गर्मियों में पानी की किल्लत यत्र-तत्र-सर्वत्र बढ़ जाती है। एक तरफ जहॉं सार्वजनिक नलों पर आधी रात से ही पानी भरने वालों की मीलों लंबी कतार लग जाती है वहीं दूसरी ओर लोग घरों की टोंटियॉं तथा सार्वजनिक नल यूँ ही खुला छोड़ देते हैं। रेलवे स्टेशनों पर कहीं तो पानी बहता रहता है और […]
यह मान्यता रही है कि किसी प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का कार्य होता है, लेकिन आज यह मान्यता मात्र चर्चाओं तक ही सीमित रह गई है। अब यदि कोई प्यासा मिल भी जाता है तो लोग उसे पानी पिलाने में कोताही कर देते हैं। आने वाले वर्षों में पेयजल के संकट की भविष्यवाणियां लगातार […]
करोड़ों वर्ष पहले इस धरती पर डायनासोरों का राज्य था। भूकम्प एवं उल्कापातों द्वारा धरती पर प्रलय के कारण पुराने पौधे, जानवर जमीन में दब गए। कुछ कोयला बन गए, कुछ पेट्रोलियम में परिवर्तित हो गए। इनको बनने में 386 मिलियन वर्ष लगे। कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैसें जलकर उष्मा ऊर्जा प्रदान करते हैं जो वाहन, […]
मीठा जल हमारे लिए असाधारण द्रव साधन है। हमारे देश के 0.72 मिलियन हेक्टेयर का क्षेत्र नैसर्गिक सरोवरों से उपलब्ध है। कृत्रिम तालाबों, झीलों और बांधों में भी उतना ही मीठा जल उपलब्ध है। मानव जीवन के लिए मीठा जल उचित मात्रा में सेवन करना आवश्यक है। बशर्ते यह बैक्टीरिया और रासायनिक पदार्थों से युक्त […]
प्रकृति और आदमी का सदा से साथ रहा है। इसी प्रकृति के पर्यावरण में हम, अन्य जीव तथा पेड़-पौधे जीते हैं। यदि प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाएगा, तो हम सब पर उसका बुरा असर पड़ेगा। पिछले कुछ वर्षों से इस संतुलन में बहुत-कुछ बिगाड़ आया है। इसका कारण आदमी ही है। हम देख रहे हैं […]
संसार में सूर्य की ऊर्जा को ग्रहण करके भोजन के निर्माण का कार्य केवल हरे पौधे ही कर सकते हैं। इसलिए पौधों को उत्पादक कहा जाता है। पौधों द्वारा उत्पन्न किए गए भोजन को ग्रहण करने वाले जंतु शाकाहारी होते हैं और उन्हें हम प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता कहते हैं।
जैसे-गाय, भैंस, बकरी, भेड़, हाथी, ऊंट, खरगोश, बंदर ये सभी प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता कहलाते हैं। प्रथम श्रेणी के उपभोक्ताओं को भोजन के रूप में खाने वाले जंतु मांसाहारी होते हैं और वे द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता कहलाते हैं। इसी प्रकार द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ताओं को खाने वाले जंतु तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता कहलाते हैं। […]
आर्थिक विकास के कार्यक्रम बनाने में सावधानी बरतनी चाहिये। सिंधु घाटी के हमारे पूर्वजों ने पक्की मिट्टी के शहर बनाये। यह उस समय का उत्कृष्ट तकनीकी विकास था। ईंट पकाने के लिये ईंधन की ज़रूरत पड़ी जिसके लिये उन्होंने जंगल काट डाले। फलस्वरूप नदियों में मिट्टी भर गयी और बाढ़ का प्रकोप इतना बढ़ गया […]