गर्मियों में पानी की किल्लत यत्र-तत्र-सर्वत्र बढ़ जाती है। एक तरफ जहॉं सार्वजनिक नलों पर आधी रात से ही पानी भरने वालों की मीलों लंबी कतार लग जाती है वहीं दूसरी ओर लोग घरों की टोंटियॉं तथा सार्वजनिक नल यूँ ही खुला छोड़ देते हैं। रेलवे स्टेशनों पर कहीं तो पानी बहता रहता है और कहीं बोतलबंद पानी की बोतलों अथवा कोल्ड डिं्रक की बिाी हेतु टोंटियां जैसे जन्म-जन्मांतर की प्यासी, पानी की सप्लाई का अन्तहीन इन्तजार करती रहती हैं।
बस-स्टेशनों का भी यही आलम है। अधिकांश जगहों पर सार्वजनिक नल तो हैं ही नहीं, अगर कहीं भूले-भटके से हैं भी तो वहॉं सिवाय मक्खियों की भिन-भिन के कुछ नहीं मिलता। प्याऊ संस्कृति अब मृतप्राय हो चुकी है। मरता क्या न करता, लोगबाग पाउच खरीद कर प्यास बुझाते हैं। यह जानते हुए भी कि यह पानी सेहत के लिए ठीक नहीं है।
दूसरी तरफ गर्मी आते ही सड़कों पर पानी के टैंकरों की आदमरफ्त तेज हो जाती है। समझ में नहीं आता, गर्मियों में जब सारे जल-स्रोत सूख चुके होते हैं, जैसा कि सरकारें कहती हैं, तब इन टैंकर वालों को पानी कहॉं से मिल जाता है? दरअसल आजकल पानी से पैसा बनाने का धंधा जोरों का चल निकला है। मिनरल वाटर के नाम पर साधारण पानी को बोतलों में बंद कर लोगों को बेवकूफ बनाने का धंधा तो फल-फूल रहा ही है। शादी-ब्याहों में भी मिनरल वाटर के नाम पर साधारण बोतलबंद पानी का व्यवसाय भी खूब चल रहा है।
बहरहाल, पानी को बचाये रखने की हम सबकी महती जिम्मेदारी है। जैसा कि कविवर रहीम ने कहा भी है –
रहिमन पानी राखिये…
जी हॉं, कविवर की पंक्तियों का गूढ़ार्थ चाहे जो भी हो, हमारी आज की सबसे अनिवार्य जरूरत है पानी की बचत वर्ना पानी नहीं तो हम भी नहीं, हमारा जीवन नहीं… हमारा अस्तित्व नहीं… कुछ भी नहीं बचेगा। इसलिए दोस्तों! पानी बचाइये…
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