एकता को चाहिए टीआरपी और उनके पात्र टीआरपी बढ़ा रहे हैं। एकता के धारावाहिकों की झगड़ालू औरतों के खिलाफ चाहे कोई कुछ भी बोले लेकिन उनके पक्ष में बोलने वालों की भी कमी नहीं है। निर्मात्री तनुजा चन्द्रा विस्टन चर्चिल का उदाहरण देती हुई कहती हैं कि एक कट्टर व्यक्ति वह है जो अपनी विचारधारा को बिल्कुल नहीं बदलता, साथ ही विषयों के साथ भी बदलाव नहीं लाता। एकता कपूर के बारे में भी यही विचार है कि वह धारावाहिकों को लेकर किसी के बहकावे में न आते हुए अपने इरादे नहीं बदलती। उसके धारावाहिकों में खलनायिकाओं की उपस्थिति भी प्रभावशाली होती है और वह अंत तक अपनी उपस्थिति बरकरार रखती है। एकता को गुस्से में उबलते हुए देखा जा सकता है। उसे अच्छा काम चाहिए, इसके लिए किसी के सिर पर सवार होना बुरा नहीं। तभी तो उसे हायर एण्ड फायर किस्म की निर्मात्री कहा जाता है। लेकिन एकता इस धारणा को झुठलाते हुए यह साबित करने की कोशिश करती है कि उसे अनुशासन चाहिए और जो अनुशासित नहीं होता, बालाजी टेलीफिल्म्स भी उसका नहीं होता। ठीक ही तो कहा एकता ने। आखिर 29 साल की उम्र में कोई ऐसे ही अरबपति नहीं हो जाता। एकता कपूर की तेजी और बुलंदियां छूती टीआरपी, भौचक्के दर्शक और परास्त होते प्रतिद्वंद्वी… वाह… इनको देख कर तो यही कहा जा सकता है कि यह सेंसेक्स नहीं, जो लुढ़क जाए। 75 लाख से शुरू हुआ बालाजी टेलीफिल्म्स का बिजनेस आज 650 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुका है। आखिर क्या है एकता की सफलता का राज? चार्ली चैपलिन, लारेंस ओलिविर, डेविड लर्न, फ्रांसिस फोर्ड, कोपोलो जैसे दिग्गज तक इस बात को नहीं समझ पाए कि कौन सा फार्मूला भीड़ को खींचता है, लेकिन एकता के पास भीड़ को खींचने का मूलमंत्र है। अटकलबाजियां ज़रूर बता सकती हैं कि एकता कपूर की बुलंदियां छूने का आधार क्या है? भीड़ खींचने के मंत्र को लेकर विश्र्लेषकों से पूछा तो उनके पास खरा जवाब है। वे कहते हैं, एकता के धारावाहिकों में क्या नहीं है? मध्यम उच्च वर्गीय परिवारों की अच्छाइयां और बुराइयां भी। चालबाज औरतों से लेकर षड्यंत्र रचने वाले पुरुष भी। औरतें तो खलनायिकाएं हैं ही, पुरुष भी ग्रे शेड के नए तेवर अपना चुके हैं। एकता का संघर्ष काबिले तारीफ है। एक समय ऐसा भी था जब वह अपने बंगले के गैरेज जैसी जगह को दफ्तर बनाकर रहती थी और घंटों काम करती थी। टीवी चैनलों के ऑफिस जाती और धारावाहिकों के कैसेट लेकर इधर-उधर भटकती, लेकिन विश्र्वास कभी नहीं टूटा। जब एक के बाद एक सभी पायलट रिजेक्ट कर दिए गए तो उन कमजोर क्षणों में भी वह डगमगाई नहीं। एकता मानती है कि उनके धारावाहिकों में नाटकीयता ज्यादा है पर बुद्धिमान दर्शक सब समझते हैं, तभी तो इन्हें देखते और पसंद करते हैं। हालांकि एकता अपने धारावाहिकों के जरिए सामाजिक संदेश भी देना चाहती है, पर जब व्यावसायिकता आड़े आती है तो कुछ समझौते करने पड़ते हैं। एकता की उपलब्धि देखिए। टीवी धारावाहिकों के निर्माण में सक्रिय अरूणा ईरानी को भी एकता ने अपने धारावाहिकों में काम करने के लिए राजी कर लिया। अरूणा ने तो यह तक कह डाला है कि एकता से उसकी कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है। टीवी की दुनिया में एकता का सिक्का चलता है। काम की भी इतनी जुनूनी कि उनके आसपास के लोग तनाव में भले ही बेहोश होने की स्थिति में आ जाएं लेकिन एकता हर काम को बेहतर तरीके से अंजाम देकर ही दम लेती है।
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क्या है एकता की सफलता का राज? added by सम्पादक on
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