ईश्र्वर की माया अनन्त है। जब भक्त सच्चे मन से ईश्र्वर की आराधना करता है, तो ईश्र्वर भी किसी न किसी रूप में आकर अपने भक्त की सहायता अवश्य ही करते हैं। इस कलियुग में भी ईश्र्वर अपने भक्त की सहायता करने के लिए आते हैं, यह इस सच्ची घटना से प्रमाणित हो जाता है। लदौर के जाने-माने वकील भवनाथ झा भगवान् वैद्यनाथ (रावणेश्र्वर) महादेव के परमभक्त थे। ब्रह्म-मुहूर्त्त में उठकर नहाना तथा प्रतिदिन अपने घर में ही बाबा वैद्यनाथ की तस्वीर के सामने बैठकर घंटों पूजा करने के बाद ही भोजनादि करना उनकी दिनचर्या बन गयी थी। इसके बाद वे न्यायालय जाते और अपने काम में लग जाते। 1931 ई. की यह घटना है, जिसे आज भी लदौर वाले बड़े ही मनोयोग से सुनाते हैं। गुरुवार का दिन था। वकील भवनाथ नित्यिाया से निपट कर बाबा वैद्यनाथ के चित्र के समक्ष बैठकर पूजा में मग्न हो गए। उन्हें इस बात का ध्यान ही नहीं रहा कि आज कोर्ट में एक महत्वपूर्ण मुकदमे की बहस (पैरवी) भी करनी है। उसी दिन उनकी बहस सुनने के बाद न्यायाधीश अपना फैसला भी सुनाने वाले थे।
पूजा-पाठ समाप्त करने के बाद भवनाथ को अचानक याद आया कि उन्हें तो आज बड़े ही महत्वपूर्ण मुकदमे के सिलसिले में कोर्ट में ठीक समय पर जाना था। अब तो बहुत देर हो चुकी है। वे अफसोस करने लगे कि कहीं उनकी अनुपस्थिति की वजह से उनके मुवक्किल को सज़ा न हो जाये। वकील साहब परेशान होकर वैद्यनाथ से बोले, हे प्रभु! अब क्या होगा? वे दौड़ते-दौड़ते कोर्ट पहुंच जाना चाहते थे, किन्तु उनकी पत्नी ने कहा, भोजन करके निश्र्चिन्त होकर जाइये।
आज एक बहुत जरूरी मुकदमे की पैरवी करनी है। अगर समय पर नहीं पहुंचा तो गजब हो जाएगा। वकील साहब चिन्तित मुद्रा में बोले।
अरे, सब ठीक ही होगा। बाबा वैद्यनाथ पर विश्र्वास रखिए। वे अपने भक्त का कभी अनिष्ट नहीं करते। पत्नी ने निश्र्चिन्त भाव से कहा था।
झटपट भोजन करके भवनाथ झा सीधे कोर्ट पहुंचे। कोर्ट के मुंशी ने फैसले की फाइल में एक घंटा पहले किये गये उनके हस्ताक्षर उन्हें दिखाये। वकील साहब दंग थे। मुंशी ने मजाक करते हुए कहा, सर! लगता है आज आपने बाबा का प्रसाद अर्थात भांग थोड़ी-सी पी ली है।
वकील साहब अवाव् खड़े थे। उनके साथी वकील आज की बहस पर और जीत पर उन्हें बधाई दे रहे थे। उनका मुवक्किल बाइज्जत बरी हो गया था। वकील साहब मन ही मन बाबा वैद्यनाथ को धन्यवाद दे रहे थे। उन्हें विश्र्वास था कि यह चमत्कार सिर्फ वही कर सकते हैं। हुआ यह था कि उनके मुवक्किल के केस की सुनवाई के समय स्वयं बाबा वैद्यनाथ महादेव वकील के रूप में वहां उपस्थित हो गये थे। उन्होंने ही पूरे मुकदमे की पैरवी की और उसे जीता था।
वकील भगवान झा भोलेनाथ की कृपा पर न्यौछावर हो गये। उन्हें आत्मज्ञान भी हो गया। इस चमत्कारिक घटना से अभिभूत होकर उन्होंने वकालत छोड़ दी और वैद्यनाथ धाम आकर भजन-भाव में जुट गये। वे सुबह-शाम बाबा के मन्दिर में आते और घण्टों ध्यानमग्न रहते। बाबा वैद्यनाथ के चमत्कार की अनेक कथाएं प्रचलित हैं। झारखण्ड राज्य में स्थित वैद्यनाथ धाम में रावणेश्र्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध बाबा के दर्शन के लिए प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में देश-विदेश से भक्तगण पहुंचते हैं और मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं। यूं तो साल भर इस तीर्थ स्थान पर भक्तों की भीड़ लगी रहती है, किन्तु सावन के महीने में कांवर लेकर पहुंचने वाले भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। आबाल, वृद्ध, नारी बाबा धाम पहुंचकर बाबा वैद्यनाथ की कृपा प्राप्त करते हैं। यह अद्भुत चमत्कारी कथा पूर्णतः सत्य है।
– परमानन्द परम
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