थानेदार का देशप्रेम

क्यों बे, लड़कियॉं छेड़ने आया था होटल में? सिपाही ने उसे गले से पकड़ कर धक्का दिया।

वह तो वैसे ही लड़खड़ा रहा था। इस धक्के से थाने के फर्श पर गिर पड़ा। फिर भी बच गया। उसका सिर मेज से छू तो गया, किन्तु उसे टकराना नहीं कह सकते। टकराता तो सिर फटता और रक्त निकलता। वह सब नहीं हुआ।

उसकी चेतना कुछ-कुछ लौटी। स्मरण हो आया कि वह होटल में बैठा शराब पी रहा था, किन्तु अब वह होटल में नहीं था बल्कि थाने में था। होटल के बैरे किसी और शैली में बात करते हैं और पुलिस का यह सिपाही अपने ही ढंग से व्यवहार कर रहा था।

नहीं, नहीं, मैं तो वहां शराब पीने गया था। उसने बड़ी शालीनता से कहा।

इस बार थानेदार स्वयं उठकर आ गया, कबूल कर रहा है कि तू शराब पीने गया था?

हां।

जानता नहीं, शराब पीना अपराध है। वह शरीर और आत्मा दोनों को नष्ट करती है। ऐसा महात्मा गांधी ने कहा है। थानेदार ने कहा।

कहा होगा, पर क्या शराब पीना सचमुच अपराध है?

हां।

तो सरकार ने ही तो होटल को यह अपराध करने का लाइसेंस दिया है।

जुबान लड़ाता है!

नहीं, मां कसम, सच बोल रहा हूं।

इससे पहले कि थानेदार उसको पीटता, सिपाही बीच में आ गया, जनाब, वह होटल लाइसेंस वाला ही था। ठीक कह रहा है यह।

सरकार भी एक ओर लाइसेंस बांटती है, दूसरी तरफ शराबियों को पकड़ने के लिए हमारी ड्यूटी लगा देती है।

हुजूर, आप सरकारी नौकर होकर सरकार की….

तो तू शराब पीने गया था। अय्याशी करने की खुजली उठी थी। कौन-सा उत्सव मनाने गया था तू? थानेदार ने कहा।

नहीं, मैं तो अपना दुःख भुलाने गया था।

अच्छा, तो तू दुःख भुलाने गया था। क्या दुःख है तुझे जिसे भुलाने के लिए होटल में जा पहुंचा? दुनिया तो जश्र्न्न मनाने जाती है वहां। सबने नाच-नाच कर दीवारें हिला दी थीं। एक तू ही दुःखी जीव था वहां।

उसने कोई उत्तर नहीं दिया। थानेदार की ओर देखता रहा।

क्या दुःख है तुझे? थानेदार ने पुचकारा, बोल तो। शायद हम तेरा दुःख बांट लें।

तुम नहीं बांट सकते।

क्यों हम आदमी नहीं हैं?

नहीं वह बोला।

अच्छा, तो तेरी दृष्टि में हम आदमी ही नहीं हैं। थानेदार का पारा चढ़ने लगा।

नहीं, तुम पुलिस हो।

और तेरा कौन-सा दुःख है, जो पुलिस नहीं बांट सकती। पुलिस तो लोगों की प्रेमिका तक बांट लेती है, तो तेरा दुःख नहीं बांट सकती!

मेरे मन को निठारी के बच्चों और उनके माता-पिता का दुःख खाये जा रहा है। वह रो पड़ा।

हमें उन बच्चों का दुःख नहीं है? थानेदार उसे घूर रहा था।

नहीं, क्योंकि तुमने ही तो उन बच्चों को खाया है। वह बोला, तुम्हें दुःख होता, तो तुम उन्हें खाते ही क्यों?

हमने खाया है उन बच्चों को? हमको मुर्गा नहीं मिलता क्या? थानेदार ने सख्त होकर उसे धमकाया।

और क्या! दो वर्ष हो गये बच्चों को गुम होते हुए और तुम लोगों ने एक बार भी जांच-पड़ताल नहीं की। वह उन बच्चियों के साथ बलात्कार कर उनकी हत्याएँ करता रहा और तुम लोगों ने सुध ही नहीं ली। पता नहीं, तीस लड़कियां थीं या तीन सौ। सच बताना, कितने पैसे देता था?

पैसे कहां देता था, कंजूस था। थानेदार ने कहा, पर हमें तो वह लड़कियॉं…

थानेदार चौंका और तत्काल क्रुद्ध हो गया, अबे, होटल में शराब पीकर लड़कियां छेड़ता है और हमें बदनाम करता है। बता, लड़की को क्यों छेड़ा? होटल में तो हम भी लड़की को नहीं छेड़ते।

नहीं। मैंने किसी लड़की को नहीं छेड़ा।

तो यह सिपाही झूठ बोलता है?

इसको मालूम नहीं है। बहुत भोला है बेचारा। वह बोला, वह बेचारी बच्ची शराबियों की उस वहशी भीड़ में अपने कपड़े उतार कर कूद-फांद कर रही थी। मैंने सोचा, कहीं बेचारी के साथ कोई अनहोनी न हो जाए। जाने वहां कितनी वहशी निगाहें थीं। मैं तो उसे कपड़े पहनाने की कोशिश कर रहा था।

थानेदार ने सिपाही की ओर देखा।

नहीं साहब, वह दस हजार वाली विदेशी थी और यह बिना पैसे की बात किये उसे खींच रहा था। सिपाही बोला, यह होश में नहीं था।

यह कुछ नहीं जानता। वह चिल्लाया, मैं एक लड़की को निठारी के राक्षसों से बचाने का प्रयत्न कर रहा था और यह मुझे घसीट कर थाने में ले आया है। जाने उस बेचारी बच्ची के साथ क्या हुआ होगा?

थानेदार ने उसे खींचकर एक चांटा मारा, तेरे जैसे लोग ही भले आदमियों को संसार का सुख भोगने नहीं देते। वे बेचारी लड़कियां हजारों मील दूर से धंधा करने आयी थीं और तू उनको न ऐश करने देता है, न पैसे कमाने देता है। न तू सरकार को धंधा करने देता है, न उन लड़कियों को। बंद कर दो साले को हवालात में। ये ही लोग देश को आगे नहीं बढ़ने देते।

थानेदार का देशप्रेम बहुत ऊँचे स्वर में गूंजता रहा और निठारी से चीत्कार उठते रहे।

– डॉ. नरेंद्र कोहली

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