बहुत पुराने दिनों की बात है। एक सम्राट अपने जीवन के अन्तिम दिनों की गिनती गिन रहा था और बहुत चिंतित था। मृत्यु से नहीं, वरन् अपने तीन लड़कों से, जिनके हाथ में उसे राज्य की बागडोर सौंपनी थी।
वह यह निर्णय करने में असमर्थ था कि किसके हाथ में राज्य की शक्ति दे। क्योंकि शक्ति केवल उन हाथों में ही शुभ होती है जो शान्त हों और यह निर्णय बहुत कठिन था कि उन तीनों में शांत कौन है। कैसे परीक्षा हो? कैसे जाना जा सके कि कौन युवराज उस राज्य के हित में होगा, कौन अहित में?
कुछ चीज़ें होती हैं जो बाहर से नापी जा सकती हैं लेकिन जीवन में जो भी महत्वपूर्ण है, उसे नापने के लिए न कोई बाट है, न कोई तराजू है। कुछ चीज़ें हैं, जो बाहर से पहचानी जा सकती हैं, लेकिन जीवन में जो भी महत्वपूर्ण है, उसे बाहर से पहचानने का भी कोई उपाय नहीं है। कैसे पहचाना जा सके, कैसे जाना जा सके, क्या रास्ता हो? अंततः उस सम्राट ने एक फकीर से पूछा। उस फकीर ने रास्ता बताया। दूसरे दिन सुबह उसने अपने तीनों बेटों को बुलाया, उन्हें सौ-सौ रुपये दिये और कहा कि “”तीन जो महल हैं तुम तीनों के नाम… ये सौ-सौ रुपये मैं देता हूं… सौ रुपये में ऐसी चीज़ें खरीदना कि पूरा महल भर जाये, ज़रा-सी भी जगह खाली न बचे। जो तीनों में सर्वाधिक सफल होगा, वही सम्राट बनेगा, वही राज्य का अधिकारी हो जायेगा।”
केवल सौ रुपये और महल इतने बड़े-बड़े! क्या करें, क्या न करें…। पहले राजकुमार ने सोचा, सौ रुपये से महल तो भरा नहीं जा सकता। क्यों न इन पैसों को दांव पर लगा दिया जाए। हो सकता है, जुए में उसकी जीत हो जाए। वह उन रुपयों से महल को भर लेगा। लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, जो बहुत पाने के लिए जुआ खेलने जाते हैं, वह भी खोकर लौट आते हैं, जो उनके पास होता है। वैसे ही वह युवक भी सौ रुपये खोकर घर वापस लौट आया। उसका महल बिल्कुल खाली रह गया।
दूसरे राजकुमार ने सोचा कि सौ रुपये बहुत थोड़े हैं। इतना बड़ा महल हीरे-जवाहरातों से तो भरा नहीं जा सकता। एक ही रास्ता है कि गांव का जो कूड़ा-कचरा बाहर फेंका जाता है, उसे खरीद लिया जाए और महल भर दिया जाए। इसलिए गांव से जो भी कूड़ा-कचरा बाहर जाता था, सब उसने खरीदना शुरू कर दिया और महल में कूड़े-करकट के ढेर लगा दिये। सारा महल भर गया, लेकिन साथ ही दुर्गंध भी भर गई। उस रास्ते से निकलना भी मुश्किल हो गया। तीसरे राजकुमार ने भी महल भरा। किससे भरा? यह थोड़ी देर में स्पष्ट हो सकेगा। तिथि आ गई निर्णय की। परीक्षा के लिए सम्राट आया। पहले राजकुमार का महल खाली था। उस राजकुमार ने कहा, “”क्षमा करें पिताजी, सौ रुपये बहुत कम थे। मैंने सोचा-जुआ खेलूं, शायद जीत जाऊँ तो महल भर लूंगा। मैं हार गया। पूरा महल खाली है।”
दूसरे राजकुमार के महल के पास जाते ही बदबू के मारे सबको घबराहट हो गयी… इतनी बदबू…, सारा महल कूड़े-करकट, गंदगी से भरा था। उस राजकुमार ने कहा, “”कोई और रास्ता न था। सिर्फ कचरा ही खरीदा जा सकता था। सौ रुपये में भला और क्या मिल सकता है?” फिर सम्राट तीसरे राजकुमार के महल में गया। देखकर दंग रह गये परीक्षकगण। जो निर्णायक थे, वे देखकर आश्र्चर्य से भर गये – कितनी प्यारी सुगंध थी उस महल के पास।
फिर वे भीतर गये, रात थी अमावस की, किंतु सारे महल में दीये जलाये गये थे। राजा ने पूछा, “”तूने महल किस चीज़ से भरा है?” उस राजकुमार ने कहा, “”प्रकाश से, आलोक से।” कोने-कोने में दीये जले थे। महल प्रकाश से भरा था, और सुगंधियां छिड़की गयी थीं और महल के द्वार-द्वार, खिड़की-खिड़की पर फूलमालाएं लटकाई गयी थीं। वह महल सुगंध और प्रकाश से भरा था। जाहिर है, तीसरा राजकुमार परीक्षा में अव्वल नंबर से पास हुआ था। राजा ने उसे ही अपने राज्य का उत्तराधिकारी बनाया।
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