केदारखंड-उत्तराखंड के चारों धामों में यमुनोत्री, हिमालय के विशाल शिखर के पश्र्चिम में समुद्री सतह से 3185 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। सूर्यपुत्री यमुना का उद्गम यमुनोत्री से 6 कि.मी. ऊपर कालिंदी पर्वत पर है। यह स्थान अधिक ऊँचाई पर होने के कारण दुर्गम है। यहीं पर एक झील है, जो यमुना का उद्गम-स्थल है। कालिंदी पर्वत की गोद में यमुनोत्री के पास यमुना शैशव रूप में होती है। यहां का जल स्वच्छ-शुद्ध व धवल हिम की भांति शीतल है।
यमुनोत्री के चहुंओर हिममंडित शैलमालाएँ मन को मोह लेती हैं। यहॉं के मनोरम दृश्य अनिर्वचनीय हैं। चीड़ की हरी-भरी वनश्री, नीचे कलोलनिनादनी कालंदी की शीतल धारा मन को मोहित किये बिना नहीं रहती। यमुनोत्री के निकट यमुना की धारा उत्तरवाहिनी हो जाती है। इसलिए इसे यमुनोत्री कहते हैं। यमुनोत्री के प्राकृतिक सौंदर्य को देखने का अवसर भाग्यशालियों को ही मिल पाता है।
यमुनोत्री के कपाट वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया को खुलते हैं और कार्तिक में यम द्वितीया के दिन बंद हो जाते हैं। शीतकाल में 6 महीने खरसाली के पंडे यमुनोत्री की पूजा अपने गांव में ही करते हैं। टिहरी नरेश महाराजा प्रतापशाह ने वि.सं. 1919 में यमुनोत्री मंदिर बनवाया था। मंदिर में काला संगमरमर है। गंगा-यमुना को सौतेली बहनें माना जाता है। इस मंदिर में गंगा जी की भी मूर्ति शोभित है। हमारी संस्कृति में ये दोनों माता का रूप लिए हुए हैं। क्या यह कम महत्व की बात है कि इन दोनों नदियों ने भारतीय सभ्यता को पनपाया है। मंदिर के निकटस्थ पहाड़ की चट्टान के अंदर गर्म पानी का कुंड है। इसे सूर्यकुंड के नाम से जाना जाता है जिसका तापमान 100 डिग्री सेंटीग्रेड फॉरेनहाइट रहता है। इसमें आलू-चावल पोटली में रखे जाएँ, तो वह पककर तैयार हो जाते हैं। यही यहॉं का प्रसाद होता है। यमुनोत्री का प्रसाद इस जल का पका हुआ चावल माना जाता है। गौरीकुंड का जल थोड़ा कम गर्म रहता है। इसी में यात्री स्नान करते हैं। प्रकृति का कितना अजूबा है यह स्थान। सूर्यकुंड के पास ही एक शिला है, जिसे दिव्य-शिला कहते हैं। इसकी पूजा का विशेष महत्व है। स्नान के बाद दिव्य-शिला की पूजा की जाती है। उसके बाद यमुना नदी की पूजा की जाती है। एक हैरानी की बात है कि असित मुनि ने यहॉं तप किया था। अपनी आध्यात्मिक व मानसिक शक्ति के बल पर वे प्रतिदिन यमुनोत्री व गंगोत्री दोनों जगहों पर स्नान करके यमुनोत्री लौट जाते थे, लेकिन बुढ़ापे में जब यह नामुमकिन हो गया तो गंगाजी खुद एक सूक्ष्म धारा के रूप में इसी स्थान पर चट्टान से निकलकर फूट पड़ीं। यही वजह है कि आज भी यमुनोत्री में गंगा जी की पूजा का प्रचलन है। यहां से आगे सप्तकुंड है, जिसका खास महत्व माना गया है।
कूर्म पुराण के मुताबिक यमुना की जन्मकथा यूं है – सूर्य की संध्या व छाया नामक दो पत्नियां थीं। संध्या से गंगा तथा छाया से यमुना व यमराज पैदा हुए। इस प्रकार गंगा, यमुना सौतेली बहिनें व यमुना व यमराज सगे भाई-बहन हैं।
स्कंद पुराण के अनुसार संध्या प्रजापति की पुत्री व छाया संज्ञा की सवर्णा थी। संज्ञा से वैवस्वत मनु यम व यमुना पैदा हुए और छाया से सावर्ण मनु (आठवें मनु) व श्यामवर्ण शनैश्र्चर यम ने जन्म लिया। यमुनोत्री में एक हनुमान का मंदिर है। कालीकमली वालों की धर्मशाला है। यह स्थान बहुत ठंडा होता है। आवास की सुविधाएँ नाममात्र की हैं। यात्री रात को नीचे की चट्टियों में आ जाते हैं।
यमुनोत्री जाने के लिए अभी भी कुछ किलोमीटर पैदल जाना होता है। उम्मीद करनी चाहिए कि यहॉं भी बस-मार्ग जल्दी पूरा हो जाएगा। यात्रियों का चाहिए कि वे गर्म कपड़े साथ ले जाएँ। जाने के लिए ऋषिकेश से बस-सुविधा उपलब्ध है।
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