कि सिर्फ एक-दो ही लोग आगे बढ़ें, पर उनकी प्रेरणा से और कई लोग सामने आयेंगे। हो सकता है, लोग पहले उस प्रयत्न को नज़रंदाज करें लेकिन आखिरकार वह भी अपना योगदान देंगे। बस, ज़रूरत है तो उन चंद एक-दो लोगों की, जो संकल्प के दृढ़ एवं प्रकृति को समझते हों। उनकी बातों से विपिन बहुत प्रभावित हुआ। इतने में ही सुबह हो गई और विपिन का सुंदर सपना टूट गया। लेकिन यह सुबह उसकी जिंदगी बदलने वाली थी। उसने सोचा कि वह उन चंद एक-दो लोगों में क्यों नहीं हो सकता?
अपने दादाजी के पेड़ को वह कुछ नहीं होने देगा। उस दिन रविवार था और उसी दिन नगरपालिका के लोग आने वाले थे। विपिन ने जल्दी से नाश्ता खत्म कर, “पर्यावरण बचाओ’ संबंधी कई बोर्ड बनाये और उन्हें पेड़ के चारों ओर लगा दिया। और वहीं पर बैठकर ज़ोर-ज़ोर से नारेबाजी करने लगा कि वह पेड़ नहीं कटने देगा और जब तक नगरपालिका द्वारा लिखित रूप में यह आश्वासन प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक वहीं बैठेगा और खाना या पानी कुछ भी ग्रहण नहीं करेगा। उस छोटे से बच्चे की निष्ठा एवं संकल्प देख नगरपालिका ने उस पेड़ को काटने का अपना फैसला बदल दिया। विपिन ने अपने सुनहरे सपने को हकीकत में बदल दिया – अपने संकल्प एवं दृढ़ता से। क्या आप ये दम रखते हैं?
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